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सोशल नेटवर्किंग ने इस विधा पर को कर दिया खत्म

locationअगार मालवाPublished: Feb 03, 2019 12:08:27 am

Submitted by:

Lalit Saxena

आधुनिक इलेक्ट्रानिक संचार सुविधाओं ने एक ओर जहां सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए टेलीफोन, फैक्स जैसे साधन उपलब्ध कराकर लगने वाले समय को शून्य भले ही कर दिया हो

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आधुनिक इलेक्ट्रानिक संचार सुविधाओं ने एक ओर जहां सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए टेलीफोन, फैक्स जैसे साधन उपलब्ध कराकर लगने वाले समय को शून्य भले ही कर दिया हो

आगर-मालवा. आधुनिक इलेक्ट्रानिक संचार सुविधाओं ने एक ओर जहां सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए टेलीफोन, फैक्स, मोबाईल और इंटरनेट जैसे साधन उपलब्ध कराकर लगने वाले समय को शून्य भले ही कर दिया हो वहीं इस सूचना क्रांति ने पारस्परिक व्यक्तिगत रिश्तों के तहत लिखे जाने वाले पत्रों में अपनत्व के भाव की मिठास तथा खुशबू से आम लोगों को दूर कर दिया है। डाकिया आज भी डाक लेकर गली-मोहल्लों में नियमित आता जरूर है पर उसकी साइकिल पर टंगे झोले में अब पोस्टकार्ड, अंतरदेशीय पत्र या लिफाफे की बजाए टेलीफोन बिल या व्यवसायिक डाक ही अधिक दिखाई देती है। सूचना क्रांति के एसएमएस व इंटरनेट पर चिपकने वाले इस युग में युवावर्ग पत्र लेखन से दूर होता जा रहा है। अधिकांश लोगों को तो यह भी पता नहीं है कि उन्होंने अपने प्रियजनों को अंतिम बार पत्र कब लिखा था या कब किसी निकट परिजन द्वाराा लिखा हुआ पत्र उन्हें प्राप्त हुआ था।
सामाजिक धरातल पर पारिवारिक परिवेश में दूर-दराज रहने वाले व्यक्तियों अथवा परिवारों में पारस्परिक सोहार्द पूर्ण रहने वाले व्यक्तियों अथवा परिवारों में पारस्परिक संबंधों की प्रगाढ़ता का प्रतिक माने जाने वाला पत्र लेखन सूचना क्रांति के कारण शनै:-शनै: विलुप्त होने की कगार पर जा पहुॅचा है। बधाई और शुभकामना संदेशों का आदान-प्रदान मोबाइल पर एक-दूसरे को शार्ट मैसेज सर्विस के जरिए कर लेते है मोबाईल के प्रचलन से सूचना संपर्क सुविधा बढ़ी जरूर है पर एक-दो बटन क्लीक कर एसएमएस को रिसीव करने या उसे डिलीट करने के इस कौशल में पत्र जैसी विद्या के शब्दों से गुथी मर्म स्पर्शी संवेदना कहीं नजर नहीं आती है।
कंकू पत्री का जमाना भी गया
सामाजिक रिति-रिवाजों और परिणय प्रसंगों पर निज परिजनों को भेजी जाने वाली हस्तलिखित कंकू पत्री की परंपरा भी अब दम तोड़ चुकी है मांगलिक प्रसंगों के अवसर पर भेजी जाने वाली कंकू पत्री में रिश्तों के शब्द रूप में कलापूर्ण अभिव्यक्ति तो होती ही थी साथ ही ये सामाजिक सम्मान के रूप में व्यक्ति के रूतबे का प्रतिक भी होती थी। सफेद कागज पर हाथ से उकेरे गए शब्दों में भावनाओं के साथ-साथ संस्कार के बीज भी होते थे। भगवान श्री गणेश से मंगल कारज साधने की आरजू के साथ कंकू-चावल व लाल धागे में लिपटी कंकू पत्री प्रिटिंग प्रेस की वजह से कार्ड और पत्रिकाओं के बढ़ते प्रचलन से अतित के गर्त में समा गई है।
व्यावसायिक सूचना का माध्यम बने पत्र
किराना व दवा व्यवसाय से संबंध रखने वाले लोगों के अनुसार पत्र का सिलसिला चलता तो जरूर है पर यह मात्र संबंधित फर्म के ऐजेन्ट के आगामी आगमन की सूचना देने तक ही सीमित होकर रह गया है।

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