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क्यों डरते हैं हम बेटियों को लेकर

Published: Jul 25, 2017 03:28:00 pm

नसीहत की जरुरत पुरुष वर्ग को भी

women positive story

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– रचना

कुछ महिला और पुरुष इस समय एक ही सुर में लड़कियों के कपड़े और उनके रहन सेहन को जिम्मेदार मानते हैं और नसीहत देते हैं। कुछ पुरुष मखोल की मुद्रा में व्यंग करते हैं। कुछ पुरुष सीरियस होकर और भारतीये संस्कृति के पतन के लिये विलाप करते हैं वहीं कुछ पुरुष इस सब के विरोध में लिखते हैं नॉट आल मेन का नारा देते हैं और स्त्रियां कोख से पुत्री के अन्याय से ले कर पूरी जिंदगी तक के अन्याय पर लिखती हैं यानी सब कहीं ना कहीं इस सब से परेशान तो जरूर हैं। मुझे लड़कियों को सबक की तरह सही समय पर आना, सही कपड़े पहनना इत्यादि नसीहत भरी पोस्ट से बड़ी चिढ़ होती हैं क्योंकि इन सब में दोषी को नहीं जिसके साथ दोष हुआ उसको सजा की बात लगती हैं।

पर मुझे ये काउंसलिंग जब स्त्रियां लड़कियों की करती हैं तो कम बुरा लगता हैं क्योंकि हर के स्त्री कहीं ना कहीं कभी ना कभी बचपन से ले कर मरने तक में इस प्रकार के दुर्व्यवहार से गुजरी हैं, बस कम- ज्यादा की बात होती हैं। पीढ़ी आती हैं जाती हैं बस समस्या वहीँ की वहीँ रहती हैं। इस लिये बिना अपनी पीड़ा को बताये नारी दूसरी नारी को समझाती हैं की बेटी देर से मत आओ, तन को ढाँक कर रखो, दूरी बना कर रखो। नारी जानती हैं नारी शरीर को किस पीड़ा से निकलना होता हैं अनिच्छित स्थिति में और वो दूसरी नारी को काउन्सिल करना चाहती हैं।

नारी, नारी को काउंसिल कर रही हैं, कंडीशन कर रही हैं गलत कर रही हैं, बदलाव आ रहा हैं नारी की सोच में और भी आएगा, दूर नहीं हैं वो समय जब आज के जनरेशन यानी २० वर्ष – २५ वर्ष की लड़की अपनी लड़की को पिस्तौल का लाइसेंस दिलवा देगी और कानून भी अपनी हिफाज़त में बेनिफिट ऑफ़ डाउट देगा।

लेकिन पुरुषो का क्या औचित्य हैं, लड़कियों को काउन्सिल करने का। क्यों नहीं वो पुरुषो की काउंसिलिंग करते हैं, क्यों नहीं वो पुरुषो के बायोलॉजिकल डिसऑर्डर पर बात करना चाहते हैं, क्यों नहीं वो आपस में डिस्कस करना चाहते हैं की जब बरमूडा पहने टॉप लेस पुरुष को, सड़क के किनारे खड़े होकर अपने को हल्का करते पुरुष देख कर लड़कियां उनको रेप या मोलेस्ट नहीं करती हैं तो क्यों पुरुष क्यों करता हैं। हर पिता अपनी बेटी को ले कर किसी पुरुष से क्यों डरा रहता हैं।

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