राजाधिराज भगवान महाकाल चांदी की पालकी में सवार होकर नगर भ्रमण पर निकले। सावन मास के दूसरे सोमवार को भगवान चंद्रमौलेश्वर के रूप में पालकी में विराजे और हाथी पर मनमहेश स्वरूप में भक्तों को दर्शन दिए।
Mahakal palki rides in city
उज्जैन. राजाधिराज भगवान महाकाल चांदी की पालकी में सवार होकर नगर भ्रमण पर निकले। सावन मास के दूसरे सोमवार को भगवान चंद्रमौलेश्वर के रूप में पालकी में विराजे और हाथी पर मनमहेश स्वरूप में भक्तों को दर्शन दिए। बाबा महाकाल की सवारी का दर्शन लाभ लेने हजारों भक्त दूरदराज से यहां आए हुए थे। अपने आराध्य की एक झलक पाने की दीवानगी ऐसी थी कि वे घंटों इंतजार करते रहे। जैसे ही पालकी नजरों के सामने आई, तो दोनों हाथ जोड़कर जयकारे लगाने लगे।
अनादिकाल से है परंपरा
सवारी निकाली जाने की यह परंपरा अनादिकाल से मानी गई है। पं. आनंदशंकर व्यास ने बताया कि यही वजह है कि श्रावण-भादौ मास में जब तक सवारी लौटकर नहीं आती, महाकाल की संध्या आरती नहीं होती। ऐसा माना जाता है कि प्रभु मुघौटे में विराजित हो नगर भ्रमण पर गए हैं। उज्जैन में भगवान शिव राजा के रूप में विराजमान हैं। श्रावण मास में वे अपनी प्रजा का हालचाल जानने के लिए नगर भ्रमण पर निकलते हैं।
प्रजा से मिलने आते हैं भगवान
प्रजा से मिलने स्वयं महाकाल नगर भ्रमण करते हैं। प्रजा भी अपने राजा से मिलने के लिए इस कदर बेताब होती है कि शहर के चौराहे-चौराहे पर स्वागत की विशेष तैयारी की जाती है। शाम चार बजे राजकीय ठाट-बाट और वैभव के साथ राजा महाकाल विशेष रूप से फूलों से सुसज्जित चांदी की पालकी में सवार होते हैं।
हाथी, घोड़े, चंवर डूलाते कर्मी व, सरकारी बैंड की दिल धड़काती धुन, शहर के प्रतिष्ठित गणमान्य नागरिक, आम जन की श्रद्धा का उमड़ता सैलाब, बिल्वपत्र की विशेष रूप से बनी माला, झांझ-मंजीरे नगाड़ों के साथ होता अनवरत कीर्तन और अपने राजा को देख भर लेने की विकलता के साथ दर्शन करने वालों का मन भाव-विभोर हो जाता है। राजा महाकाल सबसे मिलते हैं, सबको दर्शन देते हैं।