scriptभारतीय मुसलमानों को अच्‍छा फाइटर नहीं मानता ISIS : रिपोर्ट | ISIS do not believe Indians youths are good fighter | Patrika News

भारतीय मुसलमानों को अच्‍छा फाइटर नहीं मानता ISIS : रिपोर्ट

Published: Nov 23, 2015 08:32:00 pm

एशिया के लड़ाकों को ISIS दोयम दर्जे का मानता है, न तो उन्‍हें बेहतर हथियार दिए जाते हैं और न ही अरब के लड़ाकों की तरह वेतन

isis soldiers

isis soldiers

नर्इ दिल्ली। खूंखार आतंकी संगठन आईएसआईएस भारत समेत दक्षिण एशियाई मुस्लिमों को इराक और सीरिया के संघर्ष क्षेत्र में लड़ने के लायक नहीं समझता है और अरब के लड़ाकों की तुलना में कमजोर मानता है। हालांकि प्राय: उनको बहला-फुसलाकर आत्मघाती हमले के लिए उकसाया जाता है। भारत की ओर से अब तक 23 लोग आतंकी संगठन आइएसआइएस के लिए लड़ने जा चुके हैं, इनमें छह की मौत हो गई। विदेशी एजेंसियों द्वारा तैयार की गर्इ और भारतीय एजेंसियों के साथ साझा की गर्इ एक खुफिया रिपोर्ट के मुताबिक भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश के साथ नाइजीरिया और सूडान के लड़ाकों को अरब के लड़ाकों की तुलना में कमजोर समझा जाता है।

रिपोर्ट के मुताबिक, सीरिया और इराक के बड़े हिस्से पर काबिज आइएसआइएस की राय है कि भारत का इस्लाम जेहाद की प्रेरणा नहीं देता। दरअसल भारत, पाकिस्तान और बांग्‍लादेश में जो इस्‍लाम पढ़ाया जाता है, आईएसआईएस उसे कुरान आैर हदीस की मूल शिक्षा से अलग बताता है। इसलिए वहां के मुसलमान सलाफी जिहाद की तरफ नहीं जाते हैं।

रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) की रिपोर्ट में लिखा है कि दक्षिण एशिया से आने वाले रंगरूटों के दिलों में जिन्‍न का डर बैठाया जाता है। उनसे कहा जाता है कि अगर वे अपने देश लौटेंगे तो उन्‍हें सारी उम्र जिन्‍न परेशान करेगा। दक्षिण एशिया के लड़ाकों को आईएसआईएस दोयम दर्जे का मानता है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत, पाकिस्तान, बांग्‍लादेश, नाइजीरिया और सूडान के इलाकों के नौजवानों को असली लड़ाके नहीं मानता। उन्‍हें अरब के लड़ाकों से नीचे रखा जाता है। यही नहीं, न तो उन्‍हें बेहतर हथियार दिए जाते हैं और न ही अरब के लड़ाकों की तरह वेतन।

रिपोर्ट बताती है कि दक्षिण एशिया के रंगरूटों के साथ दूसरे दर्जे का सलूक होता है। इन्हें कम पैसे मिलते हैं और छोटी बैरकों में रहना पड़ता है। इन्‍हें फिदायीन दस्‍ते की तरह इस्तेमाल किया जाता है। कई बार इन्‍हें इस बात की जानकारी नहीं होती कि उनका फिदायीन की तरह इस्‍तेमाल होगा। रिमोट कंट्रोल से उन्हें उड़ा दिया जाता है। उन्‍हें कहा जाता है कि सामान लेकर किसी से मिलने जाएं। जब वे अपनी गाड़ी लेकर वहां पहुंचते हैं तो उन्‍हें फोन के जरिए उड़ा दिया जाता है।

गृह मंत्रालय तक पहुंची यह रिपोर्ट बताती है कि ज्‍यादातर लड़ाके हूरों के चक्‍कर में जिहाद से जुड़ते हैं। चूंकि आईएसआईएस में महिलाओं की संख्‍या कम है इसलिए एशिया के लड़कों को बीवियां नहीं मिलती। यहां तवज्‍जो अरब के लड़ाकों को दी जाती है इसलिए जेहादी बीवियां उन्‍हें ही मिलती है।

आईएसआईएस दक्षिण एशिया के लड़कों को फुट सोल्‍जर के तरह इस्‍तेमाल करती है। अरब के लड़के इनके पीछे रहते है। यही वजह है कि अरब मूल के लड़ाकों के मुकाबले दक्षिण एशियाई मूल के लड़के इस जंग में ज़्यादा मारे गए हैं। दक्षिण एशिया के लड़ाकों पर पूरा भरोसा भी नहीं किया जाता और आइएस की पुलिस इन पर नज़र रखती है। सिर्फ ट्यूनीशिया, सऊदी अरब, फलस्‍तीन, इराक और सीरिया के अरब ही आईएसआईएस पुलिस मे शामिल हो सकते है।

वहां से लौटे भारत के लड़कों के अनुभव भी यही बताते हैं। भारत से अब तक 23 लोग आइएसआइएस के लिए लड़ने गए हैं, इनमें से छह की मौत हो चुकी है। यहां नेट और सोशल मीडिया के सहारे इन लड़कों को लुभाया जाता रहा है, जिसे भारत सरकार रोकने की कोशिश में है। सोशल मीडिया पर जेहाद जितना लुभावना लग सकता है, हक़ीक़त में उतना नहीं है। वहां इस्लाम वाली बराबरी नहीं है, अरबी लड़ाकों का दबदबा है जिसके शिकार एशिया के इस हिस्से के लड़के होते हैं। ये जरूरी है कि उनके प्रचार तंत्र को काटा जाए। अब सरकार सोशल मीडिया के जरिए उनसे लड़ने के लिए तैयार हो चुकी है।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो