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पालने को पहल का इन्तजार

अनचाहे नवजात की रक्षा के लिए मातृ एवं शिशु अस्पताल में बनाया गया पालना घर भी उद्घाटन के ‘भंवर

टोंकApr 28, 2016 / 04:00 am

मुकेश शर्मा

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टोंक।अनचाहे नवजात की रक्षा के लिए मातृ एवं शिशु अस्पताल में बनाया गया पालना घर भी उद्घाटन के ‘भंवर जालÓ में फंसा है।सियासी खींचतान के चलते नवजात का ‘पालनाÓ शुरू नहीं हो सका। हालांकि विभागीय अधिकारियों का कहना है कि इसे शुरू करने की कवायद पूरी कर ली गई है, लेकिन अस्पताल का उद्घाटन नहीं होने से पालना अभी नवजातों की पहुंच से दूर है। उल्लेखनीय है कि अनचाहे नवजात की जान बचाने को लेकर सरकार की ओर से नवनिर्मित मातृ एवं शिशु अस्पताल परिसर में ही पालनाघर बनवाकर उनमें पालने लगाए गए हैं। अस्पताल का काम छह महीने पहले पूरा होने के बाद सार्वजनिक निर्माण विभाग ने इसे चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग व वहां से सआदत अस्पताल के पीएमओ के सुपुर्द कर दिया, लेकिन अस्पताल का उद्घाटन नहीं होने से पालना घर भी शुरू नहीं हो सका।

शहर के जागरूक लोगों का कहना है कि पालना स्थल सआदत अस्पताल के आसपास आबादी क्षेत्र में ही बनाया जाना चाहिए था। आबादी से दूर व मातृ एवं शिशु अस्पताल परिसर में खुले में इसकी स्थापना करने से कई माताएं झिझक के चलते यहां तक नहीं पहुंच सकेंगी। इसे शुरू कराने के लिए विभाग की ओर से प्रचार-प्रसार कर अधिकारियों को भी रूचि
लेनी होगी।

ये है विशेषता

पालना गृह में शिशु का सुरक्षित परित्याग करने वाली जननी की पहचान गुप्त रखने का प्रावधान है। नवजात को छोडऩे वाले को नियमों के तहत रोका भी नहीं जाएगा तथा उससे किसी प्रकार की पूछताछ भी नहीं की जाएगी। उसके खिलाफ पुलिस कार्रवाई भी नहीं की जाएगी। पालने में शिशु के आने के दो मिनट बाद कम्प्यूराइज्ड घंटी बजेगी। इसके बजने पर पालनाघर के कार्मिक उसकी सम्भाल करेंगे। इस दो मिनट के बीच इसे छोडऩे वाला भी वहां से निकल चुका होगा।

प्रत्येक वर्ष आधा दर्जन

प्रत्येक वर्ष जिले में औसतन आधा दर्जन ऐसे नवजात के झाडिय़ों आदि में छोड़े जाने की सूचना पुलिस को मिलती रही है। समय रहते उपचार नहीं मिलने से ये दम भी तोड़ देते हैं। गत दिनों पीपलू क्षेत्र के जंवाली के पास खेत में मिले नवजात को जनप्रतिनिधियों ने जनाना अस्पताल लाकर भर्ती कराया, लेकिन अधिक रक्त बहने व संक्रमण फैलने से उसे बचाया नहीं जा सका।

पहले उद्घाटन तो हो

 अस्पताल का उद्घाटन होने पर ही पालना घर का संचालन सम्भव है। इसके लिए अलग से स्टाफ की जरूरत होगी। अस्पताल शुरू होने पर इस बारे में उच्चाधिकारियों को पत्र भेजा जाएगा।डॉ. एस. एन. वर्मा, प्रमुख चिकित्साधिकारी, सआदत अस्पताल टोंक।

यह था उद्देश्य

आए दिन कुछ जननियां अनचाहे नवजात को हर कही फेंक जाती हैं। इससे नवजात की जान पर बन आती है। सरकार की ओर से पालना घर की स्थापना का उद्देश्य ऐसे नवजात को ‘फेंको मत, हमें दोÓ वाला है। बिना पहचान बताए जननियां इसमें अनचाहे नवजात को छोड़कर जा सकती हैं। अब तक होता यह आया है कि लोक लाज के चलते कचरा-पात्र, झाडिय़ों तालाबों आदि स्थानों पर जननियां नवजात को फेंक देती थी। ऐसे में समय रहते उपचार नहीं मिलने से वे दम तोड़ देते थे। अब इसमें रखने से उनकी जान बचाई जा सकेगी। पालने में शिशु को छोडऩे के बाद पालनाघर का स्टाफ उसे अपनी सुपुर्दगी में लेकर उपचार व पर्सनल केयर करेंगे। इसके बाद उसे शिशु वार्ड में शिफ्ट कर दिया जाएगा।

बचाई जा सकेगी ‘लाडोÓ

पालने में आने वाले प्रत्येक नवजात की पहले चिकित्सकों की ओर से सभी जांच की जाएगी। उसके बाद उसका सम्पूर्ण उपचार किया जाएगा। इसके बाद ही उसे अस्पताल से छुट्टी दी जाएगी। जिला न्यायालय से बच्चे का ‘दत्तक ग्रहणÓ के माध्यम से पुनर्वास किया जाएगा। इससे नि:संतान दम्पती के घरों में भी किलकारी गूंज सकेगी। उन्हें भी जीने का एक उद्देश्य मिलेगा। चिकित्साकर्मियों का मानना है कि अनचाहे नवजात में अधिकतर बेटियां होने के मामले सामने आए हैं। ऐसे में पालनाघर के संचालन से कई ‘लाडोÓ बचाई जा सकेंगी।

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