सेल्व गोमती और आशिक इलाही बाबा की जनहित याचिका पर जस्टिस एमवी मुरलीधरन और जस्टिस टी. कार्तिकेयन ने रोक के अंतरिम आदेश दिए हैं। जनहित याचिका में कहा गया कि आहार संबंधी निर्णय व्यक्तिगत अधिकार है। कोई भी शख्स इस मामले में किसी दूसरे को निर्देश नहीं दे सकता है।
इस दलील पर कटाक्ष करते हुए केंद्र सरकार के अधिवक्ता ने कहा कि यह अधिसूचना पशु बाजार को नियमित करने के उद्देश्य से जारी की गई है। दलीलें सुनने के बाद हाईकोर्ट की न्यायिक पीठ ने केंद्र और राज्य सरकार को चार सप्ताह के भीतर अपना जवाब पेश करने को कहा और साथ ही उक्त अधिसूचना पर सशर्त रोक लगा दी।
न्यायिक पीठ ने निषेधाज्ञा के साथ कुछ शर्तें लगाई है कि किसान केवल दूसरे किसान को ही पशुओं की बिक्री कर सकेंगे। इस सौदे से पहले खरीदार का पहचान पत्र देखना, पशुपालन व राजस्व अधिकारियों को अग्रिम सूचना देने जैसी औपचारिकताएं पूरी करनी होंगी।
इसके अलावा क्रेता से लिखित में सहमति पत्र लेना होगा कि वह अगले छह महीने तक खरीदे हुए पशुओं को नहीं बेचेगा। इसके अलावा पशु खरीदना का उद्देश्य बूचडख़ाने के उद्देश्य से नहीं है।