कहा जाता है कि इबादत करना हर इंसान का कर्तव्य भी होता है और कर्म भी।
लेकिन कुछ लोग दुनिया में ऐसे होते हैं जो अपनी मेहनत से ऐसे कारनामे कर
दिखाते हैं कि वो अपनी अलग ही इबादत लिख देते हैं..
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कहा जाता है कि इबादत करना हर इंसान का कर्तव्य भी होता है और कर्म भी। लेकिन कुछ लोग दुनिया में ऐसे होते हैं जो अपनी मेहनत से ऐसे कारनामे कर दिखाते हैं कि वो अपनी अलग ही इबादत लिख देते हैं, जिनका काम ही उनकी पूजा(इबादत) बन जाता है। वो इबादत अमिट होती है, जो कभी नहीं मिटती, बस उसमें अध्याय जुड़ते जाते हैं।
शेफ विकास खन्ना, आज देश और दुनिया का एक ऐसा जाना पहचाना नाम है जिस नाम के पीछे एक अनसुनी कहानी और मेहनत छुपी हुई है। आज हम आपको देश के लिए विदेशों तक में नाम कमाने वाले विकास खन्ना के बारे में बताएंगे, जो आज उस मुकाम पर हैं जहाँ पहुंचना अमूमन आसान नहीं होता।
अमृतसर के रहने वाले विकास खन्ना ने अपनी जिंदगी में कई उतार चढ़ाव देखे हैं। उनका बचपन यहां की गलियों में बीता है। विकास की दादी अमृसर की एक छोटी सी गली में ठेले पर पराठे की दुकान लगाती थी, जहां वह अपनी मां के साथ पराठे बेचा करते थे।
आज विकास न्यूयॉर्क में ‘जूनून’ नाम के एक रेस्टोरेंट के मालिक हैं। इतना ही नहीं उनके इस रेस्टोरेंट के लिए उन्हें मिशलिन स्टार अवॉर्ड से नवाजा भी गया है।
मां ने कहा बेटे को असफल होते नहीं देख सकती-
एक इंटरव्यू में विकास ने कहा था कि एक बार जब वो एक पार्टी में अपने काम के सिलसिले में थे तब अचानक लाइट चली गई. उस दौरान उनकी माँ भी उनके साथ थी, लेकिन जब वो छत गए तो उन्होंने अपनी माँ को वहां खड़ा पाया और अचानक से लाइट भी आ गई। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उनकी मां तेज बारिश में जनरेटर का स्विच पकड़ कर खड़ी थी। वजह पूछे जाने पर उनकी मां ने कहा था: “मैं अपने बेटे को असफल होते नहीं देख सकती।”
घर के पीछे बैंक्विट हाल खोल कर की शुरुआत-
सबसे पहले विकास ने अपने घर के पीछे ही एक छोटा सा बैंक्विट हॉल खोला, लेकिन इस काम में उन्हें कुछ ख़ास सफलता नहीं मिली। उन्होंने कई और बिज़नेस शुरू किये, पर उसमें भी वह कामयाब नहीं रहे, लेकिन विकास के परिवार ने हमेशा उनका साथ दिया।
पीएम मोदी और ओबामा को दे चुके हैं अपनी लिखी किताब- विकास ने 2015 में “उत्सव” नाम की अपनी एक किताब लिखी, जिसमें भारत के त्यौहार के दौरान बनने वाले व्यंजनों के बारे में बताया है। विकास को इस किताब को लिखने में 12 साल लग गए। इस किताब की एक कॉपी उन्होंने 2015 में अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा को तोहफे में दी। इसकी एक कॉपी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और हिलेरी क्लिंटन को भी भेंट की।