नई दिल्ली। भारतीय सेना के जवानों ने एलओसी पार कर 50 से ज्यादा पाक आतंकियों को मार गिराया, लेकिन इस मिशन पर जिन जवानों को भेजा गया वे भारतीय सेना के सबसे बेहतरीन कमांडोज में से एक माने जाते हैं। तभी इन्हें स्पेशल फोर्स भी कहा जाता है। एक अनुमान के मुताबिक हर साल 400 से 500 जवान स्पेशल फोर्स में शामिल होने के लिए आवेदन करते हैं, लेकिन इनमें से सिर्फ एक ही असल में स्पेशल कमांडो बन पाता है। हम आपको बताते हैं कि कैसे एक जवान स्पेशल कमांडो बनता है।
20 से 22 घंटे होती है ट्रेनिंग
स्पेशल फोर्स में शामिल होने के लिए जवानों को दो महीने के प्रोबेशन पीरियड पर रखा जाता है। यानि इन दो महीनों में यह परखा जाता है कि जवान आगे जाकर सेना के सर्जिकल स्ट्राइक जैसे ऑपरेशन को अंजाम दे सकेगा या नहीं। इस प्रोबेशन पीरियड के दौरान हर दिन 20 से 22 घंटों की कठोर ट्रेनिंग से गुजरना होता है। जैसे मुट्ठी के बल रोड पर चलना, 3 से 4 किलोमीटर तक सड़क पर रोल करके जाना। इस दौरान उसे मेंटल लेवल पर भी टॉर्चर किया जाता है ताकि जवान की यह परखा जा सके कि जवान सिर्फ शारीरिक तौर पर नहीं बल्कि मानसिक स्तर पर भी मजबूत हो। उदाहरण के लिए अगर कोई जवान थक जाए तो उन्हें थकान दूर करने के लिए एक किताब पढऩे को दे दी जाती है, लेकिन अगले दो घंटे में जवान को किताब का रिव्यू लिख कर देना होता है।
ट्रेनिंग में सिखाया जाता है कांच खाना
प्रोबेशन के दौरान दी जाने वाली ट्रेनिंग कितनी कठोर होती है इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि जवानों को कांच खाने की भी प्रैक्टिस करवाई जाती है। सांप को हाथ से पकडऩा सिखाया जाता है। इसके बाद उन्हें हर दिन 25 किलोग्राम तक वजन के साथ 40 किलोमीटर भागना होता है। इस दौड़ को पूरा करने का भी समय तय होता है। जैसे अगर किसी जवान को 10 किलोमीटर भागना है तो उसे 1 घंटे 10 मिनट का टाइम दिया जाता है। ऐसे ही 20 किलोमीटर की दौड़ के लिए 2 घंटा 20 मिनट, 30 किलोमीटर के लिए 3 घंटे 45 मिनट और 40 किलोमीटर की दौड़ के लिए 4 घंटे 40 मिनट दिए जाते हैं। साथ ही हफ्ते में दो बार 5 किलोमीटर और हर दूसरे दिन 2.4 किलोमीटर की दौड़ लगाना भी अनिवार्य होता है। साथ ही इस दौरान दूसरी अन्य चीजें भी सिखाई जाती हैं।
आखिरी लेवल होता है सबसे मुश्किल
प्रोबेशन का टाइम खत्म होने से पहले जवानों की नेविगेशनल स्किल देखी जाती है। इसके लिए हर जवान को 40 किलोमीटर दूर तक के जंगल-झाडि़यों में बिना जीपीएस, कंपास के छोड़ दिया जाता है। इन्हें एक टारगेट दिया जाता है, जो चुपचाप पूरा करना होता है। इतना ही नहीं अगर किसी जवान से टारगेट पूरा करने में गलती हो गई तो उसे वापस वहीं जाना होता है जहां से उसने शुरुआत की।
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