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छोटे भाई के लिए बड़े भाइयों ने दी कुर्बानी तो रंग लाई मेहनत

locationअगार मालवाPublished: Dec 08, 2018 12:58:59 am

Submitted by:

Lalit Saxena

भाइयों को सम्पत्ति तथा अन्य मसलों पर विवाद करते हुए तो बड़ी आसानी से देखा जा सकता है लेकिन कहीं-कहीं भाइयों में एकता की मिसाल भी दिखाई देती है।

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भाइयों को सम्पत्ति तथा अन्य मसलों पर विवाद करते हुए तो बड़ी आसानी से देखा जा सकता है लेकिन कहीं-कहीं भाइयों में एकता की मिसाल भी दिखाई देती है।

दुर्गेश शर्मा. आगर-मालवा
इस जमाने में भाइयों को सम्पत्ति तथा अन्य मसलों पर आपस में विवाद करते हुए तो बड़ी आसानी से देखा जा सकता है लेकिन कहीं-कहीं भाइयों में एकता की मिसाल भी दिखाई देती है। कानड़ में इन दिनों दो भाई अपने त्याग के कारण खासे चर्चाओं में बने हुए हैं। घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने पर दोनों भाइयों ने मेहनत मजदूरी कर अपने छोटे भाई को काबिल बनाने के लिए अपने सपनों को भुला दिया और छोटे भाई की पढ़ाई को निरंतर जारी रखा। छोटा भाई भी परिवार की उम्मीदों पर खरा उतरा। निरंतर असफलता मिलने के बावजूद हिम्मत नहीं हारी और आखिरकार उसका चयन भारतीय वायु सेना में हो गया। जैसे ही वायु सेना का नियुक्ति पत्र आया तो परिजन अपनी खुशी के आंसू रोक नही पाए।
वर्ष २००६ में बड़ौद के पास स्थित ग्राम बरनावद से कानड़ आए रमेशचंद्र कुंभकार ने एक छोटी सी गुमटी में चाय की दुकान लगाई और अपने बच्चों का पालन-पोषण आरंभ किया। शुरुआती दौर से ही रमेशचंद्र एवं उनकी पत्नी प्रेमकलां बाई अपने बच्चों को शिक्षित बनाने में जुट गए लेकिन यहां इनकी आर्थिक स्थिति ने इनका साथ नहीं दिया। दोनों बड़े बेटे राहुल और अजय पारिवारिक स्थिति एवं पिता के काम में हाथ बटाने के कारण ज्यादा नहीं पढ़ पाए लेकिन इन दोनों भाइयों ने अपने छोटे भाई विजय कुंभकार को आगे बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। पहली से हाई स्कूल तक विजय को कानड़ में स्थित एक निजी विद्यालय में पढ़ाया।
हाईस्कूल में जिले में तीसरा स्थान पाया
विजय ने वर्ष २०१४ में बोर्ड परीक्षा में जिले में तीसरा स्थान प्राप्त किया। १०वीं के बाद विजय को शाजापुर पढऩे के लिए भेज दिया। विजय की पढ़ाई को निरंतर जारी रखने के लिए दोनों बड़े भाई उज्जैन चले गए और एक ने वहां फैक्ट्री में काम किया तो दूसरे ने किसी होटल में काम कर घर का खर्चा निकाला। पिता रमेशचंद्र कानड़ मे ही होटल का संचालन करते रहे और विजय निरंतर पढ़ता रहा। विजय ने भारतीय नोसेना में चार बार प्रयास किया लेकिन मेडिकल में अनफिट होने के कारण वह बाहर हो गया। परिवार का साथ होने से विजय आगे बढ़ता रहा और निरंतर प्रयास करता रहा। विजय ने भारतीय वायु सेना में अपना आवेदन दिया तो यहां उसका चयन हो गया। विजय को वायुसेना में एयरमैन वाय ग्रुप नॉन टेक्निकल शाखा में नियुक्ति मिली है। २७ दिसंबर को विजय को भोपाल बुलाया है जहां से उसे कर्नाटक प्रशिक्षण के लिए भेजा जाएगा।
किराए का मकान, किराए की दुकान
विजय का परिवार गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाला परिवार है। इनके पास न तो कोई सम्पत्ति है और न ही कोई बैंक बैलेंस है। जिस घर में रहते हैं वह भी किराए का है। जिस दुकान से व्यवसाय करते हैं वह दुकान भी किराए की है। जब विजय की नियुक्ति की जानकारी परिवारजनों को मिली तो वे अपने आंसू नहीं रोक पाए। पत्रिका से चर्चा के दौरान विजय के माता-पिता की आंखों से आंसू झलक पड़े। उसके दोनों भाइयों ने ही उसे इस मुकाम तक पहुंचाया है।
मेरे माता-पिता और मेरे भाइयों के त्याग का ही परिणाम है कि आज मेरा चयन भारतीय वायु सेना में हुआ है। मेरे भाइयों ने मेरे लिए बहुत मेहनत की है। उन्होंने उनके सपनों को अनदेखा कर मेरा जीवन संवार दिया है।
विजय कुंभकार

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