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मन, वचन और शुद्धि का महापर्व है चातुर्मास

Published: Jul 02, 2017 10:42:00 am

चातुर्मास धर्म रूपी रथ को चलाने के लिए श्रावक और संत दोनों को एक-दूसरे से जोडऩे का पुनीत काम करता है

jain muni chaturmas

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– मुनि पूज्य सागर महाराज

चातुर्मास अधिक से अधिक 165 और कम से कम 100 दिन का होता है। चातुर्मास काल में संत भयानक अकाल, बड़ी अप्रिय घटना, भव्य धार्मिक कार्य या साधन में अव्यवस्था होने जैसे कुछ परिस्थितियों में चातुर्मास स्थल से बाहर जा सकता है। इसके अलावा अगर आस-पास किसी साधु की समाधि चल रही तो 48 कोस तक जा सकते हैं। इस बार चातुर्मास का प्रारम्भ 7 जुलाई और समापन 19 अक्टूबर को होगा।

जैन धर्म में जन्म मरण से मुक्ति का उपचार धर्म, योग और ध्यान को बताया गया है। इन्हें करने के लिए ही चातुर्मास साधनाकाल की संरचना की गई। इस काल में तन और मन से साधना की जाए तो ईश्वरीय सानिध्य का एहसास होने लगता है।

जीवन को साधने का स्वर्णिम समय
साल के आषाढ़, सावन, भाद्रपद और क्वार, इन चार माह में चातुर्मास होता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार ये माह वर्षा काल के माने गए हैं। इन दिनों अधिक वर्षा होने से जीवों की उत्पति अधिक होती है। ऐसे में उन जीवों की हिंसा न हो जाए, इस भाव से चातुर्मास इन चार माह में ही होता है।

प्रथम आषाढ़ माह कहता है कि आलस्य छोड़ो, वरना यह साधना को समाप्त कर देगा। सावन कहता है कि संतों को श्रवण करो। भाद्रमास कहता है कि भद्र और सरल बनो, क्वार (कार्तिक) मास कहता है कि यदि आलस्य नहीं छोड़ा, संतों को सुनकर श्रावक न बने, भद्र परिणामी नहीं बने तो सुख-पुण्य, इन सबसे तुम वंचित रह जाओगे। जीवन व्यर्थ चला जाएगा।

श्रावक और संत के जुड़ाव का वाहक
चातुर्मास दो किनारों को जोडऩे का काम करता है। धर्म रूपी रथ को चलाने के लिए दो पहिए हैं, एक श्रावक और दूसरा संत। इन दोनों को एक-दूसरे से जोडऩे का काम करता है चातुर्मास। इस काल में दोनों ही एक-दूसरे को समझते हैं और श्रावक साधु की साधना में सहयोगी बनकर उन सब साधनों को उपलब्ध करवाता है, जो उसकी साधना में अत्यन्त आवश्यक हैं और साधु, श्रावक को पाप और कषाय से बचने का मार्ग बताकर, उसके पापों का प्रक्षालन करने के लिए प्रायश्चित देता है।

शास्त्रों में तो कहा गया है कि यदि कोई श्रावक साधु की साधना में सहयोगी होता है तो साधु अपनी साधना से जितना पुण्य अर्जन करता है, उसका कुछ हिस्सा सहयोगी बने श्रावक को मिलता है। इस तरह से चातुर्मास भारतीय संस्कृति का सबसे महत्त्वपूर्ण पर्व कहा जा सकता है।

चातुर्मास उस दर्पण के समान है, जिसमें झांककर हम जान सकते हैं कि हम धर्म के कितना नजदीक हैं। धर्म का कितना पालन कर रहे हैं, कितनी कलंक-कालिमा हम पर लगी हुई है। चातुर्मास व्यक्ति की उसके व्यक्तित्व से पहचाने कराने का पर्व है। चातुर्मास को संस्कार पर्व भी कह सकते हैं। चातुर्मास में साधु मानव में मानवता के संस्कार भरने का कार्य करता है।

कुसंस्कारों को साफ करने का माध्यम
चातुर्मास में ही श्रावक की जीवनचर्या में एक आध्यात्मिक विषय सारणी जोडऩे का काम साधु करता है। इसे सभी जैन पर्वों में श्रेष्ठ पर्व बताया गया है। इस काल में साधु-संतों से सत्य, संयम, तप, त्याग, ब्रह्मचर्य व्रत का महत्त्व सीखना जीवन को खुबसूरत बना सकता है। इस चार महीनों में कई धार्मिक पर्व आते हैं, जो मनुष्य को धर्म और अध्यात्म के करीब लाने का कार्य करते हैं।

चातुर्मास पर्व में साधु धर्म उपदेश के माध्यम से श्रावक को साधना का ज्ञान देता है और अपनी साधना के साथ-साथ समाज और धर्म की प्रभावना के लिए अनेक धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन करता है। इसका सही मायने में अर्थ मन, वचन और शरीर को वश में कर धार्मिक कार्य में लगाना और अशुभ कार्य से बचना है। चातुर्मास मन, वचन और शरीर को शुद्ध करने का पर्व है। दर- असल चातुर्मास रूपी तेजाब कुसंस्कार रूपी जंग को साफ करने का काम करता है।

स्वाध्याय से होता है मन निर्मल
इस काल में स्वाध्याय के माध्यम से वचन को शुद्ध भी किया जा सकता है। प्रतिक्रमण के माध्यम से साधु-श्रावक के पाप कर्म को नाश करता है और साधु आत्मग्लानि कर अपने पाप कर्मों का प्रायश्चित करता है।

इसी चातुर्मास महापर्व में शरीर, वचन और मन को वश में करने के लिए दशलक्षण, गुरुपूर्णिमा, दीपावली, रक्षा बंधन, नागपंचमी और स्वतंत्रता दिवस आदि पर्व आते हैं।

इन्हीं पर्वों के माध्यम से जीवन में धर्म के बीजारोपण के साथ देश और भारतीय संस्कृति की पहचान हमें होती है। दशलक्षण पर्व (पर्युषण) के दौरान चार कषाय पर विजय पाने के लिए साधु उपाय बताते हैं।

सभी पर्वों में महापर्व है चातुर्मास
चातुर्मास में ही रक्षा बंधन आता है, जो हमें वात्सल्य और संस्कृति के संरक्षण का उपदेश देता है। दशहरा हमें बुराई पर अच्छाई की विजय होने का ज्ञान देता है और साथ ही अहंकार से दूर रहने की शिक्षा भी देता है।

दीपावली पर जैन धर्म में इस दिन भगवान महावीर को मोक्ष हुआ तो दूसरा, हिन्दू धर्म के अनुसार इसी दिन श्रीराम आयोध्या लौटे थे। इस तरह से देखा जाए तो एक ने अपने अज्ञान को दूर किया तो दूसरे ने 14 वर्ष से राजा के बिना अंधेरे में रह रही अयोध्या नगरी को प्रकाशित किया। इसी तरह से नाग पंचमी, गुरुपूर्णिमा आदि अनेक पर्व आते हैं। ये सभी व्यक्ति को धर्म से जोड़ते हैं।
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