scriptकरेंगे बटुक भैरव की इस तरह पूजा तो काम में मिलेगी तुरंत सफलता | Powerful Bhairav Mantra: How to worship Batuk Bhairav | Patrika News

करेंगे बटुक भैरव की इस तरह पूजा तो काम में मिलेगी तुरंत सफलता

Published: May 28, 2015 02:25:00 pm

दस भैरवों में जहां कालभैरव को सर्वाधिक उग्र रूप माना जाता है वहीं बटुक भैरव को सबसे शांत और सौम्य स्वरूप मान कर पूजा जाता है

Batuk Bhairav Mantra

Batuk Bhairav Mantra

बटुक भैरव भगवान रूद्र के अवतार है। इस बार बटुक भैरव जयंती 28 मई 2015 (गुरुवार) को है। इस दिन भगवान भैरव की पूजा आराधना करने से सभी तांत्रिक अभिकर्मों में सफलता मिलती है।

दस भैरवों में जहां कालभैरव को सर्वाधिक उग्र रूप माना जाता है वहीं बटुक भैरव को सबसे शांत और सौम्य स्वरूप मान कर पूजा जाता है। अघोरियों, तांत्रिकों तथा सन्यास ले चुके व्यक्तियों के लिए जहां काल भैरव की पूजा बताई गई हैं वहीं दूसरी ओर गृहस्थों के लिए बटुक भैरव की पूजा करना उपयुक्त माना गया है।

भैरव तंत्र के अनुसार जो भय से मुक्ति दिलाए उसे भैरव कहा जाता है। इनकी साधना करने से समस्त कष्टों से मुक्ति मिलती है।

साधना का मंत्र

ॐ ह्रीं वां बटुकाये क्षौं क्षौं आपदुद्धाराणाये कुरु कुरु बटुकाये ह्रीं बटुकाये स्वाहा

उक्त मंत्र की प्रतिदिन 11 माला 21 मंगल तक जप करें। मंत्र साधना के बाद अपराध-क्षमापन स्तोत्र का पाठ करें। भैरव की पूजा में श्री बटुक भैरव अष्टोत्तर शत-नामावली का पाठ भी करना चाहिए।

ऐसे करें साधना

श्री बटुक भैरव यंत्र लाकर उसे अपने पूजा स्थान पर रखें, साथ में भैरवजी का चित्र या प्रतिमा भी हो तो बेहतर होगा, दोनों को लाल वस्त्र बिछाकर उस पर रखना चाहिए। चित्र के सामने फूल, काले उड़द आदि चढ़ाकर शाम को लड्डू का भोग लगाएं।

इस साधना को किसी भी मंगलवार या अष्टमी के दिन शुरू करना चाहिए। पूजा का समय शाम 7 से 10 बजे के बीच ही रखें।

साधना के दौरान रखें ये सावधानियां

भगवान भैरव की पूजा करते समय कुछ सावधानियों को रखने की विशेष जरूरत होती है। यथा, खान-पान शुद्ध रखें। स्त्री संसर्ग तथा संभोग से दूर रहें। वाणी, आचार-विचार की शुद्धता रखें तथा किसी पर भी क्रोध न करें। यदि कोई योग्य गुरु मिल जाएं तो उससे पूजा विधि को भली-भांति समझ कर ही पूजा आरंभ करें।

ऐसे लगाएं भगवान भैरव को भोग

भैरव की पूजा में दैनिक नैवेद्य दिनों के अनुसार किया जाता है, जैसे रविवार को चावल-दूध की खीर, सोमवार को मोतीचूर के लड्डू, मंगलवार को घी-गुड़ अथवा गुड़ से बनी लापसी या लड्डू, बुधवार को दही-बूरा, गुरुवार को बेसन के लड्डू, शुक्रवार को भुने हुए चने, शनिवार को तले हुए पापड़, उड़द के पकौड़े या जलेबी का भोग लगाया जाता है।
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