-मनु चौधरी
देश की राजनीति में वैचारिक और नैतिक पत्तन का दौर चल रहा है। राजनीति को कुछ लोगों ने व्यवसाय बना लिया है। ऐसा लगता है मानो राजनीतिक परिदृश्य में जनहित से जुड़े मुद्दे रहे ही नहीं। आजकल राजनीति में जनता के मुद्दों पर बहस कम और बेकार के मुद्दों पर ज्यादा होती है। गरीबी, अशिक्षा , स्वास्थय, महिला सुरक्षा और किसानों की आत्महत्या जैसे मुद्दों पर कोई बहस नहीं कर, सभी इससे बचना चाहते हैं क्योंकि सभी शीशे के घरों में रह रहे हैं।
साहित्यकारों से लेकर फिल्ममकारों और राजनेताओं से लेकर कलाकारों तक कोई भी आम जनता के हितों पर बहस नहीं करना चाहता। कोई नहीं कहता की देश की अर्थव्यवस्था को कैसे सुदृढ किया जाए? किसानों की आत्महत्याओं को कैसे रोका जाए? महिलाओं का सशक्तिकरण कैसे हो? उनको सुरक्षित माहौल कैसे बनाया जाए? शिक्षा-चिकित्सा व्यवस्था कैसे मजबूत हो? युवाओं को कैसे रोजगार दिया जाए?
चर्चा होती है तो अल्पसंख्यक और बहुसंख्यकवाद पर, पाकिस्तान पर और जानवरों पर। नेता बेकार के मुद्दों पर ओछी राजनीति करने पर उतारू हो गए हैं। लेकिन कभी भी विकास के नाम पर राजनीति नहीं करते हैं। अगर बेकार के मुद्दे न हों तो गड़े मुर्दे उखाड़ कर मुद्दे ढूंढ लिए जाते हैं।
हमारे खबरिया चैनल जिन पर कॉरपोरेट का नियंत्रण है वहां पर भी ऐसे मुद्दों को तरजीह नहीं दी जाती है। उनको लगता है कि यह उनकी टीआरपी के लिए लाभदायक नहीं है। वहां टीआरपी वाले मुद्दे हावी रहते हैं। संसद का यही हाल है। पक्ष-विपक्ष में आरोप-प्रत्यारोप के चलता रहता है। आखिर कब तक ये लोग जनता के विश्वाास से छल करते रहेंगे।