scriptबचपन से संगीतकार बनने का शौक का था कल्याणजी को | Death anniversary of Kalyanji | Patrika News

बचपन से संगीतकार बनने का शौक का था कल्याणजी को

Published: Aug 24, 2016 12:08:00 am

बचपन से ही कल्याण जी संगीतकार बनने का सपना देखा करते थे

Kalyanji

Kalyanji

मुंबई। ‘जिंदगी से बहुत प्यार हमने किया मौत से भी मोहब्बत निभाएंगे, हम रोते रोते जमाने में आए मगर हंसते हंसते जमाने से जाएंगे हम, ‘जिंदगी के अनजाने सफर’ से बेहद प्यार करने वाले हिन्दी सिने जगत के मशहूर संगीतकार कल्याण जी का जीवन से प्यार उनकी संगीतबद्ध इन पंक्तियों में समाया हुआ है। कल्याणजी वीर जी शाह का जन्म गुजरात में कच्छ के कुंडरोडी मे 30 जून 1928 को हुआ था। बचपन से ही कल्याण जी संगीतकार बनने का सपना देखा करते थे। हालांकि, उन्होंने किसी उस्ताद से संगीत की शिक्षा नहीं ली थी, लेकिन अपने इसी सपने को पूरा करने के लिए वह मुंबई आ गए।

मुंबई आने के बाद उनकी मुलाकात संगीतकार हेमंत कुमार से हुयी जिनके सहायक के तौर पर कल्याण जी काम करने लगे। बतौर संगीतकार सबसे पहले वर्ष 1958 मे प्रदर्शित फिल्म ‘सम्राट चंद्रगुप्त’ में उन्हें संगीत देने का मौका मिला, लेकिन फिल्म की असफलता से वह कुछ खास पहचान नहीं बना पाए। अपना वजूद तलाशते कल्याण जी को बतौर संगीतकार पहचान बनाने के लिए लगभग 2 वर्ष तक फिल्म इंडस्ट्री मेें संघर्ष करना पड़ा। इस दौरान उन्होंने कई बी और सी ग्रेड की फिल्में भी की।

वर्ष 1960 में उन्होंने अपने छोटे भाई आनंद जी को भी मुंबई बुला लिया। इसके बाद कल्याणजी ने आंनद जी के साथ मिलकर फिल्मों मे संगीत देना शुरू किया। वर्ष 1960 में ही प्रदर्शित फिल्म ‘छलिया’ की कामयाबी से बतौर संगीतकार कुछ हद तक वह अपनी पहचान बनाने मे सफल हो गए। फिल्म छलिया में उनके संगीत से सजा यह गीत डम डम डिगा डिगा छलिया मेरा नाम श्रोताओं के बीच आज भी लोकप्रिय है।

वर्ष 1965 में प्रदर्शित संगीतमय फिल्म ‘हिमालय की गोद में’ की सफलता के बाद कल्याणजी-आनंद जी शोहरत की बुलंदियों पर जा पहुंचे। कल्याण जी के सिने कैरियर के शुरुआती दौर में उनकी जोड़ी निर्माता-निर्देशक मनोज कुमार के साथ बहुत खूब जमी। मनोज कुमार ने सबसे पहले कल्याण जी को फिल्म ‘उपकार’ के लिए संगीत देने की पेशकश की। कल्याणजी आनंद जी ने अपने संगीत निर्देशन में फिल्म उपकार में इंदीवर के रचित गीत ‘कस्मेवादे प्यार वफा के’ जैसा दिल को छू लेने वाला संगीत देकर श्रोताओं को भावविभोर कर दिया।


इसके अलावा मनोज कुमार की ही फिल्म ‘पूरब और पश्चिम’ के लिए भी कल्याण जी ने ‘दुल्हन चली वो पहन चली तीन रंग की चोलीÓ और ‘कोई जब तुम्हारा हृदय तोड़ दें’ जैसा सदाबहार संगीत देकर अलग ही समां बांध दिया। कल्याण जी के सिने कैरियर मेें उनकी जोड़ी गीतकार इंदीवर के साथ खूब जमीं। ‘छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए’, ‘चंदन सा बदन’ और ‘मैं तो भूल चली बाबुल का देश’ जैसे इंदीवर के लिखे न भूलने वाले गीतों को कल्याण जी-आनंद जी ने ही संगीत दिया था।

वर्ष 1970 में विजय आनंद निर्देशित फिल्म ‘जॉनी मेरा नाम’ में ‘नफरत करने वालो के सीने में प्यार भर दू’, ‘पल भर के लिए कोई मुझे प्यार कर लें’ जैसे रुमानी संगीत देकर कल्याणजी-आंनद जी ने श्रोताओं का दिल जीत लिया। मनमोहन देसाई के निर्देशन में फिल्म सच्चा-झूठा के लिए कल्याणजी-आनंद जी ने बेमिसाल संगीत दिया। ‘मेरी प्यारी बहनियां बनेगी दुल्हनियां’ को आज भी शादी के मौके पर सुना जा सकता है।

वर्ष 1989 मे सुल्तान अहमद की पिल्म ‘दाता’ में उनके कर्णप्रिय संगीत से सजा यह गीत ‘बाबुल का ये घर बहना एक दिन का ठिकाना है’ आज भी श्रोताओं की आंखो को नम कर देता है। वर्ष 1968 में प्रदर्शित फिल्म ‘सरस्वती चंद्र के लिए कल्याणजी’ आनंद जी को सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का नेशनल अवॉर्ड के साथ-साथ फिल्म फेयर पुरस्कार भी दिया गया। इसके अलावा वर्ष 1974 में प्रदर्शित ‘कोरा कागज’ के लिए भी कल्याणजी-आनंद जी को सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का फिल्म फेयर पुरस्कार दिया गया।

कल्याणजी ने अपने सिने कैरियर में लगभग 250 फिल्मों को संगीतबद्ध किया। वर्ष 1992 में संगीत के क्षेत्र मे बहुमूल्य योगदान को देखते हुए वह पद्मश्री से सम्मानित किये गये।लगभग चार दशक तक अपने जादुई संगीत से श्रोताओं को भावविभोर करने वाले कल्याण जी 24 अगस्त 2000 को इस दुनिया को अलविदा कह गए।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो