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सकारात्मक दृष्टिकोण रखें, गीता के उपदेश इस दिशा में कारगर

युगपुरूष श्रीकृष्ण के व्यक्तित्त्व में भारत को एक प्रतिभा सम्पन्न
राजनीति वेत्ता ही नहीं अपितु एक प्रेरणा पुरूष के रूप में महान कर्म-योगी
एवं आध्यात्मिक, दार्शनिक चिन्तक प्राप्त हुआ है

Aug 22, 2016 / 11:19 am

Rakesh Mishra

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डॉ. नीतू सोनी। युगपुरूष श्रीकृष्ण के व्यक्तित्त्व में भारत को एक प्रतिभा सम्पन्न राजनीति वेत्ता ही नहीं अपितु एक प्रेरणा पुरूष के रूप में महान कर्म-योगी एवं आध्यात्मिक, दार्शनिक चिन्तक प्राप्त हुआ है। जिनसे प्राप्त शिक्षाएं हमें हमारे जीवन की विपरीत-परिस्थितियों में भी सकारात्मक सोच को कायम रखने की सीख देती हैं। चूंकि भौतिकवादी प्रतिस्पर्धा व आधुनिक जीवन-शैली के युग में, शरीर व मन के बीच तालमेल का अभाव हैं। मन कुछ पाने के लिए भागता है, शरीर उसके अनुरूप चलने में असमर्थ होता हैं। परिणाम स्वरूप तात्कालिन मानसिक विकृतियाँं, एवं विभम्र की स्थितियां उत्पन्न होती हैं। गीता, जीवन शैली की इन दोराहों की स्थितियों को दूर करने का आधार है।

संजीवनी, सर्वशास्त्रमयी, गीता जो भगवान कृष्ण के मुखारविन्द से प्रकट हुई है, वह मानव जीवन की समस्त समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करती हुई मानवीय आकांक्षाओं का तुलनात्मक मूल्यांकन करती हैं। इसमें निहित उपदेशों को किसी एक चिन्तक या चिन्तकों की एक परम्परा ने सोचकर किसी तात्विक, आध्यात्मिक सिद्धान्त के रूप में प्रस्तुत नहीं किया हैं, अपितु यह उस परम्परा के परिणाम-स्वरूप स्थापित कि गई है जो मानव-जाति के आध्यात्मिक जीवन से उत्पन्न हुई हैं। गीता के माध्यम से श्रीकृष्ण के दिए हुए उपदेश जहां एक तरफ मोक्ष प्राप्त करने की रूपरेखा प्रस्तुत करते है, वहीं दूसरी तरफ जीवन शैली की गत्यात्मकता का निर्धारण कत्र्तव्यों के माध्यम से करते हुए उन सिद्धान्तों को भी प्रकट करते हैं, जिनके अनुपालन से व्यक्ति तथा समाज के हितों को एक ही साथ साधन किया जा सके।

सम्पूर्ण विश्व को दिया गया भारत का यह संदेश, जो यह प्रदर्शित करता है कि इस संसार रूपी रणभूमि में हम सब अर्जुन हैं, और कृष्ण हमारे हृदय में विद्यमान हैं। परिणाम-स्वरूप हमारे हृदय की दृढ़ता एवं स्थिरता ही हमें श्रेष्ठ मार्ग की और अग्रेषित करती हैं। यह उपदेश कठोर होने पर भी निरंकुश, तानाशाह द्वारा दिया उपदेश न होकर उन समस्त मानव जाति के लिए तीव्र उलाहना है जो जीवन रूपी रणक्षेत्र में परिस्थितियों वश लड़खड़ा जाते हैं। इनकी अर्द्धविक्षिप्त, विभ्रमित मानसिकता को स्वच्छन्द करना ही गीता का सार हैं। समुचे मानव मात्र के लिए दिव्य प्रेरणा देने वाला व्यावहारिक, व्यापारिक, सामाजिक, राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय हर समस्या का कारण व समाधान प्रस्तुत करने वाली गीता जो हमारे जीवन के प्रती सकारात्मक दृष्टिकोण को निर्धारित करती है, इन्हें हम निम्न बिन्दुओं के द्वारा सरल एवं सहज रूप में समझ सकते हैं।

भगवान कृष्ण द्वारा प्रदत्त उपदेश हमें हमारे लक्ष्यों, उद्देश्यों के प्रति सजग करते हैं। वहीं हमारे मनमस्तिष्क की कमजोरी की जड़ को पकड़ कर दुर्बलता रूपी भय से मुक्त कर संकल्प में स्थिरता लाकर, जीवन रूपी संघर्ष की वास्तविकता से लड़ने के लिए प्रेरित करते है। जैसे युद्ध-भूमि में श्रीकृष्ण अर्जून को कायरता का परित्याग कर निर्भय होकर युद्ध में लड़ने की सलाह देते हैं। यहाँ पर यह सम्पूर्ण संकेत मानव जाति की तरफ है कि हृदय की अधम दुर्बलता को त्याग कर तुम उठ खड़े हों। कृष्ण का यह आदेश हमें अपने उद्देश्यों के प्रति फिर से सजग रहने की अद्भुत शक्ति प्रदान करता हंै। जब मनुष्य श्रेष्ठ गुणों के कारण अपमान सहकर या तो दुष्टता से दूर भाग जाता हैं या फिर समझौता करने को तैयार हो जाता है तब गीता उपदेश रूपी शस्त्रों द्वारा सेनापति के समान नेतृत्व करते हुए संकट की घड़ी में किंकर्तव्यविमूढ़ होकर जीवन के दोराहों पर खड़े मनुष्य के लिए पथप्रदर्शक का कार्य करती है.

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