संपादकीय में कहा गया है, हम सीपीईसी से संबंधित गतिविधियों का सुचारू संचालन सुनिश्चित करने के लिए सेना की सçRय भूमिका की सराहना करते हैं, लेकिन, यह काफी दुखदायी है कि राज्य की संस्थाएं अपने कार्य को करने के लिए सशक्त नहीं हैं। संपादकीय में यह प्रश्न भी किया गया है कि अगर सेना सभी निर्माण, संरक्षण और दूरगामी क्षेत्रों के विकास के लिए जिम्मेदार है, तो फिर उन प्रांतीय विधानसभाओं और सैकड़ों समितियों का क्या मतलब, जिनके पास इन इलाकों में कार्य करने की न तो क्षमता है और न ही अधिकार?
संपादकीय में आगे लिखा है, भारत हमेशा हमारे लिए सबसे बड़ा अभिशाप बना रहेगा, हमेशा हमारे दरवाजे पर रहेगा, लेकिन नागरिक संस्थागत विकास और अन्य एजेंसियों को स्वयं को सुरक्षा दुविधा का शिकार नहीं बनने देना चाहिए। अखबार ने लिखा है, 68 साल हो गए। हमें अब तक समाधान ढूंढ लेना चाहिए था, लेकिन हम आज भी परिस्थितियों के बंधक बने हुए हैं।