scriptvideo : निर्मल नीर की पथरीली डगर : शो पीस बने हैंडपंप…मुंह चिढ़ाते कुएं…सूखी नदी से बूंद-बूंद को तरसती जिंदगी | Distressed rural, river, pond has dried up for drinking water | Patrika News

video : निर्मल नीर की पथरीली डगर : शो पीस बने हैंडपंप…मुंह चिढ़ाते कुएं…सूखी नदी से बूंद-बूंद को तरसती जिंदगी

locationअगार मालवाPublished: Jun 07, 2019 07:42:55 pm

Submitted by:

Lalit Saxena

भीषण गर्मी, झुलसा देने वाली चिलचिलाती धूप और अपना रंग दिखाने पर आमादा पानी। निर्मल नीर की पथरीली डगर पर बूंद-बूंद को तरसती जिंदगियां कई किलोमीटर दूर तक भटकने को मजबूर हैं।

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दुर्गेश शर्मा@आगर-मालवा. भीषण गर्मी, झुलसा देने वाली चिलचिलाती धूप और अपना रंग दिखाने पर आमादा पानी। निर्मल नीर की पथरीली डगर पर बूंद-बूंद को तरसती जिंदगियां कई किलोमीटर दूर तक भटकने को मजबूर हैं। सूखी पड़ी नदी और मुंह चिढ़ाते कुएं, प्यासे कंठों को और अधिक मजबूर कर जाते हैं। गलियों और चौराहों पर लगे हैंडपंप भी शो पीस बने हैं।

एक जमाना था जब यहां कल-कल बहता था पानी
एक जमाने में मालवा क्षेत्र में कल-कल नीर बहता हुआ दिखाई देता था, लेकिन निरंतर अनदेखी के चलते अब एक-एक बूंद के लिए क्षेत्रवासियों को तरसते हुए देखा जा रहा है। नदी-नाले, तालाब तो गर्मी की शुरुआत में ही सूख जाते हैं। अन्य जल स्रोत भी धीरे-धीरे साथ छोडऩे लगे हैं। जिले के अधिकांश गांव इन दिनों जलसंकट की चपेट में आ चुके हैं। ग्राम पंचायत जेतपुरा के ग्राम लखमनखेड़ी के ग्रामीण एक-एक बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं। लखमनखेड़ी के मझरेखेड़ा में तो स्थिति विकराल रूप धारण कर चुकी है। यहां के ग्रामीण व मवेशी सभी एक गड्ढे का पानी पीने को मजबूर हैं। वहीं लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग तथा जवाबदार आला अधिकारी जिले में जलसंकट जैसी स्थिति को नकारते हुए दिखाई देते हैं, लेकिन ग्राम ढोटी, उमरिया देवड़ा, झलारा और अब लखमनखेड़ी जैसे गांव के हालात अधिकारियों के कथन को झूठा साबित कर रहे हैं।

 

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छाया हुआ है भीषण जलसंकट
ग्राम पंचायत जेतपुरा के ग्राम लखमनखेड़ी की आबादी करीब ८०० से अधिक है। आबादी का एक हिस्सा गांव के मझरे खेड़ा में रहता है। दोनों ही आबादी क्षेत्र में इन दिनो भीषण जलसंकट छाया हुआ है। लखमनखेड़ी की बात की जाए तो यहां के सभी हैंडपम्प दम तोड़ चुके हैं। गांव में एक निजी कुआं है जिससे लखमनखेड़ी के ग्रामीणों को पानी मिल रहा है लेकिन वह भी काफी मशक्कत के बाद मिल पाता है। यहां कुआं सिर्फ आधा घंटा पानी देता है उसके बाद उसमें वापस पानी एकत्रित होने के लिए २-३ घंटे से अधिक का समय लगता है। ऐसी दशा में आधे से अधिक ग्रामीणों को पानी ही नहीं मिल पाता है। खेतों पर बने कुओं से जैसे-तैसे पानी की पूर्ति की जाती है। खेड़ा के हालात की बात की जाए तो यहां तो दयनीय स्थिति का सामना ग्रामीणों को करना पड़ रहा है।

 

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इस गांव में नहीं कोई जलस्तोत्र
लखमनखेड़ी एवं खेड़ा के बीच करीब 500 मीटर की दूरी है और खेड़ा में पानी का कोई स्रोत नहीं है। खेड़ा एवं लखमनखेड़ी के बीच से निकल रही नदी के एक कोने में इन ग्रामीणों ने गड्ढ़ा कर रखा है जिसे ग्रामीण भाषा में झरी कहा जाता है और इसी झरी से ग्रामीण अपनी प्यास बुझा रहे हैं। जिस गड्ढे में मवेशी पानी पीते हैं उसी गड्ढे का पानी ग्रामीणों को भी मजबूरन पीना पड़ रहा है। गंदा पानी पीने से बीमारियां भी पैर पसार रही है।

 

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प्रतिवर्ष निर्मित होती है समस्या
लखमनखेड़ी के खेड़े में प्रतिवर्ष पेयजल समस्या निर्मित होती है लेकिन जवाबदार अधिकारी-कर्मचारी लखमनखेड़ी एवं खेड़े की दूरी को माध्यम बनाकर इस समस्या को नजर अंदाज कर देते हैं। जवाबदारों का कहना है कि खेड़े में ट्यूबवेल कराए गए लेकिन पानी नहीं निकला। वहीं अधिकारियों का तो यह भी कहना है कि लखमनखेड़ी में भी कोई जल समस्या नही ंहै। ४ हैण्डपम्प चालू हैं लेकिन धरातल पर सभी हैंडपम्प बंद है और एक निजी कुए के सहारे ग्रामीण पानी हासिल कर रहे हंै। खेड़ा एवं लखमनखेड़ी की दूरी भले ही कम हो लेकिन व्यवहारिक कठिनाइयों का सामना ग्रामीणों को करना पड़ता है। महिलाएं पहाडऩुमा उबड़-खाबड़ रास्ते सूखी टिल्लर नदी पार कर लखमनखेड़ी तक पहुंच तो जाती है लेकिन जब तक ये महिलाएं गांव में पहुंचती हैं वहां के कुए से भी पानी नहीं मिल पाता है।

शासकीय कुएं का निर्माण अधूरा
ग्राम पंचायत द्वारा यहां एक शासकीय कुए को खुदवाया गया लेकिन इस कुए का निर्माण भी अधूरा है। ग्रामीणों का कहना है कि हमारे साथ हमेशा भेदभावपूर्ण रवैया अपनाया जाता है यदि समय रहते इस कुए का निर्माण कार्य पूरा हो जाता तो आज हमें परेशान नहीं होना पड़ता। अधिकारी भी स्थाईहल नही निकालते है। ग्रामीण रामाजी, गोवर्धन, उदाजी, कैलाश, मोहन, संजय, रोडुलाल, गिरधारीलाल, रेखाबाई, श्यामूबाई, अवंतिका बाई, मांगुबाई, रूखमाबाई आदि ने बताया कि हम लोग जिस गड्ढे का पानी पीते हैं उसी गड्ढे में मवेशी भी पानी पीते हैं।

इनका कहना है…
जहां तक हमारी जानकारी में है लखमनखेड़ी में हैंडपम्प व कुए से जलापूर्ति हो रही है। खेड़े की दूरी महज 300 मीटर है तो ग्रामीणों को लखमनखेड़ी आकर पानी भर लेना चाहिए। खेड़ा में पहले भी ट्यूबवेल कराए गए हैं लेकिन वहां पानी नहीं है। हमारे द्वारा कर्मचारियों को भेजकर वस्तुस्थिति का आकलन किया जाएगा।
आरके श्रीवास्तव, कार्यपालन यंत्री पीएचई
(फोटो-वीडियो…प्रकाश राहुल किथोदिया)

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