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लता जी को पहचान दिलाने वाले संगीतकार गुलाम हैदर की पुण्यतिथि आज

गुलाम हैदर ने लता मंगेशकर को अपनी फिल्म “मजबूर” में गाने का मौका दिया

Oct 08, 2015 / 11:57 pm

विकास गुप्ता

Ghulam Haider composer

Ghulam Haider composer

मुंबई। लता मंगेशकर के सिने करियर के शुरूआती दौर में कई निर्माता- निर्देशक और संगीतकारों ने पतली आवाज के कारण उन्हें गाने का अवसर नहीं दिया लेकिन उस समय एक संगीतकार ऎसे भी थे, जिन्हें लता मंगेशकर की प्रतिभा पर पूरा भरोसा था और उन्होंने उसी समय भविष्यवाणी कर दी थी। यह लड़की आगे चलकर इतना अधिक नाम क रेगी कि बडे से बडे निर्माता-निर्देशक और संगीतकार उसे अपनी फिल्म में गाने का मौका देंगे। यह संगीतकार थे-गुलाम हैदर।

1908 में जन्में गुलाम हैदर ने स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद दंत चिकित्सा की पढ़ाई शुरू की थी। इस दौरान अचानक उनका रूझान स ंगीत की ओर हुआ और उन्होंने बाबू गणेश लाल से संगीत की शिक्षा लेनी शुरू कर दी। दंत चिकित्सा की पढ़ाई पूरी करने के बाद वह दंत चिकित्सक के रूप में काम करने लगे। 5 साल तक दंत चिकित्सक के रूप में काम करने के बाद गुलाम हैदर का मन इस काम से उचट गया। उन्हें ऎसा महसूस हुआ कि संगीत के क्षेत्र में उनका भविष्य अधिक सुरक्षित होगा।

इसके बाद वह कलकत्ता की एलेक्जेंडर थियेटर कंपनी में हारमोनियम वादक के रूप में काम करने लगे। साल 1932 में गुलाम हैदर की मुलाकात निर्माता निर्देशक ए आरकारदार से हुई जो उनकी संगीत प्रतिभा से काफी प्रभावित हुए। कारदार उन दिनों अपनी नई फिल्म “स्वर्ग की सीढी” के लिए संगीतकार की तलाश कर रहे थे। उन्होंने हैदर से अपनी फिल्म में संगीत देने की पेशकश की लेकिन अच्छा संगीत देने के बावजूद फिल्म बॉक्स आफिस पर असफल रही।

इस बीच गुलाम हैदर को डी एम पंचोली की साल 1939 में रिलीज प ंजाबी फिल्म “गुल ए बकावली” में संगीत देने का मौका मिला। फिल्म में नूरजहां की आवाज में गुलाम हैदर का संगीतबद्ध गीत “पिंजरे दे विच कैद जवानी… उन दिनों सबकी जुबान पर था। वर्ष 1941 गुलाम हैदर के सिने करियर का अहम वर्ष साबित हुआ। फिल्म “खजांची” में उनके स ंगीतबद्ध गीतों ने भारतीय फिल्म संगीत की दुनिया में एक नए युग की शुरूआत कर दी।

1930 से 1940 के बीच संगीत निर्देशक शास्त्रीय राग रागिनियों पर आधारित संगीत दिया करते थे लेकिन गुलाम हैदर इस विचारधारा के पक्ष में नहीं थे। गुलाम हैदर ने शास्त्रीय संगीत में पंजाबी धुनों कामिश्रण क रके एक अलग तरह का संगीत देने का प्रयास दिया और उनका यह प्रयास काफी सफल भी रहा। 1946 में रिलीज फिल्म “शमां” में अपने संगीतबद्ध गीत “गोरी चली पिया के देश… हम गरीबों को भी पूरा कभी आराम कर दे… और एक तेरा सहारा … में उन्होंने तबले का बेहतर इस्तेमाल किया। जो श््रोताओ को काफी पसंद आया।

इस बीच. उन्होंने बांबे टॉकीज के बैनर तले बनी फिल्म “मजबूर” के लिए भी संगीत दिया। गुलाम हैदर ने लता मंगेशकर को अपनी फिल्म “मजबूर” में गाने का मौका दिया और उनकी आवाज में संगीतबद्ध गीत “दिल मेरा तोडा.. कहीं का न छोड़ा तेरे प्यार ने… श््रोताओं के बीच काफी लोकप्रिय हुआ। इसके बाद ही अन्य संगीतकार भी उनकी प्रतिभा को पहचानकर उनकी तरफ आकर्षित हुए और अपनी फिल्मों में लता म ंगेशकर को गाने का मौका दिया तथा उन्हें फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में कामयाबी मिली।

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