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दफ्तर से यूं करें दोस्ती

Published: Jul 06, 2016 05:13:00 pm

कामकाजी महिलाए कैसे बनाएं घर परिवार व दफ्तर में सामंजस्य

women in office

women in office

-क्षमा शर्मा

देश में काम-काजी औरतों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। सरकार की नई नीतियों के अंतगज़्त औरतें अब रात की पालियों में भी काम कर सकेंगी। क्योंकि रात में नौकरी न मिल पाने के कारण वे बहुत से अवसरों से वंचित रह जाती हैं। अधिक से अधिक औरतें नौकरियां कर सकें इसके लिए जहां वे काम करती हैं वह स्थान उनके लिए सुविधाजनक हो, दफ्तर का माहौल दोस्ताना हो। जो बातें काम को आसान बना सकें, वे सुविधाएं हों। इन सब बातों के अलावा कामकाजी महिलाओं और स्त्रियों को यह भी सोचना होगा कि वे ऐसा क्या करें जिससे कि उनके आसपास का महौल स्वस्थ, सुरुचि पूर्ण और दोस्ताना हो।

जो महिलाएं नौकरी करती हैं वे सिर्फ नौकरी ही नहीं करतीं बल्कि उन पर अपने परिवार चलाने की जिम्मेदारी भी होती है। इन जिम्मेदारियों में सबसे बड़ा काम बच्चों की सही परवरिश होती है। महिलाओं का आधा समय बच्चों और परिवार की चिंता में ही जाता है। इसलिए वे कौन सी ऐसी बातें हैं जिनसे दफ्तर महिलाओं को दोस्त बना सकते हैं और महिलाएं दफ्तर को।

फ्लेक्सी टाइमिंग्स: आम तौर पर दफ्तरों में सही समय पर पहुंचना पड़ता है। न पहुंचें तो वार्निंग मिलती है। या सैलेरी कटती है। आजकल बहुत से दफ्तरों में आने-जाने के समय की पाबंदी कम होने लगी है। दफ्तर में उपस्थिति के घंटे गिने जाते हैं। जैसे कि यदि किसी को आठ घंटे काम करना है तो इतने समय काम करे। कब कोई आया कब गया, इसका हिसाब नहीं रखा जाता। महिलाओं को अगर यह सुविधा हो तो वे बहुत से काम निपटा सकती हैं। बच्चों के स्कूल में होने वाली मीटिंग्स में भी जा सकती हैं। हां, दफ्तर अगर उन्हें यह सुविधा प्रदान कर रहा है तो उन्हें भी काम के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। काम न करना पड़े इसके लिए कोई बहाने बाजी करना ठीक नहीं। इससे माहौल दोस्ताना तो रहता ही नहीं है, हर तरफ निंदा होती है और इसका असर आने वाले इन्क्रीमेंटस और प्रमोशन पर भी पड़ता है।

वर्क फ्राम होम:
फ्लैक्सी टाइमिंग्स के अलावा आजकल कम्पनियां वर्क फ्राम होम यानि कि घर से काम करने की सुविधा भी देने लगी हैं। इससे दफ्तर आने-जाने में जो समय लगता है, वह तो बचता ही है। किसी इमरजेंसी से भी निपटा जा सकता है। जैसे कि मेड का न आना या बच्चे का बीमार होना, अथवा बच्चे के इम्तिहान। इस सुविधा से फायदा यह है कि दफ्तर का काम भी हो जाता है और घर भी देख जा सकता है। लेकिन घर से काम करने का मतलब उस दिन की छुट्टी होना नहीं है, यह महिलाओं को भी समझना होगा। दफ्तर और घर के बीच दोस्ती रखनी हो तो उसमें ईमानदारी और पारदर्शिता बेहद जरूरी है।

दफ्तर में डे केयर सेंटर्स: कामकाजी माताओं की सबसे बड़ी समस्या होती है कि उनके पीछे बच्चे कहां रहें। यदि दफ्तरों में इस तरह की सुविधा होगी तो औरतें दफतर को निश्चय ही अपना सबसे बड़ा दोस्त समझेंगी और बदले में अच्छा काम करके इस दोस्ती को निभाएंगी भी क्योंकि कहावत है न कि बच्चा खुश तो मां खुश। बच्चे की चिंता नहीं रहेगी, वह अपने आसपास होगा तो काम की गति बढ़ेगी और परफारमेंस मीटर पर अच्छा रिकार्ड दिखेगा। काम की गति बढऩा यानि कि काम को अच्छी तरह और इंन्ट्रेस्ट लेकर अंजाम देना, इसकी जिम्मेदारी मैनेजमेंट और कर्मचारी दोनों की होती है।

कैफे और कैंटीन: कई बार दफ्तर पहुंचने की हड़बड़ी में महिलाएं खाना और नाश्ता नहीं बना पातीं। यदि दफ्तर में अच्छी कैंटीन और कैफे हैं तो वहां खाकर यह कमी पूरी की जा सकती है। बिना खाए-पिए काम भी तो ठीक से नहीं किया जा सकता। वैसे भी महिलाओं को पोषक तत्वों की ज्यादा जरूरत होती है।

जिम: आम तौर पर कामकाजी महिलाएं अपने स्वास्थ्य पर ठीक से ध्यान नहीं दे पातीं। वेडोग, एक्सरसाइज, मेडिटेशन और वर्कआउटस को समय न मिलने की बात कहकर टालती रहती हैं। उन्हें घर में दफ्तर की चिंता सताती है और दफ्तर में घर की। ऐसे में अगर दफ्तर में जिम हो तो दफ्तर के समय से कुछ पहले पहुंचकर या लंच ब्रेक में इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।

ट्रांसपोर्ट महिला फ्रेंडली दफ्तर होने के लिए आने-जाने सुविधा सबसे महत्वपूर्ण है। रात बिरात ही नहीं दिन में भी यह जरूरी है कि महिलाएं सुरक्षित घर लौट सकें। कई बार ऐसे हादसे हो जाते हैं कि महिलाएं डरने लगती हैं। दफ्तर को इस तरह की सुविधा प्रदान करने पर विशेष ध्यान देना चाहिए। कार पूल की सुविधा का लाभ भी उठाया जा सकता है।

बराबर का काम तो बराबर की सैलरी: बहुत सी जगहों पर महिलाओं को पुरुषों से कम वेतन दिया जाता है। बराबर की योग्यता होने पर भी कम पैसों के मिलने के कारण होने वला भेदभाव बेहद अनुचित है। और यह रवैया दोस्ताना न होकर शत्रुतापूर्ण है। इसलिए सैलेरी में भेदभाव नहीं होना चाहिए। साथ में काम करने वाले स्त्री-पुरुषों की दोस्ती चाहिए जिससे कि दफ्तर का वातावरण भी स्वस्थ रहे तो औरत होने के नाम पर किसी भी प्रकार का डिसक्रिमिनेशन ठीक नहीं है।

आपका अच्छा व्यवहार तो दोस्त हजार:
ऊपर जो भी बातें कही गईं उनमें से अधिकांश वे हैं, जिन्हें दूसरो को करना है। एक महिला होने के नाते आप ऐसा क्या करें जिससे कि दफ्तर में आपके दोस्त ज्यादा हों। इसमें सबसे जरूरी तो आपका अच्छा व्यवहार है। कहते हैं न कि एक मुसकान से किसी को भी जीता जा सकता है। कोयल और कौआ का उदाहरण तो याद ही होगा कि न कौआ किसी से कुछ लेता है न कोयल किसी को कुछ देती है। मगर मीठी बोली के कारण कोयल को सब पसंद करते हैं। यही नहीं जरूरत पर हमेशा दूसरों की मदद के लिए तैयार रहना भी हमारे अनेक दोस्त बनाता है। एग्रेसिव व्यवहार किसी को पसंद नहीं आता जैसे कि अगर कोई आपसे हर बात पर लडऩे-झगडऩे लगे तो आप भी उसे पसंद नहीं करेंगी। इसलिए आप चाहे जितने सक्सैसफुल हों, जितने अमीर हों, विनम्रता आपकी सच्ची सहेली हो सकती है। दुनिया मे बहुत से दोस्त बनाने हों, दफ्तर में सबका दिल जीतना हो तो, विनम्रता से बेहतर कुछ नहीं है। और सिर्फ दफ्तर ही क्यों घर में भी आप इसके जरिए सबका दिल जीत सकती हैं। लेकिन विनम्रता का मतलब यह हर्गिज नहीं है कि आप अपनी बात न कहें, सही को सही और गलत को गलत कहना बंद कर दें। लेकिन किसी भी बात को इस तरह से कहा जाए कि बिना किसी को हर्ट किए वह दूसरों की समझ में आ जाए।
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