विभाग के मुताबिक वर्ष 2017-18 में 1699 बेरोजगारों को विभाग की ओर से 80 लाख 95 हजार 179 रुपए भत्ते के रूप में खातों में जमा कराए जा चुके है। जबकि वर्ष 2016-17 में 429 जनों को 50 लाख 34 हजार 881 रुपए भत्ते के रूप में दिए गए है। उल्लेखनीय है कि बेरोजगारों को रोजगार उपलब्ध नहीं होने की स्थिति मेंं सरकार ने वर्ष 2012 में अक्षत योजना (बेरोजगारी भत्ता) शुरू की थी।
इसके तहत राजस्थान के किसी भी विश्वविद्यालय से स्नातक उत्तीर्ण महिला को प्रति माह 750 रुपए व पुरुष को 650 रुपए दिए जाने का प्रावधान है। सामान्य बेरोजगार के 30 वर्ष आयु होने तक व एसटीएसी व दिव्यांग को 35 वर्ष की आयु होने तक भत्ते की सुविधा दी जाती है। वर्तमान में कार्यालय में 14 हजार 865 बेरोजगारों का पंजीयन है।
प्राईवेट नौकरी भी रोजगार की श्रेणी मेंविभागीय अधिकारियों के अनुसार स्नातक उत्तीर्ण करते ही जिले का युवा किसी न किसी निजी क्षेत्रों में
कार्य करने लगता है, इसमें गैर सरकारी विद्यालय, मिल्स समेत निजी क्षेत्रों के अन्य उपक्रम शामिल है। विभाग के मुताबिक प्राईवेट नौकरीभी रोजगार की श्रेणी में मानी गई है। ऐसे में रोजगार मिलने के बावजूद कई युवक विभाग से बेरोजगारी भत्ता उठाने से नहीं चूक रहे हैं। विभाग के पास नौकरी लगने की पुख्ता सूचना नहीं होने से अभ्यर्थियों के बेरोजगारी भत्ते पर अंकुश नहीं लग पा रहा।
रोजगार भी दिया तो नाम का
जिला मुख्यालय पर स्थित रोजगार कार्यालय में वर्ष 2007 से 2012 के बीच 31 हजार 212 लोगों ने रोजगार के लिए पंजीकरण कराया। इनमें रोजगार कार्यालय के माध्यम से वर्ष 2007 से 2011 के बीच केवल 146 लोगों को बैकिंग, डाकघर समेत अन्य सरकारी उपक्रमों में नियुक्ति मिल पाई। इसके बाद योजना शुरू होने से पंजीकरण के आवेदकों का आंकड़ा बढ़ गया जबकि अधिकांश नियुक्तियां सीधी होने लगी। इससे विभाग के पास सरकार या गैर सरकारी क्षेत्रों में नौकरी लगने का आंकड़ा उपलब्ध नहीं है।
विभाग की ओर से बेरोजगारों को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराए जाते हैं। कितनों का रोजगार मिला यह आंकड़ा विभाग के पास नहीं है। रोजगार मिलने की स्थिति में लाभान्वित खुद आकर विभाग को प्रार्थना पत्र देता है, इसके बाद उसका भत्ता बंद कर किया जाता है।
विवेक भारद्वाज, जिला रोजगार अधिकारी टोंक।