क्यों होती हैं इतनी बंदिशें
Published: Aug 17, 2016 03:38:00 pm
बहू- बेटी में न करें फर्क
– कामिनी यादव
चंदा बेटी, उठो सुबह हो गई, चाय ठंडी हो गई ये हर परिवारों में हमने हजारों बार सुना है पर क्या ये ही बात घर की बहू के लिए सुनी है? नहीं। पर क्यों? क्यों हम घर की बेटी को प्यार दुलार देते हैं और बहू को सिर्फ फटकार। बेटी को हर तरह की आजादी और बहू पर पाबंदी। बेटी की हर बात सही और बहू की हर बात गलत क्यों। आज हम २१ वीं सदी में जी रहे हैं, चांद-सितारों को छू रहे हैं। लड़के-लड़की के भेद से खुद को ऊपर उठा चुके हैं, लेकिन जुबां पर अब भी कुछ जुमले १८ वीं सदी वाले ही बसे हुए हैं।
आज भी बहू सिर्फ बहू ही हैं बेटी नहीं…….अच्छी बहू वही है जो………? -सुबह जल्दी उठे, नहा-धोकर ही किचन में जाए- अच्छा और सबकी पसंद का खाना बनाए। घरवालों की देखभाल और बड़ों का आदर करे। ऑफिस से ज्यादा अहमियत घर को दें। अपनी सैलरी मर्जी से खर्च न करे। मीठा बोले और कभी गुस्सा न करे। पहले सबकी सोचे फिर अपनी सोचे। कभी तर्क-वितर्क ना करे, अपनी गलती स्वीकार करे। पति व बच्चों को वक्त दे। सबसे आंखें नीचे करके और आवाज धीरे कर के बात करे।
ये सभी काम अगर आप बखूबी निभा सकती हैं तो आप एक अच्छी बहू है वरना नहीं….! मेरे पति मुझे रोज सुबह-शाम लेक्चर देते हैं। देखो, तुम्हें ये करना चाहिए, तुम्हें वो करना चाहिए, मैं तुम्हारा अच्छा ही चाहता हूं। मेरा अच्छा तो चाहते हैं पर मेरी बात नहीं मानेंगे। अगर मेरी बात मानी गई होती तो क्या ज्वैलरी डिजाइन का मेरा शौक यूं छोडऩा पड़ता शादी से पहले मेरी हर बात को, सपनों को सम्मान दिया जाता था और पूरा करने का वादा किया जाता था। लेकिन शादी के बाद उन सभी सपनों को एक कमरे में बदं कर दिया गया। जिन्हें मैं अपना परिवार मान रही थी जिन घरवालों को मैं अपना मान रही थी उन्हें तो लग रहा था कि अगर मैंने अपना सपना पूरा किया तो मैं उनकी इज्जत नहीं करूंगी। इसलिए वो हर बात पर मुझे रोक-टोक करने लगे। ये मत करो, वो मत करो, ऐसा क्यों बोला, ऐसे बोला करो। जो मुझे पसंद है वो पहनो, ऐसे रहो।
सुबाह ऑफिस समय से निकलो और समय से पहुंचो, सैलरी नहीं कटनी चाहिए। शाम को घर समय से पहुंचो। ५-१० तो दूर अगर २-३ मिनट भी लेट हो गई तो शक करना शुरू पुराने फै्रंड्स जो कॉन्टैक्ट में ही नहीं है उनका नाम लेकर इल्जाम लगाना शुरू। मैं एक तीन साल की बच्ची की मां हूं मुझे फेसबुक करने से मना किया जाता है, यहां तक कि मेरा फेसबुक अकाउंट तक डिलीट करवा दिया। पर डिलीट करवाने वाला खुद फेसबुक पर है…..!
शादी को चार साल हो गए सैंकड़ों बार रोई होऊगी। पति का सपोर्ट ना के बराबर है। सबको लगता है कि मैं उनके घर की सदस्य नहीं बल्कि रोबोट हूं, नौकरानी हूं। जो किसी काम के लिए मना नहीं करे, कभी बीमार नहीं पड़े और हमेशा हर बात के लिए हां कहे। लेकिन क्या ये सही है जिस परिवार में, मैं बहू बनकर आयी। जहां मुझे बेटी बनाने का दावा किया गया था वहां आज मुझे इंसान भी नहीं माना जा रहा। शायद ये बात सही कही गई है कि जिस परिवार में बहू, बेटी के लिए नियम एक से नहीं होंगे, वहां बहू कितनी भी कोशिश कर ले, अच्छी साबित नहीं हो सकती।