scriptटूटते संयुक्त परिवारों का खतरा | Danger of decrease in joint families | Patrika News

टूटते संयुक्त परिवारों का खतरा

Published: Jul 25, 2016 06:34:00 pm

खुशहाली बढ़ती है साथ रहने से

spare some time with children

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– कृतिका रावत

प्राचीन परम्पराओं को हम देखेंगे तो पाएंगे कि संयुक्त परिवार होते थे। ९० फीसदी से ज्यादा लोग संयुक्त परिवारों में रहना पसंद करते थे। पीढिय़ों तक इस परिपाटी को निभाया जाता था। किसी कारणवश अलगाव की नौबत भी आ जाए तो उसमें परिवार के सब सदस्यों की सहमति होती थी। मेरा मानना है कि संयुक्त परिवार ही खुशहाल परिवार होता है। आज शहरी संस्कृति भले ही संयुक्त परिवारों को खत्म करती जा रही है लेकिन गांवों में आज भी लोग एक साथ रहना पसंद करते हैं।

संयुक्त परिवार में जो लोग रहते हैं उनको जीवन का भरपूर आनंद महसूस होता है। परिवार के सभी सदस्य एक दूसरे के सुख दु.ख में सहभागी होते हैं। पुरुष यदि रोजगार के सिलसिले में घर से बाहर भी है तो महिलाओं को अकेलापन नहीं अखरता। काम को बांटने से इसका बोझ हल्का भी हो जाता है। सबसे बड़ा फायदा यह है कि परिवारों के संयुक्त रहने से बच्चों का लालन-पालन बेहतर होता है। आर्थिक सुरक्षा तो होती ही है। इसी प्रकार घर परिवार के घरेलु एवं सामाजिक कार्य बहुत बार एक साथ आने पर संयुक्त परिवार में सभी सदस्य मिल बांट कर उस कार्य को पूरा करते है। उनके आपसी अनुभवों का भी एक दूसरे को काफी सहारा मिलता है। संयुक्त परिवार में होने वाला कोई भी कार्य सब की रजा मंदी से घर के मुखिया के निर्णय के बाद किया जाता है। इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि कोई भी कार्य गलत होने की संभावना नहीं रहती है।

संयुक्त परिवार में मुख्य रूप से फायदे निर्णय के संबंध में, व्यापार के संबंध में, निवेश के संबंध में, विवाह संस्कार के संबंध में और अन्य सामाजिक कार्यों को लेकर है। संयुक्त परिवार में बच्चे सुसंस्कारित होते है एवं सुख:दुख के संगी बनते है। संयुक्त परिवार हमारे समाज में एक ऐसी परंपरा है जो कि रामायण एवं महाभारत काल से चली आ रही है। रामायण काल में राजा दशरथ एवं उनके चारों पुत्रों ने संयुक्त परिवार प्रणाली का पालन किया। भगवान राम के वनवास जाने के बाद भी भरत ने उनकी चरणपादुकाओं के जरिए राज संभाला। महाभारत काल में भी पांडव संयुक्त रूप से रहे। ऐसे अनेक उदाहरण है जो कि संयुक्त परिवार के संस्कारों की कहानी कहता है। यदि आज भी हम गांव-गावं जाकर किसी भी संयुक्त परिवार की पीढिय़ों की कहानी उनकी जुबानी सुनेंगे तो उनके संस्कार, आपसी प्रेम एवं भाईचारा स्वत: ही जानने को मिलेगा।
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