वन्दे वांछितलाभाय चन्दार्धकृतशेखराम्।वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।
पूणेंदुनिभांगौरी मूलाधार स्थितांप्रथम दुर्गा त्रिनेत्रा।
पटांबरपरिधानांरत्नकिरीटांनानालंकारभूषिता॥प्रफुल्ल वदनांपल्लवाधरांकांतकपोलांतुंग कुचाम्।
कमनीयांलावण्यांस्मेरमुखीक्षीणमध्यांनितंबनीम्॥
पूणेंदुनिभांगौरी मूलाधार स्थितांप्रथम दुर्गा त्रिनेत्रा।
पटांबरपरिधानांरत्नकिरीटांनानालंकारभूषिता॥प्रफुल्ल वदनांपल्लवाधरांकांतकपोलांतुंग कुचाम्।
कमनीयांलावण्यांस्मेरमुखीक्षीणमध्यांनितंबनीम्॥
दूसरे दिन करें मां ब्रह्मचारिणी का आव्हान
मां पार्वती के ही स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी की पूजा नवरात्रों के दूसरे दिन की जाती है। इन्होंने शिव को पति रूप में पाने के लिए उग्र तप किया था अतः ये ब्रह्म शक्ति अर्थात तप की शक्ति की प्रतीक है। इनकी आराधना से व्यक्ति अजेय बनता है और उसकी सर्वत्र विजय होती है। मां ब्रह्मचारिणी की पूजा के बाद निम्न मंत्र का 108 बार जप करने से जन्मकुंडली के बुरे ग्रह भी अच्छा फल देने लगते हैं।
दधानां करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डल। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
तीसरे दिन होती है मां चंद्रघंटा की पूजा
नवदुर्गाओं में तीसरे शक्ति के रूप में पूज्यनीय माँ चंद्रघंटा शत्रुहंता के रूप में विख्यात है। इन देवी के मस्तक पर घंटे के आकार का आधा चंद्र है इसीलिए इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है। इनकी आराधना से समस्त शत्रुओं तथा भाग्य की बाधाओं का नाश होकर अपार सुख-सम्पत्ति मिलती है। इनकी पूजा के बाद निम्न मंत्र का 108 बार जप करने से बड़े से बड़ा शत्रु भी कुछ नहीं बिगाड़ पाता है।
या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
चौथे दिन होगी कुष्मांडा की उपासना
माघ मास की गुप्त नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्माण्डा की पूजा-आराधना की जाती है। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार जब चारों और अंधकार ही अंधकार था तब इन्होंने अपनी मंद हल्की हंसी द्वारा ब्रह्माण्ड को उत्पन्न किया था। इनकी आराधना करने से समस्त रोग व शोक का नाश होता है तथा व्यक्ति मोक्ष के मार्ग पर आगे बढ़ता है। इनकी पूजा करने के बाद निम्न मंत्र का 108 बार जप करना चाहिए।
ॐ कूष्माण्डायै नम:।।
पांचवें दिन होती है स्कंदमाता की पूजा
नवरात्र के पांचवें दिन स्कंदमाता की पूजा की जाती है। देवासुर संग्राम के सेनापति भगवान स्कंद की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता कहा जाता है। इनकी पूजा से साधक का मन एकाग्र होकर समाधि में लीन होता है जिससे उसके मोक्ष का रास्ता खुलता है। साथ ही साधक के जीवन में आने वाली हर छोटी-बड़ी बाधा का तुरंत ही खात्मा होता है। इनकी पूजा के बाद निम्न मंत्र का 108 बार जप करना चाहिए।
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया। शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।
छठें दिन होगी मां कात्यायनी की पूजा
जगतमाता पार्वती ने महर्षि कात्यायनी की तपस्या से प्रसन्न होकर उनके यहां पुत्री रूप में जन्म लिया था अतः उन्हें कात्यायनी भी कहा जाता है। उनकी उपासना से साधक को अलौकिक तेज और तपशक्ति प्राप्त होती है जिसके बल पर उसके रोग, शोक, संताप, भय आदि सभी नष्ट हो जाते हैं। इनकी पूजा के बाद निम्न मंत्र का 108 बार जप करने से दिव्य शक्तियां प्राप्त होती हैं-
चन्द्रहासोज्जवलकरा शाईलवरवाहना। कात्यायनी शुभं दग्घादेवी दानवघातिनी।।
या देवी सर्वभूतेषु मां कात्यायनी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
या देवी सर्वभूतेषु मां कात्यायनी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
सातवें दिन होती है मां कालरात्रि की पूजा
नवरात्र के सातवें दिन पूजी जाने वाली अत्यन्त भयावह स्वरूप वाली मां कालरात्रि की पूजा की जाती है। ये अपने भक्तों के कष्टों को तुरंत हरती है और उन पर सुख की वर्षा करती है। ये महाकाली की भांति अत्यन्त क्रोधातुर दिखाई देती है और अपने भक्तों की ओर आंख उठाने वाले किसी भी संकट को तुरंत समाप्त करती है। इनकी पूजा के पश्चात निम्न मंत्र का 108 बार जप करना सौभाग्य लाता हैः
या देवी सर्वभूतेषु मां कालरात्रि रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
आठवें दिन होगी मां महागौरी की पूजा
गुप्त नवरात्रि के आठवें दिन मां महागौरी की पूजा की जाती है। कहा जाता है कि उग्र तप के कारण मां पार्वती का शरीर पूरी तरह काला पड़ गया था जिसके बाद भगवान शिव ने उन्हें स्नान कराया जिससे उनका शरीर सोने की भांति चमक उठा। अतः उन्हें महागौरी कहा जाता है। उनकी आराधना से व्यक्ति का आज्ञा चक्र जागृत होता है और उस पर साक्षात महादेव तथा पार्वतीजी की कृपा होती है। इनकी पूजा के बाद निम्न मंत्र का 108 बार जप करना चाहिए।
ॐ ऎं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ॐ महागौरी देव्यै नम:
नवें और अंतिम दिन होती है मां सिद्धिदात्री की आराधना
नवरात्रि के अंतिम दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। इनकी पूजा करने वाले साधकों के जीवन के समस्त कष्ट दूर होते हैं तथा उन्हें अष्ट सिद्धियां, नव निधियों का वरदान प्राप्त होता है। इनकी आराधना से साधक को मृत्युपरांत मोक्ष की प्राप्ति होती है। मां सिद्धिदात्री की पूजा के बाद निम्न मंत्र का 108 बार जप करना चाहिए।
सिद्धगन्धर्वयक्षाघैरसुरैरमरैरपि। सेव्यमाना सदा भूयात् सिदि्धदा सिदि्धदायिनी।।