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ना मिली शहीद को दो गज जमीन, ना पहुंची सीएम अखिलेश से आर्थिक मदद

locationसुल्तानपुरPublished: Sep 22, 2016 11:31:00 pm

Submitted by:

Abhishek Gupta

कादीपुर के मलिकपुर गांव के निवासी शहीद उपनिरीक्षक महेन्द्र यादव के परिजनों ने शासन व् प्रशासन द्वारा कोई सहायता न दिए जाने से शहीद परिजनों में बेहद आक्रोश व्याप्त है।

Mahendra

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सुल्तानपुर. कादीपुर के मलिकपुर गांव के निवासी शहीद उपनिरीक्षक महेन्द्र यादव के परिजन शासन व् प्रशासन द्वारा कोई सहायता न दिए जाने से बेहद आक्रोशित हैं। वजह आज भी प्रशासन की संवेदनहीनता है। ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि क्या शहीद की कुर्बानी को सिर्फ शब्दों से ही माना जाये। क्योंकि ज़मीनी हकीकत कुछ और ही है। कोई शहीद की चिता पर राजनीति करता है तो कोई सिर्फ विशेष मौकों पर पुष्प अर्पित कर देता है।

“शहीद महेंद्र को आज भी नहीं मिल सकी है समाधी की ज़मीन”

कश्मीर में शहीद हुए महेंद्र का पार्थिव शरीर 10 अगस्त को जब उनके गांव पंहुचा तो दर्द और मातम का माहौल पूरे क्षेत्र में था। उसी समय शहीद को दफ़नाने को लेकर चुनी गई ज़मीन पर विवाद शुरू हो गया। कुछ लोगों ने आपत्ति भी की। किसी ने ज़मीन को ग्राम समाज का बताया गया। और मौके पर पहुंचे जिलाधिकारी एस राजलिंगम ने अनुमति भी दे दी, लेकिन समय गुज़रता गया और उस ज़मीन को अभी भी समाधिस्थल के रूप में आवंटित नहीं किया गया। जिसका दर्द शहीद के पिता राम शब्द के शब्दों में झलकता है। इस सम्बन्ध में एस डी एम कादीपुर से पत्रिका ने पूछा तो जवाब में उन्होंने बताया की ज़मीन आवंटन की प्रक्रिया चल रही है। अब ये कब पूरी होगी ये निश्चित नहीं है।

“वादे बड़े बड़े लेकिन असलियत कुछ और ही!”

शहीद के पिता राम शब्द यादव के लफ़्ज़ों में समझें तो शायद आपको दर्द का एहसास होगा। अंत्येष्टि में पहुँचे राजनेताओं व जिला प्रशासन के अधिकारियों ने लंबे लंबे वादे किए थे, लेकिन उनके बेटे की शहादत पर दो गज जमीन तक प्रशासन देने को तैयार नहीं है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के द्वारा घोषित 20 लाख की आर्थिक मदद भी अभी तक नहीं मिल पाई है। जिला प्रशासन के अधिकारियों ने हर संभव मदद का वादा किया था, लेकिन सभी अपने वादे से मुकर गए। किसी ने नहीं पूछा कि शहीद के परिवार का क्या हाल है। शहीद परिवार ने निराशा भरे शब्दों में बताया कि उनके छोटे बेटे की नौकरी देने की प्रक्रिया भी अब तक नहीं शुरू हुई है। अब ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि शहीद की शहादत सिर्फ ज़ुबानी तौर पर लंबे चौड़े वादों पर ही तोली जाती है। जिलाधिकारी सुल्तानपुर राजलिंगम से इस पूरे मामले में बात करनी चाही तो उन्होंने फोन काट दिया। और जब उपजिलाधिकारी कादीपुर से मुआवज़े की जानकारी की गई तो उन्होंने संज्ञान में न होने की बात कही। अब ऐसे में समझा जा सकता है की हमारा सरकारी तंत्र इन मामलों में कितना संवेदनशील है।
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