करगिल में फहरा रही है राठ के वीरों की शौर्य पताका
अलवर। करगिल युद्ध में अपने अदम्य साहस और जांबाजी के बल पर दुश्मन के छक्के छुड़ाने में अलवर जिले के राठ के वीरों ने भी अहम भूमिका निभाई और देश के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया जिनकी गौरव गाथाएं आज भी राठ के गांवों की चौपाल पर सुनाई जाती है तो ग्रामीणों का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। राठ के इन वीरों ने 1999 में जम्मू-कश्मीर के करगिल में बड़े पैमाने पर घुसपैठ करने वाले पाकिस्तानी सैनिकों और आतंककारियों को खदेडऩे के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी थी। राठ के वीरों ने करिगल युद्ध के अलावा भी देश रक्षा के लिए कोई मौका आया तो अपनी जान देकर देशभक्ति की मिसाल पेश की। राठ क्षेत्र के गांव-गांव में बने शहीदों के स्मारक युवाओं को देश प्रेम और सेना में जाकर देश पर मर मिटने की प्रेरणा दे रहे हैं। करगिल के अलावा देश की सीमाओं पर लड़े गए अन्य युद्धों में भी यहां के जवानों ने शहादत दी। विभिन्न सैन्य अभियानों में भी उनकी अहम भूमिका रही।
चाचा-पिता ने पाई शहादत, बेटा भी सीमा पर पहुंच गया
सतना। महज एक पखवाड़े के भीतर चाचा और पिता की शहादत से सतना जिले के चूंद गांव के नौजवान विनय सिंह का और उसके परिवार का हौसला नहीं टूटा। पिता को मुखाग्नि देते हुए विनय ने सेना में जाने का संकल्प ले लिया। कड़ी मेहनत कर शारीरिक क्षमता को बढ़ाया और सेना में भर्ती हो गए। अब विनय सीमा पर पिता के अधूरे रह गए फर्ज को पूरा कर रहे हैं। पहले उनके पिता कन्हैयालाल सिंह कारगिल युद्ध के आपरेशन रक्षक में शहीद हुए, उसके कुछ दिन बाद ही चाचा बाबूलाल सिंह को भी शहादत मिली। गांव में दोनों की शहादत की याद में स्मारक बनाया गया है। जो चूंद गांव ही नहीं बल्कि आस पास के इलाकों को भी गर्व से भर देता है।
घर-घर से जवान
राठ के 100 से अधिक जवानों ने देश रक्षा में शहीद होकर राठ का मान बढाया है जिसमे से 44 सैनिक करगिल और उसके साथ चलने वाले अन्य ऑपरेशनों में देश के दुश्मनों से मुकाबला करते हुए शहीद हुए है। राठ में सेना सहित बीएसएफ, सीआरपीएफ व अन्य बलों के 25 हजार के करीब पूर्वसैनिक हैं तथा सेना में 11 हजार सैनिक वर्तमान में सेवारत हैं। अन्य बलों में लगभग 13 हजार जवान सेवारत है। अनेक परिवारो में तो दो से तीन-तीन सदस्य तक सेना में देश की रक्षा के लिए अपना योगदान दे रहे हैं। गांवो में मुख्य मार्गों व अन्य मार्गों व अन्य सार्वजनिक स्थानों पर लगी शहीदों की प्रतिमाएं व शहीद स्मारक उनके शौर्य की कहानी सुना रहे हैं।
सोमलपुर की माटी को सलाम!
शहीदों के गांव के रूप में है प्रदेश में पहचान
अजमेर। अरावली की पर्वत शृंखला की तलहटी में बसे छोटे से गांव सोमलपुर ने देश को कई जांबाज सैनिक दिए हैं। दुश्मनों से लोहा लेते हुए प्राणोत्सर्ग करने वाले शहीदों के परिवारों की नई पीढ़ी देश पर कुर्बान होने को उत्सुक है। भारतीय फौज में हिस्सा बनने के लिए यहां के युवा कड़ी मेहनत कर रहे हैं। हर किसी का एक ही सपना है कि सोमलपुर की धरा का देश में नाम रोशन करना है। अपने पुरखों ने जो देश सेवा की सीख दी है उसे अमल कर वतन के खातिर मट मिटना है। गांव में बना शहीद स्मारक माताओं को ऐसी संतान को जन्म देने की प्रेरणा दे रहा है जो परिवार, समाज से ऊपर उठकर देश की रक्षा के खातिर देश का सजग प्रहरी बन सके। साढ़े छह हजार की आबादी में 200 लोग सेना में रहे हैं। अजमेर शहर से सटे पैराफेरी गांव सोमलपुर को शहीदों के गांव के नाम से जाना जाता है। इस गांव के 50 जवान आज भी भारतीय सेना में सेवाएं दे रहे हैं तो 150 सेवानिवृत होकर गांव में भावी सैनिक तैयार कर रहे हैं। सेना में देश की रक्षा के लिए शहीद हुए रणबांकुरों के स्मारक यहां के युवाओं को देश सेवा के लिए प्रेरित करते हैं।
गांव का इतिहास
गांव भारत के अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान की दादी सोमल देवी के नाम से बसा है, जो तारागढ़ किले के ठीक नीचे स्थित है। इस गांव की माटी की तासीर है कि चौहान राजवंश से लेकर वर्तमान तक युवाओं में सैन्यकर्म के प्रति जज्बा है।