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पत्रिका विशेष
आवेश तिवारी
वाराणसी। उत्तर प्रदेश में 50 फीसदी प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर कोई चिकित्सक नहीं है। भारत सरकार के कम्पट्रोलर और आडिटर जनरल ने अपनी जांच में पाया है कि उत्तर प्रदेश के प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों की हालत देश में सबसे खराब है। कैग ने अपने आडिट में यूपी के जिन प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों का दौरा किया उनमे से 50 फीसदी स्वास्थ्य केन्द्रों पर कोई चिकित्सक नहीं था। कैग ने अपने आडिट में पाया है कि उत्तर प्रदेश के 10 जिलों में 2015-16 के दौरान 2462 महिलाओं की नसबंदी तो कर दी गई लेकिन उन्हें प्रोत्साहन राशि जो कि लगभग 40.57 लाख रूपए थी नहीं दी गई। रिपोर्ट बताती है कि 2015-16 के दौरान प्रदेश में 32 सामुदायिक स्वास्थय केंद्र का निर्माण किया जाना था लेकिन केवल 4 केन्द्रों का निर्माण ही हो सका।
दवाओं की क्वालिटी में भी घालमेल
कैग की रिपोर्ट में सर्वाधिक चौका देने वाला तथ्य यह है कि जालौन और मुजफ्फरनगर को छोड़कर जिन जिलों में जांच की गई उनमे पाया गया कि वहां 2011-16 के दौरान तक़रीबन 62.32 करोड़ की दवाओं की खरीदी की गई ,,लेकिन उनकी गुणवत्ता की जांच किये बिना उन्हें मरीजों को वितरित कर दिया गया। जब इस सम्बन्ध में जिलों के मुख्य चिकित्सा अधिकारियों से बात की गई तो उन्होंने कहा कि दवा कंपनियों ने अपने क्वालिटी टेस्ट रिपोर्ट दी थी। लेकिन जांच में कोई क्वालिटी टेस्ट रिपोर्ट नहीं पाई गई। सीएजी ने उत्तर प्रदेश के जिन 20 जिला चिकित्सालयों का दौरा किया वहां पाया कि वहां कुल 286 चिकित्सकों की मौजूदगी है। जबकि इंडियन पब्लिक हेल्ड स्टैण्डर्ड के हिसाब से वहां कुल 580 चिकित्सकों की तैनाती होनी चाहिए यानि कि कुल 294 चिकित्सकों की कमी पाई गई ।
न नर्स न डाक्टर कैसे चले अस्पताल
प्रदेश के जिला चिकित्सालयों में स्टाफ नर्सों की भी भारी कमी है कैग द्वारा जिन अस्पतालों का आडिट किया गया वहाँ पाया गया कि इंडियन पब्लिक हेल्थ स्टैण्डर्ड के हिसाब से वहां 965 स्टाफ नर्सों की तैनाती होनी चाहिए लेकिन वहां पर केवल 467 नर्से पाई गई। यानि कि वहां भी 498 नर्सों की कमी पाई गई।यही हाल सामुदायिक और प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों का भी है आडिट में पाया गया कि 28 में से 6 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बिना पैरा मेडिकल स्टाफ के चल रहे हैं। यूपी में आडिट किये गए 55 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में से 27 न तो कोई एलोपैथिक डाक्टर तैनात था न ही आयुर्वेदिक। सर्वाधिक चौका देने वाला तथ्य यह रहा कि प्रदेश में सरकारी अस्पतालों में डिलीवरी के लिए 2 करोड़ 68 लाख महिलाओं का नाम रजिस्टर किया गया था लेकिन इनमे से महज 43 फीसदी महिलाओं की ही सरकारी अस्पताल में डिलीवरी हो पाई। ऐसा इसलिए हुआ कि सरकारी अस्पतालों में डिलीवरी को लेकर आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध नहीं थी। अंत में खबर यह भी है कि उत्तर प्रदेश में 2015-16 के दौरान लगभग 14 लाख 65 हजार महिलाओं ने नसबंदी कराई जबकि पुरुषों में इनकी संख्या महज 33,845 थी।
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