scriptअब प्रदेश में माताओं के गर्भ से ही बच्चियों पर हो रही हिंसा | Raipur : Violence on the girl child in the womb of mothers | Patrika News

अब प्रदेश में माताओं के गर्भ से ही बच्चियों पर हो रही हिंसा

locationरायपुरPublished: Nov 27, 2015 09:36:00 am

छत्तीसगढ़ का लिंगानुपात पूरे देश के लिए मिसाल था। मगर अब यहां भी लड़कियों की संख्या घटने लगी है

girl child

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रायपुर. छत्तीसगढ़ का लिंगानुपात पूरे देश के लिए मिसाल था। मगर अब यहां भी लड़कियों की संख्या घटने लगी है। एेसा छत्तीसगढ़ में पहले नहीं था, लेकिन जैसे-जैसे जंगल और खेती घटती जा रही है। यहां महिलाओं का सम्मान भी घटता जा रहा है। विकास की आंधी के साथ ग्रामीण-आदिवासी समाज के सांस्कृतिक नियम टूटने की वजह से हालात बिगड़ रहे हैं। यहां आदिवासी समाज की महिलाएं पहले घर और बाहर बराबरी के साथ काम करती थीं। उन्हें हर जगह समानता का दर्जा हासिल था। लेकिन, यह प्रवृत्ति तेजी से बदल रही है। दूसरे विकसित राज्यों की तरह अब यहां भी महिलाओं को घर की इज्जत समझकर घरेलू कामों तक सीमित रखा जा रहा है।

महिलाओं के खिलाफ हिंसा में इजाफा
ओएसडी (सीआईडी) पीएन तिवारी ने कहा, छत्तीसगढ़ में टोहनी प्रताडऩा और महिलाओं की तश्करी काफी कोशिशों के बावजूद थमने का नाम नहीं ले रही है। वहीं, अनाचार और दहेज मृत्यु के आंकड़े भी बढ़ रहे हैं। सवाल है कि आबादी के लिहाज से बहुत छोटा राज्य होने के बाद भी महिलाओं के खिलाफ अपराध में छत्तीसगढ़ इतना आगे क्यों है। इस पर सबके अपने-अपने तर्क हो सकते हैं, लेकिन सामूहिक प्रयास किए बिना बदलाव नहीं आएंगे। इस दौरान रविशंकर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एसके पाण्डेय ने महिला मामलों में सभी से संवेदनशील होने की अपील की। संगोष्ठी में ऑक्सफेम इंडिया से प्रकाश गार्डिया और आइपैक से नरेन्द्र कुमार भी मौजूद थे।

भुला दिया छत्तीसगढि़या मॉडल
विकास के साथ आ रहे नए सामाजिक नियमों के चलते महिला हितों पर आधारित छत्तीसगढि़या मॉडल भुला दिया गया है। यह बात “महिलाओं का है बराबर हक” नाम से स्वयं सेवी संस्था ऑक्सफेम इंडिया और आइपैक द्वारा गुरुवार को रविशंकर विश्वविद्यालय परिसर में आयोजित संगोष्ठी के दौरान महिला कार्यकर्ताओं ने कही। इस मौके पर टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंस की प्रोफसर शेवली कुमार ने कहा कि छत्तीसगढ़ में आदिवासियों की आबादी और संस्कृति के चलते यहां महिलाओं की स्थितियां गुजरात और दिल्ली से अलग है।

इस मौके पर एआईजी (सीआईडी) मरीना कुर्रे ने कहा, कई महिला पुलिसकर्मी पुरुषों की तरह कपड़े पहनकर मानती हैं कि इससे बराबरी आती है। मगर कपड़े बदलने से बराबरी नहीं आएगी। सच्ची बराबरी तभी मानी जाएगी, जब जैसी वे हैं, उन्हें उसी रूप में स्वीकारा जाए। उन्होंने बताया कि इस मामले में पुलिस की भूमिका हमेशा कठघरे में होती है। सच्चाई यह है कि अपराध होने से पहले अपराधी में विचार आता है, लेकिन समाज विचार पर चोट करने से बच रहा है।

सिर्फ कपड़ों से नहीं आएगी बराबरी
मरीना ने कहा कि सख्त कानूनों के चलते पुरुष महिलाओं से दूरी न दिखाएं। बाल आयोग की अध्यक्ष शताब्दी पाण्डेय ने बताया कि छत्तीसगढ़ की महिलाएं जागरुकता की कमी के चलते भी अत्याचार की शिकार हो रही हैं। औद्योगिक क्षेत्रों में बाहरी लोगों के संपर्क में आने वाली कई महिलाएं शारीरिक और मानसिक शोषण झेल रही हैं।
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