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अनदेखी : हालातों पर आंसू बहाते-बहाते यहाँ बंद हो गए इंग्लिश मीडियम स्कूल…

locationअगार मालवाPublished: Feb 22, 2019 12:02:54 pm

Submitted by:

Lalit Saxena

जब आगर जिला नहीं था तो भी शिक्षा व्यवस्था बदहाल थी और जिला बनने के बाद भी हालातों में कोई विशेष सुधार धरातल पर दिखाई नहीं दे रहा है।

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दुर्गेश शर्मा@आगर-मालवा. जब आगर जिला नहीं था तो भी शिक्षा व्यवस्था बदहाल थी और जिला बनने के बाद भी हालातों में कोई विशेष सुधार धरातल पर दिखाई नहीं दे रहा है। पिछले 5 वर्षों से शिक्षा विभाग अमुमन प्रभारी अधिकारियों के हवाले ही रहा है। स्थिति सुधरने की अपेक्षा बिगड़ती हुई दिखाई देती है। सरकारी स्कूलो में पढऩे वाले बच्चो के लिए शासन द्वारा वर्ष 2015 में जिले में 10 अंग्रेजी माध्यम स्कूल खोले गए थे। न तो शिक्षकों की समुचित व्यवस्था की गई और न ही संसाधन उपलब्ध कराए गए। नतीजतन जिले में 4 सरकारी अंग्रेजी माध्यम स्कूल बंद हो गए।

सरकारी स्कूलो में पढऩे वाले गरीब बच्चे भी इंग्लिश मीडियम जैसे स्कूलो की तरह पढ़े और निजी स्कूलों के बच्चों की तरह फर्राटे के साथ अंग्रेजी में वार्तालाप करें। कुछ इसी उद्देश्य के साथ शासन द्वारा सरकारी स्कूलों में ही अंग्रेजी माध्यम का संचालन करते हुए जिले के चारों विकासखंडों में अंग्रेजी माध्यम स्कूल खोल गए थे लेकिन सतत् अनदेखी के चलते नलखेड़ा और बड़ौद में तो अंग्रेजी माध्यम स्कूल अपने हालातों पर आंसू बहाते-बहाते बंद हो गए। जहां संचालित हो रहे हैं उन स्कूलों के हालात भी कुछ ठीक नहीं है। आगर शहर में तीन अंग्रेजी माध्यम स्कूल संचालित हो रहे हैं। प्रावि हाटपुरा में एक ही कक्ष में पहली से पांचवी तक के 70 बच्चों को एक साथ अंग्रेजी का पाठ पढ़ाया जा रहा है। एक साथ सभी कक्षाओं का संचालन समुचित होना अपने आप में समझ से परे हैं। ठीक इसी प्रकार घोसीपुरा में 9 बच्चे अध्ययनरत है तो मावि छावनी में 19 बच्चे अंग्रेजी विद्यालय में पढ़ रहे हैं। सुसनेर शहर में में 13 बच्चे, प्रावि देहरिया सोयत में 27, प्रावि छापरिया में 29 बच्चे अध्ययनरत हैं।

जुगाड़ कर की थी वैकल्पिक व्यवस्था
जब सरकारी स्कूलों में अंग्रेजी भाषा में पढ़ाने के लिए शासन ने स्कूलों की व्यवस्था दी थी तो जिले के आला अधिकारियों ने इसमें भी जुगाड़ कर पूरी व्यवस्था को ही पंगु बना दिया। हिन्दी माध्यम स्कूलों से बगैर किसी मॉपदंड को दृष्टिगत रखते हुए मनमर्जी से कुछ शिक्षकों का अटैचमेंट अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में कर दिया और हिन्दी माध्यम स्कूलों के ही एक कक्ष पर अंग्रेजी माध्यम लिखवाकर वहां अंग्रेजी माध्यम स्कूल चालू कर दिए। आखिरकार यह जुगाड़ कब तक चलता। जवाबदार अधिकारियों ने इन स्कूलों की ओर पलटकर भी नहीं देखा। जब पत्रिका टीम ने जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय में सम्पर्क किया तब उन लोगों को जानकारी मिली कि जिले में संचालित 10 अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में से ४ स्कूल बंद हो चुके हैं।

प्रभारियों के हवाले डीईओ कार्यालय
शुरुआती दौर में बतौर जिला शिक्षा अधिकारी के रूप में स्थाई डीईओ आनंद वास्कले के जाने के बाद करीब 3 वर्षों से प्रभारी अधिकारियों के हवाले जिला शिक्षा विभाग संचालित होता आ रहा है। संविलियन, मनमाने स्थानांतरण, चहेतों के अटैचमेंट आदि प्रक्रियाओं से सुर्खियों में आने के बाद गत् दिनों एक प्रभारी अधिकारी को हटाते हुए अब डिप्टी कलेक्टर कल्याणी पांडेय को प्रभार दिया गया है। लेकिन डिप्टी कलेक्टर पांडेय के पास कलेक्टोरेट का कार्य ही इतना अधिक रहता है कि वो चाहते हुए भी शिक्षा विभाग को समय नहीं दे पा रहे है। प्रभारी अधिकारियों के भरोसे संचालित हो रहे जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय का सीधा-सीधा असर जिले के सरकारी स्कूलों की शैक्षणिक व्यवस्था पर हो रहा है।

पढ़ते हैं अंग्रेजी में और दर्ज हिन्दी माध्यम का
अंग्रेजी माध्यम सरकारी स्कूलों में पढऩे वाले बच्चे भले ही अंग्रेजी स्कूल में पढ़ रहे हो लेकिन वे हिन्दी माध्यम स्कूल में ही दर्ज हैं। अंग्रेजी माध्यम स्कूल का कोई अलग से डाईस कोड न होने के कारण इस प्रकार की स्थिति निर्मित हो रही है और बच्चों की उपस्थिति हिन्दी माध्यम में ही दर्ज होती है। इन स्कूलों को ठीक से चलाने के लिए न तो जवाबदारों द्वारा व्यापक प्रचार-प्रसार किया गया और न ही अच्छे शिक्षक भेजे गए।

मुझे इस विषय में आपके माध्यम से जानकारी प्राप्त हुई है। मेरे द्वारा अंग्रेजी माध्यम स्कूल के संबंध में जानकारी ली जाएगी और व्यवस्था में सुधार किया जाएगा।
– कल्याणी पांडेय, डिप्टी कलेक्टर एवं प्रभारी डीईओ

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