पूरे नोटिस में औपचारिकता और मिलीभगत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दीवाली से महज दो-तीन दिन पहले ही जारी हुआ नोटिस हकीकत में 24 सितंबर को जारी हुआ था। उसे बाबुओं ने अभी की तारीख में जारी कर दिया। नोटिस में तीन दिन में जवाब-तलब करने का उल्लेख है। जबकि सीएमएचओ ने स्पष्ट किया है कि 15 दिन में जवाब दिया जा सकता है। नोटिस को जारी करने में ही गड़बड़झाला नजर आ रहा है। पिछली बार की कार्रवाई के बाद बिना किसी निर्देश के खुले क्लीनिक अभी तक चल रहे हैं। हालांकि तमाम प्रकार की जांच के बाद तत्कालीन सीएमएचओ डॉ. अनुसूया गवली निशाने पर थीं और आखिर में उन्हें निलंबित भी किया गया था।
जिले सहित ब्यावरा शहर में अवैध और झोलाछाप क्लीनिक की होड़ सी मची हुई है, इनमें व्यापक स्तर पर अवैध काम किए जाते हैं। शासन-प्रशासन, स्वास्थ्य विभाग सभी को पता होने के बावजूद कोई कार्रवाई इन पर नहीं होती। हर बार कुछ लेन-देन कर ये न सिर्फ उक्त धांधलियों से बरी हो जाते हैं, बल्कि फिर से वही काम भी शुरू कर देते हैं। इनके फेर में वैध तौर पर क्लीनिक संचालित करने वालों को भी दिक्कत आती है। बता दें कि मप्र उपचर्यागृह एवं रजोपचार संबंधि स्थापनाएं (रजिस्ट्रीकरण) नियम-१९९७ यथा संशोधन-२००७ धारा-३ के प्रावधान अनुसार संस्था का वैधपंजीयन जरूरी है अन्यथा अधिनियम की धार-११ और १२ के प्रावधान के हिसाब से कार्रवाई की जाती है।
जानकारी के अनुसार तमाम वे क्लीनिक जिनके पास वैध दस्तावेज हैं उन्हें हर पांच साल में पंजीयन रिनुवल करवाना होता या नए पंजीयन के लिए भी जिलास्तर पर ही पंजीयन होता है। ऑनलाइन होने वाले इस पंजीयन में नाम मात्र का पंजीयन शुल्क लगता है, लेकिन बिचौलियों के माध्यम से बेवजह ही पंजीयन निरस्त कर दिए जाते हैं। फिर बाद में कुछ लेन-देन के बाद उनके पंजीयन आसानी से कर दिए जाते हैं। इस काम में न सिर्फ स्वास्थ्य विभाग के जिम्मेदार अधिकारी, बाबू शामिल हैं, बल्कि ब्यावरा में भी एजेंट सक्रिय हैं जो सभी से बड़ी राशि एकत्रित कर स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारियों तक पहुंचाते हैं। हकीकत में पंजीयन प्रक्रिया सामान्य है पहले प्रदेश स्तर पर होती थी अब उसे जिलास्तर पर कर दिया गया है, इससे गड़बडिय़ां भी और बढ़ गई हैं।