– दीप्ति सक्सेना
फिल्मों और टीवी के बढ़ते प्रभाव से हम सब परिचित है । भारतीय सिनेमा का विश्व में अपना एक अलग स्थान है। किसी भी देश की फिल्मों को या उसके प्रसिद्ध टीवी शोज को देश का, वहां के लोगो का आईना कहां जाता है। कुछ दशक पूर्व तक फिल्म निर्माता मनोरंजन के साथ कुछ अच्छे उद्देश्य लेकर फिल्म का निर्माण करते थे जिनका समाज पर सकारात्मक असर भी पढता था परंतु आज अभिव्यक्ति की आजादी के नाम में जो छिछोरापन फिल्मो, टीवी शो या डेली सोप में देखने को मिल रहा है वैसा शायद ही कभी देखा हो। कई फिल्में और टीवी शो ने तो कॉमेडी के नाम पर अश्लीलता की सारी हदे पार कर दी हैं।
इस पर यह तूर्रा है कि आज का दर्शक ही यह सब देखना पसंद करता है। ” अरे भई अपने घर कोई महेमान आता है तो आप जो उसे परोसेंगे वो वही तो खायगा ना ” आज सिर्फ युवा को ही नहीं बल्कि बच्चो से लेकर आम ग्रहणी तक को इसने जकड़ लिया है। अगर ऐसी फिल्में और सीरियल बनना बंद हो जाएं तो दर्शक का मानस भी धीरे धीरे ही सही अच्छी चीज़े देखने और सुनने का आदि हो जायेगा। पैसे कमाने और सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए घर घर में अश्लीलता, अधंविश्वास और हिंसा क्यों परोस रहे हैं। आप देश और समाज को बुराइयो से बचाना चाहते है या उन्हें बुराइयो की खाई में धकेलना।
क्या मनोरंजन के नाम पर फूहड़ हस्य, फूहड़ अश्लीलता भरे शब्दों से सजे गीत, मारा मारी, अन्धविश्वास यही सब विषय बचे हैं फिल्मकारों और टीवी शो निर्माताओं के पास। देश की सरकार को भी चाहिए कि वो कड़े से कड़े कदम उठा कर ऐसे निर्माताओं, गीतकारों व अन्य जो भी अभिव्यक्ति की आज़ादी की दुहाई देकर अपने और सिर्फ अपने लालच के पूर्ति के लिए देश के बच्चों,युवाओं और सम्माननीय गृहणियों को अपनी फिल्मों द्वारा गीतों द्वारा या टीवी शो द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से बुराई की ओर प्ररित क्र रहे है उस पर सख्त कार्रवाई की जाए।