(फोटो- खेड़े की तस्वीर को देखते मासूम बच्चे। गमगीन पत्नी।)
खरगोन। जिला मुख्यालय से 25 किमी दूर छोटा सा गांव बलवाड़ी। कल तक यह नाम अनसुना था। आज इस गांव के नाम की गूंज प्रदेश ही नहीं वरन देश की राजधानी दिल्ली व गुडग़ांव तक हो रही है। जिले को यह पहचान ‘रामेश्वर खेड़े’ ने दिलाई है। दलित परिवार में जन्म लेकर ‘रामेश्वर खेड़े’ ने वह कर दिखाया, जो किसी चमत्कार से कम नहीं।
खुद ने सांसें तोड़ी और पांच जिंदगियों को जीवन दे दिया। अब रामेश्वर किसी की आंखों से दुनिया देखेगा तो किसी के सीने में दिल बनकर धड़कता रहेगा। इंदौर के चोइथराम अस्पताल में बुधवार को उनके शरीर से निकले अंगों को जरूरतमंदों तक पहुंचाया गया। इस परिवार का दु:ख बांटने गुरुवार को पत्रिका टीम घर पहुंची।
मासूम आंखों को पिता की तलाश
कच्ची व उबड़-खाबड़ सड़क।कहीं कीचड़, तो कही पत्थरों के ढेर। यह रास्ता है उस दानवीर के घर तक पहुंचने का। बलवाड़ी में रामेश्वर खेड़े का एक छोटा सा घर है। पहले कमरे में नजर दौड़ाई, तो यहां पांच बच्चे व बेबस पत्नी किरणबाई रामेश्वर की तस्वीर के पास बैठे थे। छोटे बेटे प्रतीक (7) और बेटी वंशिका (5) मासूम आंखों से पिता की फोटो की ओर टकटकी लगाए देख रहे थे। मासूम आंखे हर पल पिता को खोज रही थीं। उन्हें तो यह भी नहीं मालूम कि पिता अब कभी लौटकर घर नहीं आएंगे। रामेश्वर के अंगों के दान के बदले में परिवार को कुछ मिला है, तो वह है, दो प्रमाण-पत्र, जो आई बंैक और इंदौर चोइथराम हॉस्पिटल से दिए गए हैं।
2013 में 8 सदस्यों को गंवाया
10 फरवरी 2013 का दिन खेड़े परिवार को गहरा अघात दे गया था। निजी कार्यक्रम में परिवार के सदस्य बड़वानी जा रहे थे।तभी बरुड़ फाटे के पास हुई दुर्घटना में परिवार के आठ सदस्यों की जान चली गई थी। इसके बाद रामेश्वर खेड़े परिवार के 9वें सदस्य रहे, जिनकी मौत भी सड़क दुर्घटना में हुई। इस बात को याद करते हुए बड़े भाई भगवान खेड़े की आंखे भर आई। भगवान खेड़े ने बताया कि हादसे में आठ परिजनों को खोने पर रामेश्वर सबसे ज्यादा विचलित था। इसी हादसे में रामेश्वर के बड़े भाई राजेश खेड़े की मृत्यु हुईथी। भतीजे रोहित खेड़े को दिखाई देना बंद हो गया था।
काका की आंखों से देखेगा भतीजा
रामेश्वर खेड़े (काका) की दान की गई आंखे, भतीजे रोहित के काम आएगी। रोहित अभी ठीक से देख नहीं सकता। अगले 2-3 दिन बाद ऑपरेशन कर रोहित को आंखे लगाई जाएगी और वह काका की आंखों से दुनिया को देख सकेगा। रामेश्वर ने इच्छा जताईथी कि जरूरत पड़ी तो वे रोहित के लिए आंखे दान करेंगे। दुनिया से विदा लेने से पूर्व उन्होंने इस बात को सच कर दिखाया।
विधवा महिला पर बच्चों का भार
पति-पत्नी मजदूरी कर परिवार का पालन-पोषण करते थे। रामेश्वर की मौत के बाद यह जिम्मेदारी उनकी विधवा किरणबाई के कंधों पर आ गई है। परिवार की आर्थिक परेशानी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हादसे में बुरी तरह से घायल रामेश्वर को बचाने के प्रयास में जीवनभर की कमाई चली गई। परिवार के पास अंत्येष्ठी के लिए भी पैसे नहीं थे। जैसे-तैसे इसकी व्यवस्था की गई। परिजनों ने कहा कि किसी गरीब की अंत्येष्ठी के लिए दो हजार रु. की मदद शासन द्वारा की जाती है, लेकिन पंचायत सचिव घर पूछने तक नहीं आया।
(फोटो- ग्राम बलवाड़ी स्थित खेड़े का घर।)
संवेदनहीन प्रशासन व जनप्रतिनिधि
इंदौर में खेड़े के अंगों को लेकर इन्हें जरुरतमंद लोगों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी डॉक्टरों के साथ प्रशासनिक अधिकारियों ने निभाई। विडंबना यह कि जिस रामेश्वर की बदौलत खरगोन जिले का गौरव बढ़ा, उस परिवार के साथ जिला प्रशासन संवेदनहीनता दिखा रहा है।बुधवार शाम को खेड़े के अंतिम संस्कार से लेकर अगले दिन गुरुवार तक इस परिवार के आंसू पोंछने के लिए कोई भी जिम्मेदार बलवाड़ी नहीं पहुंचा।इसकी टीस परिजनों के साथ ही गांव के लोगों के मन में चुभ रही है।
पटवारी को भेजकर कर ली इतिश्री
गुरुवार दोपहर 12.50 बजे भगवानपुरा तहसीलदार के निर्देश पर पटवारी रामलाल रामड़े रामेश्वर के घर पहुंचे। उन्होंने बीपीएल राशन कॉर्ड व मजदूर पंजीयन के दस्तावेज देखे और वापस लौट गए। प्रभावित परिवार को क्या मदद मिल सकती है, इस पर रामड़े कुछ नहीं बोले।
इंसानियत की मिसाल
रामेश्वर ने इंसानियत की मिसाल पेश करते हुए गांव का नाम रोशन किया है।वह खुद अपनी जिंदगी हार गया, लेकिन कई लोगों को नया जीवन दे गया। देवीसिंह वास्कले, सरपंच पति
मदद करुंगा
घटना मेरी जानकारी में नहीं है। पत्रिका के माध्यम से रामेश्वर के इस पुण्यकार्य का पता चला है। आज ही पीडि़त परिवार से मिलकर उनकी हरसंभव मदद करने का प्रयास करूंगा। विजयसिंह सोलंकी, विधायक भगवानपुरा