बीटेक की छात्रा मुग्धा और एकता एक दिन कॉलेज में यौन हिंसा पर व्याख्यान सुन रही थीं। इसमें महिलाओं की सामाजिक स्थिति और सार्वजनिक स्थलों पर छेड़छाड़ का भी जिक्र था और तभी दोनों को लगा कि इन मनचलों को सबक सिखाने के लिए कूछ अनूठा एवं असरदार उपाय खोजना होगा। मनचलों को अहिंसक तरीके से ऎसा सबक मिलना चाहिए कि वे भविष्य में छेड़खानी करने से पहले कम से कम सौ बार सोचें। उन्होंने अपने कॉलेज में 18 से 25 वष्ाü तक के युवाओं के बीच एक सर्वे कराया। यह जानने की कोशिश की कि जब किसी लड़की के साथ छेड़छाड़ की घटना होती है तो आसपास मौजूद लोग चुपचाप क्यों देखते रहते हैं? कोई इसका विरोध क्यों नहीं करता? सर्वे से निष्कष्ाü निकला कि लोग दो वजहों – मनचलों से डर लगने या फिर हमें क्या लेना-देना की सोच के कारण मूकदर्शक बने रहते हैं।
“हमारी न सही पर किसी की बेटी या बहन तो है”
मुग्धा और एकता का मानना है कि अगर आसपास के लोग संवेदनशील होंगे तो वे चुप रहने की बजाय मनचलों का विरोध करेंगे। लेकिन अधिकतर लोगों की सोच है कि सतायी जा रही लड़की कोई अपनी रिश्तेदार तो है नहीं फिर क्यों विरोध किया जाए? यही सोच मनचलों की हिम्मत बढ़ाती है जबकि ऎसी घटना तो किसी के भी साथ हो सकती है, हमारे अपनों के साथ भी। इसलिए इन मनचलों की हरकतों का विरोध करने के लिए हम लोगों का एकजुट होना जरूरी है। इस मुद्दे पर लेकर लोगों को जागरूक करने के लिए मुग्धा और एकता ने “ताली बजाओ अभियान” की शुरूआत की। इस पहल को उनके कॉलेज के ही तीन अन्य छात्रों का समर्थन मिला और पांच लोगों की टीम बन गई।
सोशल मीडिया का ले रहे सहारा
टीम ने अपने अभियान को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने के लिए सोशल मीडिया व अन्य तरीकों का भी इस्तेमाल किया। पारंपरिक तरीकों से ज्यादा व तात्कालिक असर सोशल मीडिया का होता है इसलिए फेसबुक व डबस्मैश के जरिये क्रिएटिव पोस्टर्स, वीडियो आदि से अपनी बात लोगों तक पहुंचा रहे हैं। युवाओं पर केंद्रित यह अभियान इसी वजह से लोकप्रिय हो रहा है।
“फिल्मी छेड़छाड़ भी गलत “
ताली बजाओ टीम कामानना है कि लड़कियों के साथ होने वाली छेड़खानी की घटनाओं पर रोक के लिए समाज की फिल्मी मानसिकता में भी बदलाव जरूरी है। जब फिल्म में हीरोइन को हीरो छेड़ता है तो पूरा सिनेमाहॉल सीटियों से गूंज उठता है। इसका सीधा मतलब है कि हमें नायक की हरकत पर कोई आपत्ति नहीं है। ऎसे चित्रण से सामाजिक सोच प्रभावित होती है और मनचले भी फिल्मी अंदाज में छेड़खानी करते हैं। टीम मानती है कि इस तरह का फिल्मांकन गैर जिम्मेदाराना है।
टीम का अभियान अभी दिल्ली तक ही सीमित है लेकिन सोशल मीडिया पर मिल रहे समर्थन को देखते हुए वे इसे विभिन्न राज्यों में ले जाना चाहते हैं। टीम के सदस्य इस बारे में लोगों के बीच जाकर उनसे सुझाव ले रहे हैं।
आवाज उठाना इसलिए है जरूरी, क्योंकि…
26 वें मिनट पर देश में एक लड़की या महिला छेड़खानी का शिकार होती है।
25 मिनट के अंतराल पर दिल्ली
में छेड़खानी की वारदात आती है सामने।
51.6त्न महिलाएं मानती हैं कि सार्वजनिक जगहों पर फब्तियों का होती हैं शिकार।
2014 में उत्तर प्रदेश में महिला उत्पीड़न के सबसे ज्यादा मामले सामने आए।आंकड़े – नेशनल क्राइम रिकॉड्र्स ब्यूरो 2014