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जानिए आरक्षण की कहानी, जिससे जल उठा था देश

locationवाराणसीPublished: Aug 30, 2016 04:43:00 pm

मंडल कमीशन, जानिए कब क्या हुआ, कितने लोगों की गई थी जान

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वाराणसी. यूपी में विधानसभा चुनाव सिर पर है तो एक बार फिर आरक्षण का मुद्दा भी उठता जा रहा है। आरएसएस ने बिहार चुनाव से पहले आरक्षण की समीक्षा की बात उठाई थी, संघ समीक्षा के माध्यम से मजबूत और दबंग, प्रभावशाली जातियों को आरक्षण से बाहर का रास्ता दिखाने चाहती है। सुप्रीम कोर्ट ने भी एक याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा था कि जिन जातियों का सशक्तिकरण हो गया है, उन्हें आरक्षण की सूची से बाहर करना चाहिए। आरक्षण का जब भी जिक्र होता है, तो मंडल कमीशन की यादें ताजा हो जाती है।

आरक्षण का यह मुद्दा हर चुनाव में उठता रहा है और इसकी आड़ में राजनीतिक दल अपनी रोटियां सेंकने में जुटे ही रहते हैं। आरक्षण के नाम पर देश भर में कई आंदोलन भी हुए, जिसमें कई लोगों ने अपनी जान भी गवाई।

वी पी सिंह की सरकार ने लाया मंडल कमीशन
नौवीं लोकसभा चुनावों ने भारतीय राजनीति में एक नए युग की शुरुआत की। सामाजिक न्याय के मसीहा वीपी सिन्हा भारत के प्रधानमंत्री बने और उन्होंने सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ी जातियों के लिए वी पी सिंह ने नए अवसरों के द्वार खोल दिये। वी पी सिंह ने पिछड़ी जातियों को आरक्षण पर बनी मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू कर दिया।

आरक्षण के विरोध में देश भर में उबाल
मंडल कमीशन लागू होते ही देश भर में आरक्षण को लेकर आग लग गई। आरक्षण के खिलाफ लोग सड़कों पर उत्तर गये और देश भर में कई हिंसक झड़प भी हुए। 19 सितंबर 1990 को दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र एसएस चौहान ने आरक्षण के विरोध में आत्मदाह कर लिया, वहीं 24 सितंबर 1990 को पटना में आरक्षण विरोधियों और पुलिस के बीच झड़प हुई जिसमें पुलिस फायरिंग में चार छात्रों की मौत हो गई। राजनीतिक दलों ने इस मुद्दे पर सियासी रोटियां भी खूब सेकीं।

क्या है मंडल कमीशन:
1979 में मोरारजी देसाई की सरकार द्वारा गठित किये गए 6 सदस्यों वाले इस आयोग की निगरानी बिहार के 7वें मुख्य मंत्री बिन्देश्वरी नारायण मंडल कर रहे थे। उनकी रिपोर्ट अगले साल (1980) में आई। मंडल आयोग ने जातियों को आरक्षण के सूत्र में बांधने के लिए, सन 1931 (60वर्ष पुरानी) के जनगणना को अपनी रिपोर्ट का आधार बनाया था जिसमें 3743 जाति तथा समुदाय शामिल थे जिन्हें ओबीसी का दर्ज़ा देने के साथ तत्कालीन आरक्षण 22.5त्न में 27त्न और जोड़ने का सुझाव दिया गया।

आइए एक नज़र डालते हैं मंडल कमीशन की सिफारिशों से लेकर इसे लागू किए जाने तक के घटनाक्रम पर :

तारीख के आईने में मंडल कमीशन

20 दिसंबर 1978 : सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की स्थिति की समीक्षा के लिए मोरारजी देसाई सरकार ने बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल की अध्यक्षता में छह सदस्यीय पिछड़ा वर्ग आयोग के गठन की घोषणा की।

1 जनवरी 1979 : आयोग के गठन के लिए अधिसूचना जारी।

दिसंबर 1980 : मंडल आयोग ने तत्कालीन गृह मंत्री ज्ञानी जैल सिंह को रिपोर्ट सौंपी। इसमें अन्य पिछड़े वर्गों को 27 फीसदी आरक्षण दिए जाने की सिफारिश की गई।

सन 1982 : आरक्षण पर मंडल कमीशन की रिपोर्ट को संसद में पेश किया गया।

सन 1989 : लोकसभा चुनाव में जनता दल ने आयोग की सिफारिशों को चुनावी घोषणापत्र में शामिल किया।

7 अगस्त 1990 : तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू करने की घोषणा की।

9 अगस्त 1990 : मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करने को लेकर विश्वनाथ प्रताप सिंह से मतभेद के बाद उप-प्रधानमंत्री देवीलाल ने इस्तीफ़ा दे दिया।

10 अगस्त 1990 : आयोग की सिफारिशों के तहत सरकारी नौकरियों में आरक्षण की व्यवस्था करने के खि़लाफ देशव्यापी विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए।

13 अगस्त 1990 : मंडल आयोग की सिफारिश लागू करने की अधिसूचना जारी।

14 अगस्त 1990 : अखिल भारतीय आरक्षण विरोधी मोर्चा के अध्यक्ष उज्जवल सिंह ने आरक्षण प्रणाली के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की।


19 सितंबर 1990 : दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र एसएस चौहान ने आरक्षण के विरोध में आत्मदाह कर लिया। एक अन्य छात्र राजीव गोस्वामी ने भी खुद को आग लगाकर आत्महत्या करने की कोशिश की और बुरी तरह झुलस गया।

24 सितंबर 1990 : पटना में आरक्षण विरोधियों और पुलिस के बीच झड़प। पुलिस फायरिंग में चार छात्रों की मौत।

17 जनवरी 1991 : केंद्र सरकार ने पिछड़े वर्गों की सूची तैयार की।

8 अगस्त 1991 : रामविलास पासवान ने केंद्र सरकार पर आयोग की सिफ़ारिशों को पूर्ण रूप से लागू करने में विफल होने का आरोप लगाते हुए जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन किया। पासवान गिरफ़्तार किए गए।

25 सितंबर 1991 : नरसिंह राव सरकार ने सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की पहचान की। आरक्षण की सीमा बढ़ाकर 59.5 प्रतिशत करने का फ़ैसला किया। इसमें ऊंची जातियों के अति पिछड़ों को भी आरक्षण देने का प्रावधान किया गया।

25 सितंबर 1991 : दक्षिणी दिल्ली में आरक्षण का विरोध कर रहे छात्रों पर पुलिस फायरिंग में दो की मौत।

1 अक्टूबर 1991 : सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से आरक्षण के आर्थिक आधार का ब्यौरा मांगा।

2 अक्टूबर 1991 : आरक्षण विरोधियों और समर्थकों के बीच कई राज्यों में झड़प। गुजरात में शैक्षणिक संस्थान बंद किए गए।

10 अक्टूबर 1991 : इंदौर के राजवाड़ा चौक पर स्थानीय छात्र शिवलाल यादव ने आत्मदाह की कोशिश की।

30 अक्टूबर 1991 : मंडल आयोग की सिफारिशों के खि़लाफ़ दायर याचिका की सुनवाई कर रही सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने यह मामला नौ न्यायाधीशों की पीठ को सौंप दिया।

17 नवंबर 1991 : राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश और उड़ीसा में एक बार फिर उग्र विरोध प्रदर्शन। उत्तर प्रदेश में एक सौ गिरफ़्तार प्रदर्शनकारियों ने गोरखपुर में 16 बसों में आग लगाई।

19 नवंबर 1991 : सुप्रीम कोर्ट ने भी मंडल आयोग की रिपोर्ट को लागू करने की अनुमति दे दी। दूसरी तरफ दिल्ली विश्वविद्यालय के उत्तरी परिसर में पुलिस और छात्रों के बीच झड़प लगभग 50 लोग घायल। मुरादाबाद में दो छात्रों ने आत्मदाह का प्रयास किया।

16 नवंबर 1992 : सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फ़ैसले में मंडल आयोग की सिफ़ारिशों को लागू करने के फ़ैसले को वैध ठहराया। साथ ही आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत रखने और पिछड़ी जातियों के उच्च तबके को इस सुविधा से अलग रखने का निर्देश दिया।

8 सितंबर 1993 : केंद्र सरकार ने नौकरियों में पिछड़े वर्गों को 27 फीसदी आरक्षण देने की अधिसूचना जारी की।

20 सितंबर 1993: दिल्ली के क्रांति चौक पर राजीव गोस्वामी ने इसके खिलाफ़ एक बार फिर आत्मदाह का प्रयास किया।

23 सितंबर 1993 : इलाहाबाद की इंजीनियरिंग की छात्रा मीनाक्षी ने आरक्षण व्यवस्था के विरोध में आत्महत्या की।

20 फरवरी 1994 : मंडल आयोग की सिफारिशों के तहत वी राजशेखर आरक्षण के जरिए नौकरी पाने वाले पहले अभ्यार्थी बने। समाज कल्याण मंत्री सीताराम केसरी ने उन्हें नियुक्ति पत्र सौंपा।

1 मई 1994 : गुजरात में राज्य सरकार की नौकरियों में मंडल आयोग की सिफारिशों के तहत आरक्षण व्यवस्था लागू करने का फ़ैसला किया।
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