इस स्टेशन से आते—जाते थे अंग्रेज
हिरनगांव रेलवे स्टेशन है तो बहुत छोटा लेकिन अंग्रेजों के लिए मददगार बना। आने—जाने के लिए इसी रेलवे स्टेशन का सहारा लिया जाता था। यहां के क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों को खदेड़ने के लिए आवाज बुलंद की। स्टेशन को जला दिया गया। लोगों की जुबान पर इस स्टेशन का नाम आज भी रहता है।
हिरनगांव रेलवे स्टेशन है तो बहुत छोटा लेकिन अंग्रेजों के लिए मददगार बना। आने—जाने के लिए इसी रेलवे स्टेशन का सहारा लिया जाता था। यहां के क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों को खदेड़ने के लिए आवाज बुलंद की। स्टेशन को जला दिया गया। लोगों की जुबान पर इस स्टेशन का नाम आज भी रहता है।
सफदर अली ने दिया था बलिदान
आजादी के दीवानों में शिकोहाबाद के सफदर अली वकील का नाम अव नई पीढ़ी को कम याद होगा। उन्होंने हंसते हंसते फांसी को स्वीकार कर लिया था। सन 1857 में उनको आगरा की सेंट्रल जेल में फांसी दी गई थी। उनका कसूर इतना था कि उनके मकान की छत से एक अंग्रेज की लाश मिली थी। उनकी सारी प्रोपर्टी तक अंग्रेजों ने जब्त कर ली थी। इसी तरह, गुदाऊं के गंदर्भ सिंह यादव ने 1921 के स्वाधीनता संग्राम में भाग लिया।
सुनीति शर्मा कूद गई थीं आंदोलन में
भारत छोड़ो आंदोलन में हिरनगांव रेलवे स्टेशन को जलाने, डाक बंगले को जलाने में सक्रिय भूमिका अदा की थी। सविनय अवज्ञा आंदोलन में भी छह महीने की सजा मिली थी। आजादी के लिए महिलाओं ने भी अपने कदम आगे बढ़ाए थे। लक्ष्मीकांत शर्मा की पुत्री सुनीति शर्मा 14 साल की आयु से ही इस आंदोलन से जुड़ गईं। प्रभात फेरियों को निकालने और महिलाओं को जोड़ने का इन्हीं को जिम्मा दिया गया था। जसराना, हाथबंत में इनकी सक्रियता रहती थी।
सांती में सैकड़ों क्रांतिकारियों को मिली फांसी
सन 1857 का समय सांती के भोले वाले बाग में सैकड़ों क्रांतिकारियों को पकड़ लिया गया। उन्हें पेड़ों पर फांसी दे दी गई। खैरगढ़ का अपना स्वतंत्रता में योगदान है। यहां के ठाकुर परिवार वालों ने अंग्रेजों से युद्ध किया था और खदेड़ दिया था। खैरगढ़ के बाबूराम ने कई बार जेल यात्राएं कीं। ग्राम जरौली के लाला हरदयाल गुप्ता, लालई के तेजपाल सिंह, दफामई के निहाल सिंह यादव, शेखूपुरा हाथबंत के चैधरी झम्मन सिंह यादव जेल गए।
सन 1857 का समय सांती के भोले वाले बाग में सैकड़ों क्रांतिकारियों को पकड़ लिया गया। उन्हें पेड़ों पर फांसी दे दी गई। खैरगढ़ का अपना स्वतंत्रता में योगदान है। यहां के ठाकुर परिवार वालों ने अंग्रेजों से युद्ध किया था और खदेड़ दिया था। खैरगढ़ के बाबूराम ने कई बार जेल यात्राएं कीं। ग्राम जरौली के लाला हरदयाल गुप्ता, लालई के तेजपाल सिंह, दफामई के निहाल सिंह यादव, शेखूपुरा हाथबंत के चैधरी झम्मन सिंह यादव जेल गए।
जब तोप से दगवाए गए थे गोले
सन 1857 में जसराना में लाला दिलसुखराव जैन के घर के समीप कच्ची मिट्टी के थान पर तोप रखी थी। झपारा के यादव समाज के लोग आए और चढ़ाई कर दी। तब इस तोप से गोले दगवाए गए थे। इसमें दर्जनों झपारा के लोग मारे गए थे।
सन 1857 में जसराना में लाला दिलसुखराव जैन के घर के समीप कच्ची मिट्टी के थान पर तोप रखी थी। झपारा के यादव समाज के लोग आए और चढ़ाई कर दी। तब इस तोप से गोले दगवाए गए थे। इसमें दर्जनों झपारा के लोग मारे गए थे।