सावन का महीना शुरू होते ही बाजार में घेवर और फैनी की मांग बढ़ जाती है। ऐसा इसलिए क्योंकि बारिश के चलते अन्य मिठाइयों में नमी के कारण चिपचिपापन आ जाता है, जबकि घेवर और फैनी पर बारिश का ऐसा कोई प्रभाव नहीं पड़ता। जितनी अच्छी बारिश होती है, घेवर और फैनी भी उतनी ही अच्छी बनती है। 15 अगस्त को रक्षाबंधन का त्योहार है। इसको लेकर मथुरा में मिठाइयों की दुकानों पर तरह तरह के घेवर और फैनी की भरमार है। शादी के बाद पहली बार पड़ने वाले रक्षाबंधन पर लड़की के ससुराल में मायके वाले सरगी लेकर जाते हैं। इस बीच फैनी, घेवर व बूरा आदि भेजा जाता है। इसके लिए रक्षाबंधन के दिन सुबह से ही मिठाई की दुकानों पर घेवर और फैनी खरीदने वालों की कतार लग जाती है। यही कारण है कि रक्षा बंधन पर घेवर और फैनी की विशेष रूप से मांग होती है। वहीं वक्त के साथ अब घेवर का रूप भी बदल गया है। पहले घेवर मैदे में पानी डालकर घोल तैयार करके बनाया जाता था। लेकिन अब मैदे के घोल बनाते समय पानी नहीं डाला जाता, उसमें दूध मिलाया जाता है। फिर उसे उसे बनाया जाता है। इसके अलावा केसरिया घेवर देसी घी और चीनी मिलाकर तैयार किया जाता है। ये कई दिनों तक खराब नहीं होता। मलाई घेवर में खोए का प्रयोग किया जाता है। इन घेवरों में कई तरह के मेवा आदि का प्रयोग भी होता है। पहले फैनी भी आमतौर पर सफेद रंग की बिका करती थी, लेकिन अब इनमें भी रंगों का प्रयोग किया जाने लगा है। प्रस्तुतिः सुनील शर्मा, मथुरा
सावन का महीना शुरू होते ही बाजार में घेवर और फैनी की मांग बढ़ जाती है। ऐसा इसलिए क्योंकि बारिश के चलते अन्य मिठाइयों में नमी के कारण चिपचिपापन आ जाता है, जबकि घेवर और फैनी पर बारिश का ऐसा कोई प्रभाव नहीं पड़ता। जितनी अच्छी बारिश होती है, घेवर और फैनी भी उतनी ही अच्छी बनती है। 15 अगस्त को रक्षाबंधन का त्योहार है। इसको लेकर मथुरा में मिठाइयों की दुकानों पर तरह तरह के घेवर और फैनी की भरमार है। शादी के बाद पहली बार पड़ने वाले रक्षाबंधन पर लड़की के ससुराल में मायके वाले सरगी लेकर जाते हैं। इस बीच फैनी, घेवर व बूरा आदि भेजा जाता है। इसके लिए रक्षाबंधन के दिन सुबह से ही मिठाई की दुकानों पर घेवर और फैनी खरीदने वालों की कतार लग जाती है। यही कारण है कि रक्षा बंधन पर घेवर और फैनी की विशेष रूप से मांग होती है। वहीं वक्त के साथ अब घेवर का रूप भी बदल गया है। पहले घेवर मैदे में पानी डालकर घोल तैयार करके बनाया जाता था। लेकिन अब मैदे के घोल बनाते समय पानी नहीं डाला जाता, उसमें दूध मिलाया जाता है। फिर उसे उसे बनाया जाता है। इसके अलावा केसरिया घेवर देसी घी और चीनी मिलाकर तैयार किया जाता है। ये कई दिनों तक खराब नहीं होता। मलाई घेवर में खोए का प्रयोग किया जाता है। इन घेवरों में कई तरह के मेवा आदि का प्रयोग भी होता है। पहले फैनी भी आमतौर पर सफेद रंग की बिका करती थी, लेकिन अब इनमें भी रंगों का प्रयोग किया जाने लगा है। प्रस्तुतिः सुनील शर्मा, मथुरा