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कूड़ा बीनने वाली ये लड़की आज है प्रधानाध्यापिका

locationआगराPublished: Jan 14, 2018 09:46:00 am

पिंकी जैन की कहानी, बाल श्रम से शुरू हुआ सफर

Pinki jain

Pinki jain

आगरा। कहते हैं कि डूबते हुए को तिनके का सहारा होता है, लेकिन इस मासूम के पास न तो कोई सहारा था और नाहीं कोई उम्मीद। जब सुबह उसके हम उम्र बच्चे ड्रेस पहनकर स्कूल जाते थे, तो ये नन्ही मासूम कूड़ा बीनने के लिए निकलती थी। पढ़ाई करने की इच्छा बहुत थी, लेकिन मजबूरी थी, बुजुर्ग मां और बहनों का पेट पालने की। इस मासूम बच्ची ने जीवन में बेहद संघर्ष किया। एक साथ मिला, तो इस मासूम ने बाल श्रम के दलदल से निकलकर आसमां की उचाइंयों को छू लिया।
यहां से शुरू हुई कहानी
ये कहानी है ग्वालियर के रिठोर कला के रहने वाले प्रेमचंद जैन की। प्रेमचंद जैन अपनी पत्नी प्रेमवती और पुत्री पिंकी के साथ दो अन्य पुत्रियों और पुत्र विजय के साथ खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहे थे। एक दिन अचानक उनकी तबियत बिगड़ी और उनकी मृत्य हो गई। उनकी मृत्यु से पूरा परिवार बिखर गया। आर्थिक हालत इतनी खराब हो गई, कि दो वक्त की रोटी तक नहीं थी। पिंकी की उम्र उस समय 4 वर्ष की थी। पिंकी अपनी मौसी मीना के साथ आगरा आ गई।
पिंकी पर आ गई जिम्मेदारी
समय बीतता गया, लेकिन परिवार की हालत में कोई सुधार नहीं था। हालत ये हो गई, कि ग्वालियर से पूरे परिवार को पलायन कर आगरा आना पड़ा। यहां भी दो वक्त की रोटी के लिए पूरा परिवार जूझता था। इसके बाद पिंकी की मां ने सड़क पर चाय बेचना शुरू किया, तो वहीं पिंकी ने 7 वर्ष की उम्र में कबाड़े की दुकान पर काम शुरू कर दिया। जिन हाथों में गुड्डे गुड़िया होते हैं, वो नन्हे हाथ कबाड में से लोहे का सामान को अलग अलग थैलों में रखने का काम कर रहे थे।
भर आईं आंखें
फिर एक दिन पिंकी के जीवन में फरिश्ता आया। इसका नाम था पंडित तुलाराम शर्मा। श्रमिकों की आवाज के लिए लड़ने वाले तुलाराम शर्मा ने जब मासूम पिंकी को कबाड़े के गोदाम में काम करते देखा, तो उनकी आंख भर आई। उस मासूम को अपनाने का निर्णय तुलाराम शर्मा ने लिया। उसकी मां प्रेमवती से बात की और पिंकी की शिक्षा की जिम्मेदारी तुलाराम शर्मा ने उठा ली। उसकी कॉपी, किताब से लेकर स्कूल तक की फीस का खर्चा तुलाराम शर्मा ने उठाया और उसे हाईस्कूल तक की पढ़ाई कराई।
पिंकी बनी बाल श्रमिकों का सहारा
हाईस्कूल की परीक्षा पास करने के बाद पिंकी ने बाल श्रम के दलदल से उन मासूमों को निकाले का निर्णय लिया, जिसमें वह खुद फंस गई थी। 1995 में तुलाराम शर्मा ने धनौली में बाल श्रमिक विद्यालय खोला। इस विद्यालय में पिंकी ने इन बच्चों को पढ़ाना शुरू किया और स्कूल की तरफ से जो भी पैसा मिलता था, उससे अपना परिवार चलाया और खुद की भी शिक्षा जारी रखी।
यहां खत्म नहीं हुई पिंकी जंग
ग्रेजुएशन करने के बाद पिंकी को इसी बाल श्रमिक स्कूल में हैडमास्टर बनाया गया। 1999 में उसकी शादी सुदीप जैन से हुई, लेकिन जिंदगी की जंग यहां समाप्त नहीं हुई। 2007 में उस वक्त पिंकी पर एक बार फिर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा जब गंभीर बीमारी के चलते उसके पति की मौत हो गई। पिंकी के पास दो मासूम बच्चे हैं। पिंकी को ये लड़ाई जारी रखनी थी। उसने हिम्मत नहीं हारी। पिंकी जैन ने बताया कि दुख न हों, तो जीवन जीवन नहीं रहेगा।
ये है लक्ष्य
पिंकी जैन ने बताया कि जीवन में उसका लक्ष्य अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा प्रदान कराना, इसके साथ ही उन बच्चों को भी अपनी तरह काबिल बनाना है, जो आज बाल श्रम के दलदल में फंसे हुए हैं। पिंकी ने बताया कि उसकी सफलता के पीछे सबसे बड़ा हाथ उत्तर प्रदेश ग्रामीण मजदूर संगठन के पंडित तुलाराम शर्मा का है। वह इस संगठन को कभी नहीं छोडेंगी।
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