यूं पड़ा मंदिर का नाम राजरणछोड़
रानी के आराध्य कृष्ण को रणछोड़ भी कहा जाता है। रानी ने अपने नाम राज के साथ अपने आराध्य रणछोड़ का नाम जोड़कर मंदिर का नाम राजरणछोड़ मंदिर रखा। राजकंवर के पुत्र महाराजा सरदारसिंह की मौजूदगी में 12 जून 1905 के दिन मंदिर को भक्तों के दर्शनार्थ खोला गया। मंदिर के नीचे वाले भाग में कई कोटडि़या बनाई गर्इं जो अब दुकानों का रूप ग्रहण कर चुकी हैं। बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं को आवासीय सुविधा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से एक सराय का निर्माण भी करवाया था जो आज जसवंत सराय के नाम से जानी जाती है।
चांदी के झूले में श्रावण उत्सव
वर्तमान में देवस्थान प्रबंधित राजकीय प्रत्यक्ष प्रभार मंदिर में जन्माष्टमी, अन्नकूट व श्रावण मास में झूलों का आयोजन होता है। श्रावण मास में विशाल चांदी से निर्मित झूले में ठाकुरजी को विराजित कर दशनार्थ रखा जाता है। मंदिर के पुजारी हरिलाल शिवलाल ठाकर ने बताया कि उनके परदादा रानी राजकंवर के साथ दहेज में साथ आए थे। मंदिर में पहले वर्ष भर में कुल 21 ठाकुरजी के उत्सव होते थे जो अब घटकर मात्र दो तीन रह गए हंै।
कलात्मक तोरण द्वार
राजरणछोड़ मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार कलात्मक है। लाल पत्थर से निर्मित दो विशाल स्तंभ से सुसज्जित स्तंभों पर बेल बूटों तथा सुंदर फूल पत्तियों की खुदाई तथा शीर्ष से दोनों स्तंभों को जोडऩे वाले मेहराब का आकर्षण देखते ही बनता है। मंदिर के अग्र भाग के दोनों सिरों पर कलात्मक छतरियां और मुख्य द्वार से लगभग तीस सीढि़यां पूरी होने के बाद एक तोरणद्वार निर्मित है। सीढि़यों के दोनों तरफ खुले स्थल पर बारादरियां हैं। मंदिर के गर्भगृह में काले मकराना पत्थर को तराश कर बनाई गई भगवान रणछोड़ की प्रतिमा स्थापित है।