अपनी मखमली आवाज के लिए दुनियाभर में मशहूर गजल सम्राट जगजीत सिंह का जन्म 8 फरवरी 1941 को हुआ था…
मुंबई। वे ऐसे महान फनकार थे, जिन्होंने जग जीतकर इस दुनिया को अलिवदा कहा। जी हां, हम बात कर रहे हैं गजल सम्राट जगजीत सिंह की। आज उनका जन्मदिन है। बेशक आज वो हमारे बीच नहीं है, लेकिन उनकी मखमली आवाज आज भी कानों में रस घोलती है।
जगमोहन ने जग जीत लिया…
जगजीत सिंह का जन्म 8 फरवरी 1941 को राजस्थान के श्रीगंगानगर में हुआ था। जन्म के समय परिजनों ने उनका नाम जगमोहन रखा था लेकिन पारिवारिक ज्योतिष की सलाह पर उनका नाम जगजीत कर दिया गया। जगजीत को गजल सम्राट के नाम से जाना जाता है। उन्होंने अपनी मखमली आवाज के जादू से हर उम्र और हर तख्ते के लोगों के दिल को छूआ। 10 अक्टूबर, 2011 को ब्रेन हेमरेज होने की वजह से उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था, लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद उन्हें बचाया नहीं जा सका। जगजीत सिंह भले ही इस दुनिया से दूर जा चुके हों, लेकिन आज भी हमारे बीच उनकी आवाज का जादू बरकरार है। जगजीत सिंह ने जो गजल गाई हैं, वो लोगों को हमेशा याद रहेंगी। नए गायकों में तो गजल गायकी का कोई ठिकाना ही नहीं है। जगजीत सिंह के साथ उनका स्टाइल, उनका गायन, गजलें सब उनके साथ चला गया। शेष कुछ बचा है, तो यादें और उनकी पुरकशिश आवाज…।
जगजीत सिंह की आवाज की मुरीद हैं लता…
जगजीत सिंह के शो को सुनने की चाहत के बारे में लता मंगेशकर ने एक बार बताया था, कई बार मैंने जगजीत सिंह जी के शो सुने हैं। एक बार मुझे पता चला कि जगजीत सिंह जी का शो है, तो मैंने तुरंत टिकट खरीदा और उन्हें सुना, वो बहुत ही अच्छा गाते थे। मुझे उनकी बहुत-सी गजल पसंद हैं, लेकिन सबसे ज्यादा पसंद उनकी पहली गजल, सरकती जाए है रुख से नकाब आहिस्ता आहिस्ता है। जब भी मुझे गजल सुनने का मन होता है, तो मैं आज भी उनकी यही गजल सुनती हूं।
लता मंगेशकर ने ये भी कहा कि जगजीत सिंह बेहद ही गंभीर शख्सियत के इंसान थे और अपने बेटे की मौत के बावजूद उन्होंने अपने आपको संभाले रखा। जब लता इस हादसे के बाद जगजीत सिंह से मिलीं, तो वो बेहद दुखी जरूर थे, लेकिन उन्होंने अपना गम किसी से बांटा नहीं और अपने अंदर के जज्बात अंदर ही रखे। लता मंगेशकर ने ये भी कहा कि वो किसी भी बात को लेकर ज्यादा शिकायत नहीं करते थे।
जब जगजीत ने संगीत के बदलते तौर-तरीकों पर उठाया सवाल…
जगजीत सिंह ने एक बार मौजूदा भारतीय संगीत व गजलों के बदलते तौर-तरीकों पर सवाल उठाते हुए कहा था, फिलहाल भारत में संगीत कहां है? आजकल जो हो रहा है मैं उसे संगीत नहीं मानता। आजकल आधा संगीत मशीन पर होता है। हमारे बोल, हमारी धुनें कुछ भी तो भारतीय नहीं है। गानों में टपोरी भाषा का इस्तेमाल होता है।
संगीत के बदलते दौर पर जगजीत सिंह ने कहा था, मौजूदा दौर में भारतीय संगीत हो या फिल्म उद्योग, हर कोई पश्चिम की नकल कर रहा है। चाहे कपड़े हों, शारीरिक हावभाव हों या धुनें। लेकिन साथ ही वो भारतीय पारंपरिक संगीत को लेकर खासे आशान्वित थे। वो मानते थे कि भारत का जो पारंपरिक गीत-संगीत, शास्त्रीय संगीत वगैरह इतने दमदार हैं कि पश्चिमी सभ्यता इन्हें मिटा नहीं पाएगी और वो कभी खत्म नहीं होगा