भारत ने स्पष्ट किया कि सुरक्षा परिषद के नए सदस्यों को हर हाल में वीटो का अधिकार मिलना चाहिए।
संयुक्त राष्ट्र। भारत ने स्पष्ट किया कि सुरक्षा परिषद के नए सदस्यों को हर हाल में वीटो का अधिकार मिलना चाहिए। हालांकि लचीला रुख अपनाते हुए कुछ समय के लिए अधिकार छोडऩे को लेकर भी रजामंदी दिखाई। संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी दूत सैयद अकबरुद्दीन ने सुरक्षा परिषद में सुधार पर भारत का पक्ष रखा।
उन्होंने कहा कि हमारी अपनी राष्ट्रीय नीति पहले भी यही थी और अब भी यही है कि जब तक वीटो का अधिकार है तब तक यह नए स्थायी सदस्यों के लिए भी रहना चाहिए। भारत लचीला रुख अपनाते हुए इससे समझौता करने को तैयार है। उपाय के तौर पर समीक्षा सम्मेलन तक वीटो को टाला जा सकता है। संरा घोषणा पत्र में यह व्यवस्था है कि वीटो के अधिकारों की समीक्षा के लिए सम्मेलन हो और उसमें संशोधन किया जाए, लेकिन ऐसी बैठक कभी नहीं हुई। यदि सम्मेलन होता है तो यह तय हो जाएगा कि समसामयिक स्थिति में वीटो के अधिकार को बनाए रखा जाए या खत्म किया जाए।
अकबरुद्दीन ने रखे तथ्य
अकबरुद्दीन ने परस्पर विरोधी स्थिति में स्पष्ट रूप से एक बढिय़ा युक्ति का इस्तेमाल किया। वह उन देशों के साथ हो लिए जो किसी को भी वीटो का अधिकार देने का विरोध कर रहे हैं। उन्होंने उन ऐतिहासिक तथ्यों को सिलसिलेवार ढंग से सामने रखा जब-जब स्थायी सदस्यों ने इस अधिकार का दुरुपयोग किया। उन्होंने कहा कि वीटो का इस्तेमाल 317 बार हो चुका है, जिससे 230 प्रस्ताव प्रभावित हुए हैं। यह संख्या सुरक्षा परिषद के कुल प्रस्तावों का 10 फीसदी है। उन्होंने कहा कि वीटो के इस्तेमाल का रिकॉर्ड शर्मनाक रहा है। उन्होंने कहा कि दक्षिण अफ्रीका और दक्षिण रोडेशिया में रंगभेदी शासन के समर्थन में इसका 56 बार इस्तेमाल किया गया है। इसके अलावा विकासशील देशों में छद्म युद्ध को लेकर इसका 130 बार इस्तेमाल हुआ है। इनमें भी 22 बार सिर्फ नामीबिया को लेकर। नेपाल, श्रीलंका, जॉर्डन और यहां तक कि इटली व ऑस्ट्रिया तक की सदस्यता भी एक समय वीटो के जरिए रोकी जा चुकी है।
स्थायी सदस्य अड़े, नहीं छोड़ेंगे वीटो अधिकार
सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों में से कोई भी स्वेच्छा से स्थाई सदस्यों का वीटो अधिकार खत्म करने के पक्ष में नहीं है। इनमें से चार तो अपने विशेषाधिकार को बनाए रखने के लिए अड़े हुए हैं। अधिकांश वे सदस्य जो सुरक्षा परिषद के विस्तार के समर्थन में हैं, उनका कहना है कि यदि स्थायी सदस्य कहते हैं कि उनके वीटो का अधिकार बरकरार रहेगा तो नए सदस्यों को भी यह अधिकार मिलना चाहिए। रूस और अमरीका किसी भी नए स्थाई सदस्य को वीटो अधिकार देने के खिलाफ हैं। दोनों अपने वीटो अधिकार खत्म करने या उन पर अंकुश लगाने के भी विरोध में हैं।
चीन ने एनएसजी दावेदारी में लगाया अड़ंगा
चीन ने कहा कि वह एनएसजी (न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप) में शामिल होने की सिर्फ भारत की दावेदारी का समर्थन नहीं करेगा क्योंकि अन्य देश भी इस 48 सदस्यीय समूह में शामिल होना चाहते हैं। चीन ने साथ ही जोर देकर कहा कि नए सदस्यों को शामिल करने का कोई भी फैसला आम सहमति पर आधारित होगा। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता होंग ली ने भारत को पाक और उन अन्य देशों के साथ जोड़ा, जिन्होंने परमाणु अप्रसार संधि पर साइन नहीं किए हैं।