इस काल में स्वाध्याय के माध्यम से वचन को शुद्ध भी किया जा सकता है। प्रतिक्रमण के माध्यम से साधु-श्रावक के पाप कर्म को नाश करता है और साधु आत्मग्लानि कर अपने पाप कर्मों का प्रायश्चित करता है।
इसी चातुर्मास महापर्व में शरीर, वचन और मन को वश में करने के लिए दशलक्षण, गुरुपूर्णिमा, दीपावली, रक्षा बंधन, नागपंचमी और स्वतंत्रता दिवस आदि पर्व आते हैं।
इन्हीं पर्वों के माध्यम से जीवन में धर्म के बीजारोपण के साथ देश और भारतीय संस्कृति की पहचान हमें होती है। दशलक्षण पर्व (पर्युषण) के दौरान चार कषाय पर विजय पाने के लिए साधु उपाय बताते हैं।
सभी पर्वों में महापर्व है चातुर्मास
चातुर्मास में ही रक्षा बंधन आता है, जो हमें वात्सल्य और संस्कृति के संरक्षण का उपदेश देता है। दशहरा हमें बुराई पर अच्छाई की विजय होने का ज्ञान देता है और साथ ही अहंकार से दूर रहने की शिक्षा भी देता है।
दीपावली पर जैन धर्म में इस दिन भगवान महावीर को मोक्ष हुआ तो दूसरा, हिन्दू धर्म के अनुसार इसी दिन श्रीराम आयोध्या लौटे थे। इस तरह से देखा जाए तो एक ने अपने अज्ञान को दूर किया तो दूसरे ने 14 वर्ष से राजा के बिना अंधेरे में रह रही अयोध्या नगरी को प्रकाशित किया। इसी तरह से नाग पंचमी, गुरुपूर्णिमा आदि अनेक पर्व आते हैं। ये सभी व्यक्ति को धर्म से जोड़ते हैं।