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संस्कारों के नाम पर यह कैसा बोझ

Published: Oct 23, 2016 01:14:00 pm

ऐसे मामलों में करवाचौथ की क्या सार्थकता है

Carva chauth was celebrated in Bhopal

Carva chauth was celebrated in Bhopal

– डॉ. विमलेश शर्मा

आज भी वही ललिता आई थी। 3 बजते ही दरवाजा ख़टखटा दिया था उसने। रोजाना पांच घर निपटाती है.. मेरे घर सबसे बाद ही आती है। आज कुछ उजली साड़ी पहनी थी सिन्दूर भी कुछ अधिक था माथे पर.. निढाल थी.. देखते ही मैं समझ गई और उसे छेड़ते हुए कह उठी “अच्छा तो आज करवा चौथ है”… पर मैडम चुप… गुस्से गुस्से में ही बरतन निबटा दिए झटपट.. चाय के प्याले के साथ ही मैंने पूछा कि क्या हुआ तो रो पड़ी …कहने लगी..” करवाचौथ हमारे लिए नहीं हाती दीदी.. सुबह पीट कर गया है आ कर फिर पीट लेगा…अभी पड़ा होगा कहीं नशे में धुत.. मैंने समझाते हुए कहा किस के लिए खपती हो नाहक। क्यों किया व्रत..तो कहने लगी हमारे संस्कार है.… समझ नहीं आता इन तथाकथित संस्कारों को क्या नाम दिया जाय जिन्होंने एक पक्ष के हिस्से में तमाम क्रूरता, असम्वेदनशीलता रख दी..और दूसरे में केवल त्याग, प्रेम और समर्पण।

ऐसे मामलों में करवाचौथ की क्या सार्थकता है? इस व्रत के पीछे महीन संवेदनाएं जुडी होती है क्या वे मन के किसी बहुत भीतरी कोने मे दम नहीं तोड़ रही होती हैं????

फेस बुक वाल से साभार

– लेखिका युवा कवि व साहित्यकार है
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