श्रीकांत की गांधी परिवार से नजदीकी ने कराई वरुण और अभिषेक की मित्रता यह बात जगजाहिर है कि अभिषेक वर्मा और वरुण गांधी बचपन के मित्र रहे हैं। एक वक्त श्रीकांत वर्मा को इंदिरा गांधी के साथ साथ संजय गांधी के प्रमुख रणनीतिक सलाहकारों में गिना जाता था.उस वक्त अभिषेक का नियमित तौर पर गांधी परिवार में आना जाना था वरुण गांधी को इस बात का कत्तई अंदाजा नहीं रहा होगा कि उनको अपनी मित्रता के बदले ऐसे आरोपों से जूझना होगा।
सत्ता की चकाचौंध ने बदल दी अभिषेक की जिंदगी जहाँ तक अभिषेक वर्मा का सवाल है ,1968 में जन्में अभिषेक वर्मा का पूरा बचपन श्रीकांत की कविताओं की दुनिया में नहीं बल्कि सत्ता की चकाचौंध के बीच ज्यादा बीता। जब वो चार साल का था श्रीकांत वर्मा राज्यसभा सांसद बन गए ,अभिषेक की माँ वीणा वर्मा कांग्रेस उपाध्यक्ष होने के साथ साथ 14 साल तक सांसद रही | बताया जाता है कि अभिषेक वर्मा द्वारा पिता के रसूख का इस्तेमाल करके लोग को धमकाने की खबर श्रीकांत वर्मा को भी मिलती रही लेकिन उन्होंने उसकी अनदेखी की।1984 के सिक्ख दंगों में जगदीश टाइटलर के खिलाफ मुख्य गवाह अभिषेक वर्मा 1996 में हुए चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी भी घोषित किया गया था लेकिन अंतिम समय में उसने अपना नाम वापस ले लिया। उसके बाद 2006 में अभिषेक वर्मा का नाम स्कोर्पियन पनडुब्बी घोटाले में सामने आया ,फिर देश में हुए तमाम हथियारों के सौदे में अभिषेक वर्मा द्वारा दलाली खाए जाने के मामले सामने आते रहे। सीबीआई ने हथियार डीलर अभिषेक वर्मा और उनकी नवविवाहित रोमानियाई पत्नी को कथित रूप से स्विट्जरलैंड की हथियार कंपनी से उसे भारत सरकार की काली सूची से हटाने के बदले राशि प्राप्त करने के लिए शुक्रवार को गिरफ्तार कर लिया।जून 2012 में सीबीआई ने वर्मा और उनकी पत्नी एंसिया निएस्कू को गिरफ्तार कर लिया उन पर कथित जाली पासपोर्ट और नौसैनिक युद्धकक्ष से गोपनीय वाणिज्यिक सूचना विदेशी कंपनियों को लीक करने के मामले में गिरफ्तार किया था ।
कवि का बेटा आर्म्स डीलर लेखक सुधेंदु ओझा कहते हैं क्या श्रीकांत वर्मा ने कभी सोचा होगा कि उनका बेटा एक ऐसे संदिग्ध पेशे में जाएगा जिसका प्रतिरोध जीवन भर उनकी कविता करती रही? चाहें तो कह सकते हैं कि उन्होंने अपनी जिंदगी जी थी और उनका बेटा अपनी ज़िन्दगी जी रहा है. फिर, यह पिता और पुत्र के बीच का मामला है जिसमें कवि को घसीटा नहीं जाना चाहिए । लेकिन यह विडंबना फिर भी अलक्षित नहीं रह जाती वह एक अनुत्तरित प्रश्न छोड़ जाती है कि श्रीकांत वर्मा जैसे संवेदनशील और समर्थ कवि अपने पुत्र को संस्कार की क्या थाती पकड़ा गए। अभिषेक जरायम के पेशे में कब उतरा इसका ठीक ठीक पता नहीं लेकिन यह बात काबिलेगौर है कि उसके सम्बन्ध राजीव गांधी और बाद में नरसिम्हा राव से बेहद अच्छे थे । उसने अपने पैतृक घर बिलासपुर में कई सामाजिक कार्य किये तो 2005 में चीनी राष्ट्रपति वेन जियाआबो के भारत आगमन पर चीनी कंपनी जेडटीई के साथ उस वक्त भारत के साथ हुआ सबसे बड़ा करार किया ,एक वक्त वो एक पत्रिका का सम्पादक भी था।
अभिषेक के अनोखे कारनामे यह बात कम दिलचस्प नहीं है कि अभिषेक वर्मा जिन जगदीश टाइटलर के खिलाफ दिल्ली दंगों में मुख्य गवाह थे वो जगदीश टाइटलर वरुण गांधी के पिता स्वर्गीय संजय गांधी के अभिन्न मित्र रहे हैं। जगदीश ने संजय गांधी की बदौलत ही मुख्यधारा की राजनीति में प्रवेश किया था | लेकिन एक कहानी ऐसी है जो अभिषेक वर्मा की धूर्तता का पर्दाफ़ाश करती है ,जिस जगदीश टाइटलर के खिलाफ अभिषेक मुख्य गवाह रहा है उन्ही के साथ मिलकर उसने एक बड़े फर्जीवाड़े को अंजाम दिया था। 2009 में जगदीश टाइटलर और अभिषेक वर्मा ने कथित तौर पर एक चीनी फार्म का व्यावसायिक वीजा बढवाने के लिए तत्कालीन गृह राज्य मंत्री अजय मकान के पैड का इस्तेमाल करके तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह को एक पत्र लिखा और जगदीश टाइटलर के घर पर अभिषेक वर्मा ने चीनी कंपनी के अधिकारियों को वो पत्र दिखाकर 50 लाख रूपए वसूल लिए | सीबीआई द्वारा इस मामले में दोनों के ही खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर दी गई है।