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आया के भरोसे नहीं छोड़ें दूधमुहों को, बच्चे की परवरिश में मां की भूमिका अहम

Published: Jul 22, 2016 02:32:00 pm

Submitted by:

Abhishek Tiwari

बच्चे मन के सच्चे होते है वैसी ही सच्चाई और ईमानदारी उनकी परवरिश में मां को भी बरतनी चाहिए

Mother Role In Child Upbringing

Mother Role In Child Upbringing

सविता रावत। बच्चे मन के सच्चे होते है वैसी ही सच्चाई और ईमानदारी उनकी परवरिश में मां को भी बरतनी चाहिए। वर्तमान की इस भाग दौड़ की जिंदगी में पैसे कमाने की होड़ में बहुत सी कामकाजी महिलाएं बच्चों को जन्म देने के बाद उन्हें पांच से कम वर्ष की कम आयु में ही आया या अन्य सहयोगिनियों के भरोसे छोड़ देती है।

बच्चे के जन्म से पांच साल की उम्र बच्चे की एक ऐसी उम्र है जिसमें की उसकी मन, बुद्धि एवं शरीर का विकास तेजी से होता है और ऐसी परिस्थति में उस बच्चे की प्रथम गुरू ही भौतीकवाद की दौड में उसके पालन-पोषण से समझौता कर लेती है जो कि बहुत गलत है। यह उन सभी माताओं को समझना होगा एवं इन पांच सालों में बच्चे के सर्वागिण विकास की ओर ही ध्यान देने का उनका प्रमुख उद्देश्य रखकर ही उन्हें अपने जीवन को चलाना होगा।

बच्चे में जन्म से पांच साल की उम्र में कई प्रकार के उतार चढ़ाव देखने को मिलते है। यह उतार चढ़ाव निम्न प्रकार के हो सकते है। बच्चे के जन्म से एक साल तक: जब बच्चा जन्म लेता है उसके एक महीने तक तो वह सिर्फ सोता ही सोता है मां को स्पर्श से पहचानता है एवं समझता है। धीरे-धीरे जब वह पेट के बल लुढ़कना एवं घुटनों के बल चलने लायक होता है उस समय करीब चार-पांच-छह-सात महिने की उम्र में वह अपनी मां को और अधिक जानने लग जाता है एवं घर-परिवार के अन्य सदस्यों की तरफ भी रिएक्ट करना आरंभ कर देता है।

धीरे-धीरे उसमें मन, बुद्धि के विकास के साथ ही शारिरिक विकास भी तेजी से होने लगता है। दस महीने से 12 महिने की उम्र में जब बच्चा पैदल चलने लायक होता है तो उसके विकास की गति और भी बढ़ जाती है। ऐसी स्थिति में जब कामकाजी महिलाएं जब अपने बच्चे को दूसरों के भरोसे छोड़ कर कमाने के लिए काम पर 8 से 10 घंटे बाहर जाती है तो उस समय की दूरी बच्चे को बहुत अखरती है। बच्चा बोल नहीं सकता है वह अंदर ही अंदर अपनी मां को याद करता है एक अजीब सी बेचैनी उसके मन को सताने लगती है और वह आसुंओं के रूप में बाहर निकलकर आने लगती है। इस नन्हीं सी उम्र में बच्चा 8 से 10 घंटे तो क्या एक घंटा भी अपनी मां से बिछुड़ने का दर्द महसूस करता है। इस दर्द का सीधा सा प्रभाव उसके सर्वांगीण विकास पर पड़ता है।

इस नन्ही सी उम्र में वो किन तकलिफों से गुजरता है यह जानना बहुत जरूरी है। उसे भूख लगती है, शरीर की अनेक क्रियाओं को वह कपड़ों में भी करता है। चाहे मौसम सर्दी हो, गर्मी हो या बारिश उसे गीले एवं गंदे कपड़ों से भी तकलीफ होती है यह तकलीफ उसी प्रकार की है जिस प्रकार से एक रोगी जो निःषक्त होकर बेड पर सोता रहता है। उसे खाने में क्या चाहिए वह क्या खाना चाहता है एवं वह क्या खा सकता है। उसका स्वास्थ्य कैसा है, ऐसी बहुत सी बाते है जो कि उसकी मां उसके साथ पूरे दिन रहकर ही जान सकती है और ऐसे में मां का उसे छोड़कर घर से बाहर जाना पैसे कमाने के लिए कहा तक सही है एक विचारणीय प्रश्न है। इसके बाद हम उसी बच्चे को बु़ढ़ापे की लाठी मानकर उससे वे सारी अपेक्षाएं रखें जो कि उससे उस नन्ही सी उम्र में अपनी मां से रखी होगी यह कैसे संभव हो सकता है। अभी तो एक साल की उम्र की ही बात है।

एक साल से दो साल तक बच्चा जीवन का एक साल पूरा कर पैदल चलना आरंभ कर देता है शब्दों को समझने की कोशिश करता है। उसके मुख से शब्द निकलने का प्रयास करते है एवं वो भी शब्दों को निकालने का प्रयास करता है। बोलने की कोशिश करता है वह
बोलना चाहता है अपनी बात को अभिव्यक्त करने की पूरी कोशिश करता है। मगर किससे करे उसकी मां तो बस काम करने में व्यस्त है, कमाने के लिए कही बाहर नौकरी पर चली गई है। आखिर बच्चा भी मन को मार कर रह जाता है। मां का दायित्व इस उम्र में बच्चे को नहलाना, धुलाना, कपड़े पहनाना या खाना खिलाना ही नहीं है उससे भी आगे उसके कई दायित्व होते है। जैसे उसके संचार को समझना, उसे अच्छी बुरी चीजों का स्पर्श के जरिए ज्ञान कराना आदि जो कि उसे जीवन पर्यत्न याद रहती है। बच्चे की इस उम्र में वही स्थति रहती है जैसे की कोई वृद्ध खाट पर बीमार अवस्था में थोड़ा बहुत बोलकर या ईशारों से अपनी आवश्यक्ताओं की पूर्ती करने की कोशिश करता है।

दो से पांच साल की उम्र में बच्चा अब दो साल पूरे कर चुका होता है। उसके विकास की गति और तेज हो जाती है। चीजों को ज्यादा से ज्यादा जानने की कोशिश वह करता है। ऐसे में घर पर रहने वाली माताएं सोचती है अब तो बच्चा बड़ा हो गया है वह अपनी देख-रेख खुद कर सकता है। कामकाजी महिलाएं और भी आश्वस्त हो जाती है। लेकिन नहीं अब दो से पांच साल की उम्र में जो सीखने की गति बच्चे की होती है एवं जो वह सीखता है एवं उसके जीवन में विकास में महत्वपूर्ण भागीदारी निभाती है। बच्चे की अपनी मां से और अधिक अपेक्षाएं होती जाती है बच्चा चाहता है कि उसकी मां उसकी हर बात सुने, उसकी हर बात को समझे, उसकी हर छोटी से छोटी खुशी में शामिल हो, उसके हर छोटी सी छोटी तकलीफ को चुटकियों में परी की जैसे हल कर दे। यदि उसे डांटे तो भी प्यार से एवं उसे समझाएं तो भी प्यार से। उसके स्कूल जाने पर उसकी पढ़ाई, उसके होमवर्क, उसके कपड़े, उसकी स्कल ड्रेस, उसका खाना, उसकी पानी की बोतल सब कुछ मैनेज तरीके से वह रखे बस बच्चे की इतनी सी ही तो ख्वाइश होती है बचपन में । इतनी सी बात को भी मां नहीं समझेगी तो और कौन समझेगा।

यदि मां को जल्दी से नौकरी पर जाना है, देर से आना है बच्चे की चार पांच जरूरते जैसे खाना, पानी, स्कूल का टिफिन आदि तक ही सिमट जाना है तो बच्चे का विकास भी मात्र सिमटकर रह जाएगा। वह किससे कहेगा कि उसे क्या चाहिए। यह तो मां को ही समझना होगा की उसकी तकलीफ क्या है। वह कैसी तकलीफो से गुजर रहा है। उसकी यह तकलीफे वही है जो कि वृद्धा अवस्था के बचे जीवन के पांच दस साल में वृद्ध जीते है एवं उसे महसूस करते है। यदि बच्चे के पांच साल मां ने ठीक से नहीं देखे तो फिर उससे बुढ़ापे में क्यों वह अपेक्षा अभी से रखे। प्रश्न विचारणीय है खास कर उन कामकाजी महिलाओं के लिए जो कि बच्चें की परवरिश स्वयं करने से परहेज रखती है या नौकरी के कारण नहीं कर पाती है। इसका हल तो उन्हें निकालना ही होगा। नहीं तो बच्चे जो मन के सच्चे है कब उनके मन में
कड़वाहट पैदा हो जाएगी उसका पता भी नहीं लग पाएगा। इसका सीधा असर परिवार, समाज एवं देश पर पडेगा ही। सभी बच्चे जन्म के समय एक से होते है। लेकिन जैसे-जैसे बड़े होते है परवरिश, सामाजिक माहौल के हिसाब से वे वैसे ही बन जाते है।

मां किसी भी बच्चे की प्रथम गुरू है। वह जिस आत्मीयता से बच्चे का ध्यान रख सकती है वैसा ध्यान नौकरी पर रखने वाली आया या अन्य स्थान जहां इन नन्हें बच्चों को जिनके भरोसे छोड़ा जाता है वै उस आत्मियता से कैसे रख सकते हे। पांच साल के बच्चे की चीख, पुकार, हंसी एवं खुशी को मां उसके पांस रहकर ही महसूस कर सकती है, उसके आंचल में उसकी उम्र के साथ उसका भविष्य भी बड़ा होता है एवं उसका संपूर्ण विकास भी। इसलिए समझना होगा बाल मन को उसकी हर इच्छा एवं तकलीफ को। सिखाना होगा उसे खेल-खेल में एवं डालने होंगे उसमें वो संस्कार इस कच्ची उम्र में जो कि जीवन पर्यत्न उसकी कदम-कदम पर मदद कर सके एवं उसकी रक्षा कर सके।
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