बाजारवाद से मुक्त हो शिक्षा
हमारे देश में आज के शिक्षा प्रणाली बाजारवाद का स्वरूप लेती जा रही है
– कीर्ति चौधरी
हमारे देश में आज के शिक्षा प्रणाली बाजारवाद का स्वरूप लेती जा रही है। यह ऐसा व्यापार बनाता जा रह है जिसमें कभी मंदी नहींआती है। व्यापार में भी उतार – चढाव होते रहते है। कई बार नफा – नुकसान होता है, कभी बहुत ज्यादा लाभ तो कभी बहुत ज्यादा हानि व्यापार के क्षेत्र में आती है, परन्तु शिक्षा एक ऐसा क्षेत्र बन चुकी है जिसमे लाभ ही लाभ है। इसमें केवल दो व्यापारी है जो शिक्षा का व्यापार कर रहे है। एक जो शिक्षा बेच रहा है और दूसरा खरीददार जो इसकी कीमत लगा कर खरीददार बना है।जो पैसे के बल पर केवल शिक्षा के नाम की डिग्रिया खरीद रहा है। इसमें केवल दो ही खिलाडी नजर आते है।
आज के शिक्षा के स्तर गिरता जा रहा है। बाजारवाद के बदलते स्वरूप की कहीं भी देखें किसी भी नामचीन विद्यालय या कनिष्ठ महाविद्यालय हर जगह केवल शिक्षा बाजारवाद का ही रूप धारण कर रहे हैं। किसी भी विद्यालय या महाविद्यालय में बिना डोनेशन के कोई काम नहीं होता, जिसे हम हिंदी में कहे तो चंदा या दक्षिणा या भेट या सीधे से दान कहा जा सकता है। साक्षात्कार का ढकोसला निभाते हुए कई प्रकार के लालच को दिखाते हुए विद्यालयो की फीस बढ़ती, घटता – बढता अभ्यासक्रम उसी प्रकार इस महंगाई में बढ़ती जरूरते तिल का ताड़ होती नजर आती है, परन्तु मजबूरी बस शिक्षा को ग्रहण करने का सपना आंखों में सजाये लोग डोनेशन की मार को झेल रहे है।
क्या शिक्षा बिकाऊ है? क्या शिक्षा को खरीदा जा सकता है? क्या ज्ञान को बेचा जा सकता है? ये सारी समस्याए प्रश्न के रूप में आंखों के सामने नृत्य करते हुए दर्शित होते है। कुछ लोग जो शिक्षा को ग्रहण करने में असमर्थ होते है, क्या लोग इस तरह की रीति के अनुसार शिक्षा को ग्रहण कर पाएंगे? आज के बच्चे शिक्षा केवल नाम के लिए और डिग्रियों के लिए ग्रहण करते है। शिक्षा से सम्मान, शील, और नम्रता क्या सही मायने में ये बाजारवाद उन्हें दे पाता है? बहुत बड़ा प्रश्न है? परन्तु उत्तर नहीं मिलता। केवल चकाचौंध और दिखावे की शिक्षा है और बाजारवाद की जकड़ में है।
Home / Work & Life / बाजारवाद से मुक्त हो शिक्षा