scriptयह तो नहीं अपनी वाली जिंदगी | This life was not expected | Patrika News

यह तो नहीं अपनी वाली जिंदगी

Published: Sep 28, 2016 04:17:00 pm

तो क्या नारी के सब काम दूसरे ही तय करेगें

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दिव्या द्विवेदी

लव मैरिज या अरेंज, लव, लव क्यों, वो इसलिए दूसरों की गलती पर पछताने से बेहतर है कि अपनी गलती पर पछताओ। खुद को कंसोल करना ज्यादा आसान रहता है कि अबे यार गलती हो गई, इंसान ही तो हैं। पर ऐसा लड़कियों को करने कहां दिया जाता है। सही कहा, बचपन से सब्जेक्ट से लेकर सूट की डिजाइन और किस लड़के से शादी करनी है, तक पिता और भाई की मर्जी। प्यार करना है और प्यार में शादी करनी है या नहीं ये प्रेमी महोदय डिसाइड करते हैं।

शादी के बाद कब बच्चा पैदा करना है, कितना करना है, किस जेंडर का करना है ये इनलॉज डिसाइड करते हैं। जॉब करनी है या नहीं, जॉब में किससे बात करनी है, किससे नहीं ये पति डिसाइड करते हैं। उसके बाद घर में खाना क्या बनेगा इस पर पति, सास-ससुर, बच्चे की मर्जी। अधेड़ होते-होते और लड़की से औरत बनने के सफर में हम अपना नाम, अपनी पसंद, अपनी मर्जी तक भूल जाते हैं। दूसरों का ही याद रहता है सबकुछ। और सबसे डरावनी बात ये है कि अकेले बैठकर सोचने पर भी अपना ख्याल रत्ती भर नहीं आता है बल्कि आसपास की माया में घिरी रहती हैं हम।

हम अपने बारे में न सोचे इसके लिए कहा जाता है स्त्री का हृदय विशाल होता है जिसमें सब समा जाते हैं (सिवाय उसके खुद के), वो सबका ख्याल रखती है, सबके लिए ममत्व रखती है (सिवाय अपना ख्याल रखने के और अपने ऊपर लाड़ लड़ाने के) स्त्री होती ही ऐसी है, (अगर किसी स्त्री ने उनके इस माननीय ख्याल से बगावत कर दी तो भाई वो स्त्री नहीं है, क्योंकि उसने मानक स्त्री बर्ताव के उलट व्यवहार किया है) लेकिन अगर गलती से भी आपने अपने बारे में खुदा न करे सोच लिया तो ये जितने भी रिश्ते हैं जिनसे आप घिरी हैं वो आपको ऐसे देखेंगे और ऐसा बर्ताव करेंगे कि भाई आप पक्का कोई आतंकवादी हैं, जो उन सबको मारने आई हैं। पता है हमारी जिंदगी, जिंदगी भर है, अपनी वाली जिंदगी नहीं है।

साभार – फेसबुक वाल से
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