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धर्म की यूँ करें व्याख्या, यह कोई रीति रिवाज़ का नाम नहीं

Published: Aug 14, 2016 05:10:00 pm

प्रश्न यह उठता है कि आखिर यह ‘धर्म है क्या, जो आज वजह है सभी मूल विनाश, लड़ाई-झगड़े की. और क्या धर्म वाकई में इतना मानव, मानवता, प्यार, इंसानियत से इतना बड़ा है

faith is drawn chariot wheels

The religion, the power of faith is drawn chariot wheels

संगीता चौहान

भारतीय समाज मूल रूप से धर्म पर आश्रित रहा है। भारतीय समाज ने सत्यत स्थित एवं उच्चादर्श में युक्त धर्म की व्याख्या रही है तो प्रश्न यह उठता है कि आखिर यह ‘धर्म है क्या, जो आज वजह है सभी मूल विनाश, लड़ाई-झगड़े की. और क्या धर्म वाकई में इतना मानव, मानवता, प्यार, इंसानियत से इतना बड़ा है कि देश, जन समूह इसके आधार पर एक दूसरे को प्रतिघात कर रहे हैं? सोच सबकी अलग है। मैंने जितना जाना कि धर्म क्या है और उसका प्रतिपालन कैसे हो, इसी विचार को समझना जरूरी है। धर्म- व्याख्या सांख्य दर्शन में गई है। धर्म शब्द ‘ध में मय प्रत्यय लगाने से बना है। ‘ध का अर्थ है ‘धारण करने योग्य तथा ‘मय का अर्थ ‘शाश्वत मूल्य अर्थात् धारण करने योग्य शाश्वत मूल्य। अर्थात् मानव कल्याण के उद्देश्य को दृष्टिगत रखते हुए समस्त पारलौकिक तथा ऐहिक शाश्वत मूल्यों को धारण करना। मनु स्मृति में धर्म के १० लक्षण बताए गए हैं। १. घृति, २. क्षमा, ३. दम, ४. अस्तेय, ५. शौच, ६. इन्द्रिय निग्रह, ७. धी, ८. सत्य, ९. अहिंसा, १०. अक्रोध।
जैन धर्म- ‘जिन शब्द से बना है जिसका अर्थ है इन्द्रियों को जीतने वाला।
इस्लाम- अरबी भाषा में अर्थ है समर्पण ईश्वर के प्रति सच्चे हृदय, अहिंसा को दूर रखते हुए समर्पण। तो बताइए जिन शब्दों की व्याख्या में मानव कल्याण छुपे
हुए हो तो किसी भी देश, समाज, उससे जुड़े व्यक्तियों को धर्म के नाम पर गलत शिक्षा कैसे दे सकता है।

अर्थात् धर्म अच्छाई को बढ़ाने का नाम है जो पहले से हर मनुष्य में विद्यमान है। धर्म किसी किताब या किसी रीति-रिवाज का नाम नहीं है यह सिर्फ आपके अच्छी सोच में विद्यमान है। तो क्या सिर्फ मंदिर, मस्जिद, गिरिजा, गुरुद्वारों में जाने से ही धार्मिक हुआ? या फिर रीति-रिवाजों की कट्टरता को मानने से बल्कि मैं कहूंगी कि कहीं भी जाने मात्र से कोई धार्मिक नहीं होता। आप जीवन को इतनी पवित्रता से जीये कि आप जहां हो वहीं मंदिर, मस्जिद, गिरिजा साकार हो जाए। रामकृष्ण देव ने कहा था कि- तालाब के कई घाट होते हैं, किसी एक घाट से हिन्दू घड़े में तरल भरता है उसे ‘जल कहता है। मुस्लिम दूसरे घाट से चमड़े के बैग में भरता है उसे ‘पानी कहता है। क्रिश्चियन तीसरे घाट से भरकर उसे ‘वाटर का नाम देता है पर तरल वही है बस पीने वाले अपनी आस्था के अनुसार नाम बदल देते हैं। इस तरह अलग-अलग इंसान अपनी समझ अनुसार ईश्वर को अलग-अलग नाम से पुकारते हैं।

अगर आप किसी दैविक शक्ति में विश्वास रखते हैं तो सच्चे मन से, अपने लिए, समाज, समस्त ब्रह्मांड की अच्छाई की कामना कीजिए ना कि अपने निजी स्वार्थ के लिए धर्म जैसे शब्द को इस तरह व्यवहार में ले कि यह सिर्फ विनाश का अभिप्राय बन कर रह जाए। हर महान पैगम्बर ने धर्म में मानवता की सेवा का उल्लेख सच्चाई के पथ पर चलना, क्रोध, काम या अपने इन्द्रियों को बस में रखने की ही बात लिखी है। किसी भी धर्म ने रतन करना, हिंसा करना, लोभ नहीं लिखा तो क्या हम आज भी धर्म के नाम पर इतना लड़ते हैं? सोचिए क्या वाकई हम धार्मिक और इंसान कहलाने लायक हैं? क्या हमारे कर्म, निष्ठा सिर्फ चंद लोगों के हाथों उनकी सोच पर आधारित होकर हमें धर्म का ज्ञान देती है। अंत मैं सुंदर पंक्तियों से करूंगी कि- एक दिन एक आगंतुक ने स्कूल के प्राचार्य से पूछा कि आपकी समय सारिणी में धर्म की शिक्षा की कोई व्यवस्था है? प्राचार्य का सहज उत्तर था- हम पूरे दिन धर्म की शिक्षा देते हैं- कैसे

अंकगणित में अचकता द्वारा
भूगोल में मस्तिष्क की विशालता द्वारा
हस्तकला में पूर्णता द्वारा
खेल के मैदान में खेल भावना द्वारा
भाषा में शुद्धता द्वारा
पशुओं के प्रति विनम्रता द्वारा
सेवकों के प्रति विनम्रता द्वारा
छोटों के प्रति प्यार द्वारा।

क्या हम इन शिक्षा को राह पर चलते हुए धर्म के मायनों को फिर से सही दिशा नहीं दे सकते? क्या विनाश करना दूसरों के लिए एकमात्र उपाय है धर्म के पथ पर चलने का। यदि नहीं तो आइए ‘धर्म के असली मायने को फिर से दुनिया में फैलाएं चारों ओर शांति और सच्चे धर्म की नींव रखे।


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