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40वें बसंत से अपने करियर की शुरुआत की थी अमरीश पुरी ने

Published: Jan 12, 2017 12:06:00 am

वर्ष 1971 में बतौर खलनायक उन्होंने फिल्म ‘रेशमा और शेरा’ से अपने कैरियर की शुरुआत की

Amrish Puri

Amrish Puri

मुंबई। बॉलीवुड में अमरीश पुरी को एक ऐसे अभिनेता के तौर पर याद किया जाता है जिन्होंने अपनी कड़क आवाज, रौबदार भाव, भंगिमाओं और दमदार अभिनय के बल पर खलनायकी को एक नई पहचान दी। रंगमंच से फिल्मों के रूपहले पर्दे तक पहुंचे अमरीश ने करीब तीन दशक में लगभग 250 फिल्मों में अभिनय का जौहर दिखाया। आज के दौर में कई कलाकार किसी अभिनय प्रशिक्षण संस्थान से प्रशिक्षण लेकर अभिनय जीवन की शुरुआत करते हैं, जबकि अमरीश खुद अपने आप में चलते फिरते अभिनय प्रशिक्षण संस्था थे।

पंजाब के नौशेरां गांव में 22 जून, 1932 में जन्में अमरीश ने अपने कैरियर की शुरुआत श्रम मंत्रालय में नौकरी से की और उसके साथ-साथ सत्यदेव दुबे के नाटकों में अपने अभिनय का जौहर दिखाया। बाद में वह पृथ्वी राज कपूर के ‘पृथ्वी थियेटर’ में बतौर कलाकार अपनी पहचान बनाने में सफल हुए। पचास के दशक में उन्होंने हिमाचल प्रदेश के शिमला से
बीए पास करने के बाद मुंबई का रुख किया। उस समय उनके बड़े भाई मदन पुरी हिन्दी फिल्म में बतौर खलनायक अपनी पहचान बना चुके थे।

वर्ष 1954 मे अपने पहले फिल्मी स्क्रीन टेस्ट मे अमरीश सफल नहीं हुए। उन्होंने अपने जीवन के 40 वे बसंत से अपने फिल्मी जीवन की शुरुआत की थी। वर्ष 1971 में बतौर खलनायक उन्होंने फिल्म ‘रेशमा और शेरा’ से अपने कैरियर की शुरुआत की, लेकिन इस फिल्म से दर्शकों के बीच वह अपनी पहचान नहीं बना सके। लेकिन, उनके उस जमाने के मशहूर बैनर बाम्बे टॉकिज में कदम रखने के बाद उन्हें बड़े-बड़े बैनर की फिल्में मिलनी शुरू हो गईं।

अमरीश ने खलनायकी को ही अपने कैरियर का आधार बनाया। इन फिल्मों में निशांत, मंथन, भूमिका, कलयुग, मंडी जैसी सुपरहिट फिल्में भी शामिल हैं। इस दौरान यदि अमरीश की पसंद के किरदार की बात करें तो उन्होनें सबसे पहले अपना मनपसंद और न कभी नहीं भुलाया जा सकने वाला किरदार गोविन्द निहलानी की वर्ष 1983 मे प्रदर्शित कलात्मक फिल्म
‘अद्र्धसत्य’ में निभाया। इस फिल्म मे उनके सामने कला फिल्मों के अजेय योद्धा ओमपुरी थे।

इसी बीच हरमेश मल्होत्रा की वर्ष 1986 में प्रदर्शित सुपरहिट फिल्म ‘नगीना’ में उन्होंने एक सपेरे की भूमिका निभाई जो लोगों को बहुत भाई। इच्छाधारी नाग को केन्द्र में रखकर बनी इस फिल्म में श्रीदेवी और उनका टकराव देखने लायक था। वर्ष 1987 में उनके कैरियर मे अभूतपूर्व परिवर्तन हुआ। वर्ष 1987 में अपनी पिछली फिल्म ‘मासूम’ की सफलता से उत्साहित शेखर कपूर बच्चों पर केन्द्रित एक और फिल्म बनाना चाहते थे जो ‘इनविजबल मैन’ पर आधारित थी।

इस फिल्म में नायक के रूप मे अनिल कपूर का चयन हो चुका था, जबकि कहानी की मांग को देखते हुए खलनायक के रूप मे ऐसे कलाकार की मांग थी जो फिल्मी पर्दे पर बहुत ही बुरा लगे। इस किरदार के लिए निर्देशक ने अमरीश का चुनाव किया जो फिल्म की सफलता के बाद सही साबित हुआ। इस फिल्म में अमरीश पुरी द्वारा निभाए गए किरदार का नाम था
‘मौगेम्बो’ और यही नाम इस फिल्म के बाद उनकी पहचान बन गया।

जहां भारतीय मूल के कलाकार को विदेशी फिल्मों में काम करने की जगह नहीं मिल पाती है वही अमरीश पुरी ने स्टीफन स्पीलबर्ग की मशहूर फिल्म ‘इंडिना जोंस एंड द टेंपल ऑफ डूम’ में खलनायक के रूप में काली के भक्त का किरदार निभाया। इसके लिए उन्हें अंतरराष्ट्रीय ख्याति भी प्राप्त हुई। इस फिल्म के पश्चात उन्हें हॉलीवुड से कई प्रस्ताव मिले जिन्हें उन्होंने स्वीकार नहीं किया क्योंकि उनका मानना था कि हॉलीवुड में भारतीय मूल के कलाकारों को नीचा दिखाया जाता है। लगभग चार दशक तक अपने दमदार अभिनय से दर्शकों के दिलों में अपनी खास पहचान बनाने वाले अमरीश पुरी 12 जनवरी 2005 को इस दुनिया से अलविदा कह गए।

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