दरअसल शहर के मोतीसागर तालाब किनारे सुबह-शाम लंगूरों का झुंड अपने एक मित्र के आने का इंतजार करता रहता है। यदि मित्र को आने में देर हो जाती है तो लंगूरों के झुंड में खासी खलबली मच जाती है और जैसे ही उनका मित्र उनके बीच आता है तो लंगूरों का झुंड अपने मित्र को घेर लेता है।

मित्र उन्हें खाने-पीने की सामग्री देता है तो लंगूर बिना उछलकूद किए अपने मित्र के साथ बैठे रहते हैं। यहां प्रतिदिन वन्य प्राणियों के प्रति अटूट मित्रता का विश्वास नजर आता है। लोग भी यह दृश्य देखकर बरबस ही कह उठते हैं वाह! नर और लंगूर की अद्भुत दोस्ती है। इस अनोखे नजारों को पत्रिका ने अपने कैमरे में कैद किया है।
सामाजिक सरोकारों से संबंध रखने वाले सामाजिक कार्यकर्ता तेजसिंह चौहान का अधिकांश समय पशु-पक्षियों एवं वन्य प्राणियों की देखरेख में व्यतित हो जाता है। इनका वन्य प्राणियों के प्रति जो लगाव है वह धरातल पर नजर भी आता है।
वर्तमान समय में मनुष्य के पास जहां परिवार के लिए समय नहीं रहता है, वहीं सामाजिक कार्यकर्ता चौहान अपने लंगुर मित्रों के लिए सुबह-शाम समय निकाल कर उनके बीच पहुंच जाते हैं। बकायदा खाने-पीने की सामग्री ले जाते हैं और अपने हाथों से वानरों को खिलाते हैं। बगैर किसी भय या संकोच के लंगूर भी तेजसिंह चौहान को देखते ही उनके इर्दगिर्द आकर बैठ जाते हैं और अपना आहार लेते हैं।

साइकिल देख हो जाते हैं एकत्रित
लंगूर व तेजसिंह चौहान के बीच का अपार प्रेम धरातल पर दिखाई देता है। जैसे ही तेजसिंह चौहान खाने-पीने की सामग्री लेकर साइकिल खड़ी करते हैं तो लंगूर साइकिल पर आ जाते हैं झोले में से सामग्री निकाल कर सभी लंगुरों के बीच उसका विभाजन भी लंगूर ही कर लेते हैं और झुंड बनाकर चौहान के आस-पास बैठ जाते हैं।
शहरवासी भी होने लगे शामिल
एकला चलो की तर्ज पर तेजसिंह चौहान ने यह पहल आरंभ की तो धीरे-धीरे अब शहरवासी भी इस पहल में अपना सहयोग देने लगे हैं। चौहान के साथ-साथ शहर के कई लोग अपने विशेष अवसरों को लंगूरों के बीच मना रहे है। जन्मदिवस हो या पुण्यतिथि शहरवासी यहां लंगूरों को आहार देकर उनके खाने-पीने की व्यवस्था कर रहे है।

पशु-पक्षी व वन्य प्राणियों को समझा जाए मित्र
जब इस संबंध में तेजसिंह चौहान से चर्चा की गई तो उन्होंने बताया कि पशु-पक्षी व वन्य प्राणियों को अपना मित्र समझा जाए। हर कोई प्राणी हिंसक नहीं होता है, जब उनसे मित्रता पूर्वक व्यवहार किया जाएगा तो वे भी आपसे उसी तरह व्यवहार करेंगे। वर्तमान में पशु-पक्षी एवं वन्य प्राणियों के समक्ष दाने-पानी की विकट समस्या निर्मित हो रही है। यदि समाज इस ओर ध्यान देगा तो इनका संरक्षण समुचित रूप से हो जाएगा।
असामान्य परिवर्तन बना चिंता का विषय
ग्रीष्मकाल में पशु-पक्षियों में असामान्य परिवर्तन भी देखा जा रहा है। भोजन व पानी न मिलने की वजह से गर्मी के दिनों में पशु-पक्षी की सामान्य गतिविधि बदल जाती है और वह हिंसक बन जाते हैं। गत् दिवस कमलकुंडी परिसर व हनुमानगढ़ी परिसर में आधा दर्जन से अधिक खूंखार श्वानों के समूह ने बंदरों के समूह पर हमला कर दिया था जिससे दो बंदर घायल हो गए थे। बंदरों को वन विभाग पहुंचाया गया था। यह असामान्य परिवर्तन भी खासा चिंता का विषय बनता जा रहा है।
