सौन्दर्य की चाहत का बाजारवाद
Published: Jul 24, 2017 10:36:00 am
सहजता और सादगी ही नारी का आभूषण
-डॉ. विमलेश शर्मा
स्त्री सादगी का ही दूजा नाम है, कई संदर्भों में… आप इसे अतिशयोक्ति कहें तो कहें… पर मुझे इस कथन से कोई गुरेज़ नही। ममत्व, प्रेम तो सादगी के ही प्रतिरुप हुए ना फिर उसका आलम्बन बनावटी कैसे हो सकता है । रही बात नेचुरल सेल्फी अभियान की तो इससे भी गर कुछ बेहतर हो तो हम साथ हैं इस चलन के भी ।
सौन्दर्य के प्रसाधनों का उपयोग भी स्त्री अपनी जन्मना सौन्दर्य वादी दृष्टिकोण के तहत ही कर पाती है। कोई ओर आजमा कर देख ले भले। प्रकृति उसे विरासत में देती है यह गुण। पुरुषों में यह गुण कम ही मिलेगा, नदारद तो कतई नहीं कहूँगी।
पर बात इतनी सी ही थोड़ी है जितनी नज़र आती है। कभी व्यवहार में तो कभी अंतहीन दौड़ में कितना कुछ बदलता जा रहा है। नन्हें गालों पर मेकअप पुता देखती हूँ तो भीतर एक कचोट उठती है कि कितनी जल्दी यें भी उस प्रतिस्पर्धा का, जिसे बाजार ने पैदा किया का हिस्सा बन गयीं।
सर्जरी, महंगे सौन्दर्य प्रसाधन, चिट्टियां कलाइयाँ वाली मानसिकता तो समाज की ही उपज है। जहाँ यह होड़ आ जाती है, श्रेष्ठ और कमतरी का भाव आ जाता है, गड़बड़ी वहीं हो जाती है। लगता नहीं है की यह धारणा इतनी जल्दी बदल पायेगी। हम सभी सहज रहें, मनसा सादा रहें, काफी है बस्स।
काजल मुझे भी बेहद पसंद है और प्रसाधनों में इसी का प्रयोग भी करती हूँ। हम बुनावट के लिए नहीं वरन् मूल प्रवृत्तियों के चलते ही इन प्रसाधनों का प्रयोग करें तो बेहतर। डरती हूँ कि बाज़ार सादगी पर अतिक्रमण ना कर जाए कहीं ।
यही कहूँगी खुश रहिए, खिले रहिए.. चाहे जैसे भी रहें..।
-फेस बुक वाल से साभार