नौकरी है नहीं और केंद्र का रवैया डरावना: सुप्रीम कोर्ट
Published: Feb 03, 2016 08:14:00 am
सुप्रीम कोर्ट ने देश में बेरोजगारी से निपटने की समस्या को लेकर लचर रवैया अपनाने के लिए केंद्र सरकार को फटकारा है
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने देश में बेरोजगारी से निपटने की समस्या को लेकर लचर रवैया अपनाने के लिए केंद्र सरकार को फटकारा है। कोर्ट ने दोहराया, जीविका का अधिकार मूलभूत अधिकार है।
दक्षिण मध्य रेलवे कैटरर्स एसोसिएशन की अपील पर न्यायाधीश वी गोपाल और अमिताभ रॉय की बेंच ने कहा, समतावादी समाज के संवैधानिक दर्शन के नॉन-गवर्नेंस और गैर क्रियान्वयन की वजह से देश में रोजगार की संभावना नदारद है। यह संवैधानिक दर्शन सभी को सम्मानजनक जीवन का मौका देता है। एसोसिएशन ने केंद्र सरकार द्वारा रेलवे प्लेटफॉर्म पर स्टॉल लाइसेंस का नवीनीकरण न करने के आदेश के खिलाफ अपील की थी।
न हो किसी शख्स का शोषण
कोर्ट ने कहा, बेरोजगारी से निपटने को लेकर सरकार का कठोर रवैया और निष्क्रियता डराती है। सार्वजनिक जिम्मेदारी को निजी हाथों में देकर स्थिति और बिगाड़ी है। ये सरकारी नीतियों का गलत फायदा उठाते हैं। हर कल्याणकारी राज्य का जिम्मा है कि वह नौकरी मुहैया कराए। अभी देश में लाखों युवा बेरोजगार हैं। आजीविका का अधिकार, जीने के अधिकार का हिस्सा है।
साधनों का इस्तेमाल कर सरकार सुनिश्चित करे कि किसी भी शख्स का शोषण न हो। 1985 में सुप्रीम कोर्ट ने संविधान की धारा 21 के तहत दिए जीने के अधिकार को व्यापक कर इसमें आजीविका का अधिकार भी समाहित कर दिया था।