ब्रिटेन में सेंसर और सेटेलाई तो जापान में एलईडी लाईट के सहारे इनडोर खेती पर जोर दिया जा रहा है। जबकि आने वाले वर्षों में ड्रोन के प्रयोग की भी संभावनाएं जताई जा रहीं हैं।
नई दिल्ली. खेती भले ही एक प्राचीन उद्यम हो, लेकिन बदलती तकनीक और विज्ञान की प्रगति ने इसके परिदृश्य में काफी बदलाव ला दिया है। खेती में ऑटोमेटिक और सेमी आटोमेटिक मशीनें हल-बैल की जगह ले रही हैं। ब्रिटेन, अमरीका, आस्ट्रेलिया सहित कई यूरोपीय देशों के किसानों ने रोबोट और ड्रोन जैसी अत्याधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है।
सेंसर और सैटेलाइट तकनीकों का होगा इस्तेमाल
फोब्र्स मैगजीन ने अपनी एक रिपोर्ट में यह दावा किया है कि ब्रिटेन के लगभग 60 प्रतिशत किसान सेंसर और सैटेलाइट जैसी तकनीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं। दुनिया के कुछ हिस्सों में खेती में इन अति उन्नत तकनीकों की मदद ली भी जा रही है, जिससे यह पता चलता है कि भविष्य की खेती कैसी होगी। हालांकि खेती की इस तकनीक का आविष्कार कई दशक पहले हुआ था, लेकिन अब इसका बहुत तेजी से विस्तार हो रहा है।
जापान में एलईडी लाईट से खेती
पूर्वी जापान के मियागी प्रांत में विश्व प्रसिद्ध इलेक्ट्रॉनिक उपकरण निर्माता कंपनी सोनी ने 25,000 वर्ग फीट में इंडोर खेती की शुरुआत की है। इंडोर फॉम्र्स आमतौर पर फ्लोरोसेंट प्रकाश का उपयोग करते हैं। अब इसके बजाय एलईडी प्रकाश पर जोर दिया जा रहा है। इसका कारण यह है कि एलईडी प्रकाश अधिक प्रभावशाली और ऊर्जा बचत के मामले में फ्लोरोसेंट प्रकाश के मुकाबले 40 फीसदी किफायती होता है। प्रकाश से ही वह फॉम्र्स की तापमान, आद्रता और सिंचाई को नियंत्रित करते हैं। सोनी की 15 मंजिलों वाली इस फॉर्म में वनस्पतियों को उपजाने के लिए 18 रैक लगाए गए हैं। इसमें 17 हजार 500 एलईडी बल्ब लगाए गए है। दरअसल अनुसंधानकर्ता लगातार चेतावनी दे रहे हैं कि जैसे जैसे कृषि योग्य भूमि और ताजे पानी की आपूर्ति में कमी आएगी दुनिया की तेजी से बढ़ रही आबादी जिसके 2050 तक दस अरब को पार कर जाने की आशंका है के लिए परंपरागत खेती का तरीका जरूरत पूरी नहीं कर पाएगा। ऐसे में इनडोर खेती जैसे विकल्प पर विचार किया जा सकता है।
भारत में भी बदल सकता है नक्शा
प्रो. डेविड हालिवेल का कहना है कि आस्ट्रेलिया में डेकिन स्मार्ट एग्रीकल्चर सिस्टम से भारतीय खेती का नक्शा बदल सकता है। ड्रोन से खेत में नमी की रियल टाइम जानकारी रखी जा सकती है। तकनीकों का प्रयोग फसलों का उत्पादन बढ़ा सकता है।