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संगीतकार नहीं बनना चाहते थे ओ पी नैय्यर

Published: Jan 16, 2017 12:24:00 am

बतौर संगीतकार ओ पी नैय्यर ने वर्ष 1952 में प्रदर्शित फिल्म ‘आसमान’ से अपने सिने कैरियर की शुरुआत की

OP Nayyar

OP Nayyar

मुंबई। बॉलीवुड में ओ पी नैय्यर का नाम एक ऐसे संगीतकार के रूप में याद किया जाता है जिन्होंने आशा भोंसले और गीता दत्त समेत कई गायक-गायिकाओं को कामयाबी के शिखर पर पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई। 16 जनवरी, 1926 को लाहौर शहर के एक मध्यम वर्गीय परिवार में जन्में ओ पी नैयर का रुझान बचपन से ही संगीत की ओर था और वह पाश्र्वगायक बनना चाहते थे। दस वर्ष की उम्र में सबसे पहले उन्हें पंडित गोविंदराम के संगीत निर्देशन में पंजाबी फिल्म ‘दुल्हा भट्टी’ में कोरस के रूप में गाने का अवसर मिला।

उन्हें बतौर पारिश्रमिक दस रुपए मिले। इस बीच उन्होंने आकाशवाणी द्वारा प्रसारित कई कार्यक्रमों में भी अपना संगीत दिया। भारत विभाजन के पश्चात उनका पूरा परिवार लाहौर छोड़कर अमृतसर चला आया। वर्ष 1949 में बतौर संगीतकार फिल्म इंडस्ट्री में पहचान बनाने के लिए ओ पी नैयर मुंबई आ गए। मुंबई मे उनकी मुलाकात जाने-माने निर्माता-निर्देशक कृष्ण केवल से हुई जो उन दिनों फिल्म ‘कनीज’ का निर्माण कर रहे थे। कृष्ण केवल उनके संगीत बनाने के अंदाज से काफी प्रभावित हुए और उन्होंने फिल्म के ‘बैक ग्राउंड’ संगीत देने की पेशकश की।

वर्ष 1951 में अपने एक मित्र के कहने पर वह मुंबई से दिल्ली आ गए और बाद में उसी मित्र के कहने पर उन्होंने निर्माता पंचोली से मुलाकात की जो उन दिनों फिल्म ‘नगीना’ का निर्माण कर रहे थे। बतौर संगीतकार ओ पी नैय्यर ने वर्ष 1952 में प्रदर्शित फिल्म ‘आसमान’ से अपने सिने कैरियर की शुरुआत की। इस बीच उनकी ‘छमा छम छम’ और ‘बाज’ जैसी फिल्में भी प्रदर्शित हुईं, लेकिन इन फिल्मों के असफल होने से उन्हें गहरा सदमा पहुंचा।

वर्ष 1953 पाश्र्वगायिका गीता दत्त ने ओ पी नैयर को गुरूदत्त से मिलने की सलाह दी। वर्ष 1954 में गुरूदत्त ने अपनी निर्माण संस्था शुरू की और अपनी फिल्म ‘आरपार’ के संगीत निर्देशन की जिम्मेदारी ओ. पी. नैयर को सौंप दी। फिल्म ‘आरपार’ ओ .पी.नैयर के निर्देशन में संगीतबद्ध गीत सुपरहिट हुए और इस सफलता के बाद ओ.पी. नैयर अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए।

उनके पसंदीदा गायकों में मोहम्मद रफी का नाम सबसे पहले आता है। पचास और साठ के दशक में उनके संगीत निर्देशन में रफी ने कई गीत गाए। ओ पी नैय्यर मोहम्मद रफी के गाने के अंदाज से बहुत प्रभावित थे। उन्होंने किशोर कुमार के लिए मोहम्मद रफी से ‘मन मोरा बांवरा’ गीत फिल्म ‘रंगीली’ के लिए गवाया। ओ पी नैयर मोहम्मद रफी के प्रति अपने प्रेम को दर्शाते हुए अक्सर कहा करते थे ‘इफ देयर हैड बीन नो मोहम्मद रफी, देयर वुड हैव बीन नो ओ. पी नैयर।’ यानी ‘मोहम्मद रफी नहीं होते तो ओ पी नैयर भी नहीं होते।’

पचास के दशक में वह शोहरत की बुंलदियो पर जा पहुंचे। तुमसा नहीं देखा, बाप रे बाप, सीआईडी, फागुन और हावड़ा ब्रिज जैसी फिल्में आज भी नैयर के बेमिसाल संगीत के कारण याद की जाती हैं। वर्ष 1958 में प्रदर्शित फिल्म हावड़ा ब्रिज का गीत ‘मेरा नाम चिनचिनचू’ श्रोताओं के बीच काफी लोकप्रिय हुआ। वर्ष 1957 में प्रदर्शित फिल्म नया दौर उनके सिने कै
रियर के लिए अहम मोड़ साबित हुई। इस फिल्म में उनके संगीतबद्ध गीत ‘उड़े जब जब जुल्फें तेरी’ तथा मांग के साथ तुम्हारा सुपरहिट साबित हुए।

साथ ही फिल्म के लिए उन्हें अपने सिने कैरियर का पहला फिल्म अवॉर्ड भी मिला। साठ के दशक में भी उन्होंने अपने जादुई संगीत से श्रोताओं को अपनी ओर बाधें रखा। वर्ष 1966 में प्रदर्शित फिल्म बहारे फिर भी आएंगी में उन्होंने ‘आपके हसीं रुख पर’ जैसे गानों में सारंगी और पियानो का इस्तेमाल करके इसे और अधिक मधुर और लोकप्रिय बना दिया। लगभग चार दशक तक अपनी मधुर संगीत लहरियों से श्रोताओं के दिलों में खास पहचान बनाने वाले ओ पी नैयर 28 जनवरी, 2007 को इस दुनिया को अलविदा कह गए।
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